हाल में काशी (बनारस) जाना हुआ. इससे पहले भी बनारस होकर कई बार गुजरा था, लेकिन ज्यादा देर तक शहर में रुका नहीं था. छात्र जीवन में इलाहाबाद से दो बार बनारस आया था, तब पिताजी के लिए दवा लेने के सिलसिले में आता था और तुरंत वापस चला जाता था. अभी तक गंगा जी के दर्शन व विव प्रसिद्ध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को घूमने को देखने का मौका नहीं मिला था. इस बार मौका था. पास में लगभग छह घंटे का समय था. रात में लगभग दो बजे ट्रेन पहुंची, तो सोचा कि आसपास के किसी होटल में कुछ घंटे का आराम कर लिया जाये, लेकिन परीक्षार्थियों की भीड़ की वजह से कहीं जगह नहीं मिली, तो वापस रेलवे स्टेशन पर ही आना पड़ा. वहां भी पैर रखने की जगह नहीं थी. हजारों की संख्या में छात्र इधर-उधर घूम रहे थे.
स्टेशन की छत तक पर छात्रों की भीड़ थी. जिसे जहां जगह मिल रही थी, वहीं सोने की कोशिश कर रहा था. चलने तक रास्ता नहीं था. काफी मशक्कत के बाद हम उच्च श्रेणी वेटिंग हाल तक पहुंचे, जहां थोड़ी राहत थी. कुछ कुर्सियां खाली थीं. सो आराम करने का मौका मिला, हालांकि इस कवायद में रात के साढ़े तीन बज चुके थे. कुर्सी पर ही थोड़ी देर झपकी लेने के बाद सुबह पांच बजे मां गंगा और काशी विश्वानाथ मंदिर के दर्शन की तमन्ना लिये निकले पड़ा. सड़क पर ऑटो मिला, जिसने सीधे गंगा घाट तक पहुंचा दिया, तब तक सुबह हो चुकी थी. बड़ी संख्या में सैलानियों के घाटों पर आने का सिलसिला शुरू हो चुका था.
सुबह-ए-बनारस के बारे में बार-बार सुनता था, लेकिन अब खुद ही रू-ब-रू था. विदेशी सैलानी नावों के जरिये गंगा की सैर कर रहे थे, तो हमने गंगा स्नान का फैसला लिया. कुछ ही मिनट में दरभंगा घाट के सामने मां गंगा की गोद में उतर गया. लगभग आधे घंटे तक स्नान के बाद निकला. लंबे समय के बाद तैरने का अनुभव मिला. शरीर भारी होने के वजह से अब पहले जैसे नहीं तैर पा रहा था. इसकी ग्लानि हो रही थी, क्योंकि पास में स्थानीय लोग भी स्नान कर रहे थे, जो खूब तैर रहे थे. स्नान के बाद नाव से सैर भी की और सब घाट और उनकी विशेषताएं जानने को मिलीं. हरिश्चंद्र घाट के सामने पहुंचा, तो वो कहानियां याद आने लगीं, जो हमारी दादी-नानी बचपन में सुनाती थीं.
इन सभी को जोड़ने लगा, तो लगा कि कैसे रहे होंगे हरिश्चंद्र, किस तरह से जीवन में सत्य बोलने की परीक्षा दी होगी, लेकिन डिगे नहीं. अब होता, तो क्या होता? तमाम तरह के सवाल मन में आ रहे थे. वर्तमान स्थिति में सत्य की राह पर चलनेवाले को किस तरह से टारगेट किया जाता है. वो भी सामने घूमने लगा. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसे कई लोगों को जानता हूं, जिन्हें सत्य बोलने की सजा भुगतनी पड़ रही है. मणिकर्णिका घाट पर पहुंचा, तो वह दृश्य याद आ गये, जो टीवी में काम करने के दिनों में वीडियो फुटेज के रूप में सामने आते थे, जिनमें जीवन और मरण साथ-साथ दिखता था.
यहीं वह घाट हैं, जो गंगा-जमुनी तहजीब के पोशक भारत रत्न बिसमिल्ला खां की बांसुरी का गवाह बनते थे. यहीं पंडित राजन-साजन मिश्र का आना-जाना होता है. पंडित छन्नू लाल मिश्र को भी यहां गाते देखा है, लेकिन इन सबसे इतर सुबह का समय बनारस के घाटों पर अद्भुत था. स्नान व नाव से सैर के बाद हम काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़े, लेकिन दर्शन नहीं कर सके. बाबा से वादा किया कि अगली बार आना होगा, तो दर्शन को आऊंगा. बाहर से ही प्रणाम हो गया. इसके बाद निकल गये बीएचयू की ओर.
बीएचयू में जो देखा, उसे शब्दों में बयान करना मेरे लिए कठिन है, क्योंकि यहां एक ऐसे युगदृष्टा के सपने दिख रहे थे, जो शायद अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को बहुत उन्नत बनाना चाहता था. उसकी परिकल्पना में ऐसा हरा-भरा कैंपस और इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी, जहां हर विभाग का अपनी व्यवस्था. मन खुश हो गया. ऑटोवाला स्थानीय था, तो उसने पूरी जानकारी भी दी. वो हमे यूनिवर्सिटी कैंपस के विश्वनाथ मंदिर ले गया. क्या मंदिर और कैसे बनाया गया है. देख कर मन प्रसन्न हुआ. यहां बाबा का आशीर्वाद लिया और मंदिर के बाहर ही बनारसी नाश्ते का भी लुत्फ उठाया. छक के खाया और बाबा की जय-जय करते हुये आगे बढ़ गया.
