उत्तर बिहार की सड़कें-दो
मोतिहारी-रक्सौल एनएच. कहने को तो ये सड़क अंतरराष्ट्रीय सीमा तक जाती है. इससे होकर नेपाल के लिए रसद का बड़े पैमाने पर सामान जाता है. बड़े ट्रक इससे 24 घंटे गुजरते हैं, लेकिन पिछले आठ साल से ये सड़क बन रही है, लेकिन अभी तक पूरी नहीं हो सकी. अगर इससे आप एक बार गुजरे, तो दुबारा जाने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे. इसके बावजूद लोग इससे आते-जाते हैं, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है. अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगनेवाली इस सड़क की कहानी भी रहस्यों से भरी है, क्योंकि इस