स्टेशन की छत तक पर छात्रों की भीड़ थी. जिसे जहां जगह मिल रही थी, वहीं सोने की कोशिश कर रहा था. चलने तक रास्ता नहीं था. काफी मशक्कत के बाद हम उच्च श्रेणी वेटिंग हाल तक पहुंचे, जहां थोड़ी राहत थी. कुछ कुर्सियां खाली थीं. सो आराम करने का मौका मिला, हालांकि इस कवायद में रात के साढ़े तीन बज चुके थे. कुर्सी पर ही थोड़ी देर झपकी लेने के बाद सुबह पांच बजे मां गंगा और काशी विश्वानाथ मंदिर के दर्शन की तमन्ना लिये निकले पड़ा. सड़क पर ऑटो मिला, जिसने सीधे गंगा घाट तक पहुंचा दिया, तब तक सुबह हो चुकी थी. बड़ी संख्या में सैलानियों के घाटों पर आने का सिलसिला शुरू हो चुका था.
सुबह-ए-बनारस के बारे में बार-बार सुनता था, लेकिन अब खुद ही रू-ब-रू था. विदेशी सैलानी नावों के जरिये गंगा की सैर कर रहे थे, तो हमने गंगा स्नान का फैसला लिया. कुछ ही मिनट में दरभंगा घाट के सामने मां गंगा की गोद में उतर गया. लगभग आधे घंटे तक स्नान के बाद निकला. लंबे समय के बाद तैरने का अनुभव मिला. शरीर भारी होने के वजह से अब पहले जैसे नहीं तैर पा रहा था. इसकी ग्लानि हो रही थी, क्योंकि पास में स्थानीय लोग भी स्नान कर रहे थे, जो खूब तैर रहे थे. स्नान के बाद नाव से सैर भी की और सब घाट और उनकी विशेषताएं जानने को मिलीं. हरिश्चंद्र घाट के सामने पहुंचा, तो वो कहानियां याद आने लगीं, जो हमारी दादी-नानी बचपन में सुनाती थीं.
इन सभी को जोड़ने लगा, तो लगा कि कैसे रहे होंगे हरिश्चंद्र, किस तरह से जीवन में सत्य बोलने की परीक्षा दी होगी, लेकिन डिगे नहीं. अब होता, तो क्या होता? तमाम तरह के सवाल मन में आ रहे थे. वर्तमान स्थिति में सत्य की राह पर चलनेवाले को किस तरह से टारगेट किया जाता है. वो भी सामने घूमने लगा. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसे कई लोगों को जानता हूं, जिन्हें सत्य बोलने की सजा भुगतनी पड़ रही है. मणिकर्णिका घाट पर पहुंचा, तो वह दृश्य याद आ गये, जो टीवी में काम करने के दिनों में वीडियो फुटेज के रूप में सामने आते थे, जिनमें जीवन और मरण साथ-साथ दिखता था.
यहीं वह घाट हैं, जो गंगा-जमुनी तहजीब के पोशक भारत रत्न बिसमिल्ला खां की बांसुरी का गवाह बनते थे. यहीं पंडित राजन-साजन मिश्र का आना-जाना होता है. पंडित छन्नू लाल मिश्र को भी यहां गाते देखा है, लेकिन इन सबसे इतर सुबह का समय बनारस के घाटों पर अद्भुत था. स्नान व नाव से सैर के बाद हम काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर बढ़े, लेकिन दर्शन नहीं कर सके. बाबा से वादा किया कि अगली बार आना होगा, तो दर्शन को आऊंगा. बाहर से ही प्रणाम हो गया. इसके बाद निकल गये बीएचयू की ओर.
बीएचयू में जो देखा, उसे शब्दों में बयान करना मेरे लिए कठिन है, क्योंकि यहां एक ऐसे युगदृष्टा के सपने दिख रहे थे, जो शायद अपने देश की शिक्षा व्यवस्था को बहुत उन्नत बनाना चाहता था. उसकी परिकल्पना में ऐसा हरा-भरा कैंपस और इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी, जहां हर विभाग का अपनी व्यवस्था. मन खुश हो गया. ऑटोवाला स्थानीय था, तो उसने पूरी जानकारी भी दी. वो हमे यूनिवर्सिटी कैंपस के विश्वनाथ मंदिर ले गया. क्या मंदिर और कैसे बनाया गया है. देख कर मन प्रसन्न हुआ. यहां बाबा का आशीर्वाद लिया और मंदिर के बाहर ही बनारसी नाश्ते का भी लुत्फ उठाया. छक के खाया और बाबा की जय-जय करते हुये आगे बढ़ गया.
आपकी सादगी आपके इस संस्मरण में भी बेलौस झलकती है।संस्मरण भी बिलकुल सीधा सच्चा परंतु शब्दचित्र खींचता हुआ बहुत प्रभावशाली है।
जवाब देंहटाएंआपकी सादगी आपके इस संस्मरण में भी बेलौस झलकती है।संस्मरण भी बिलकुल सीधा सच्चा परंतु शब्दचित्र खींचता हुआ बहुत प्रभावशाली है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका.
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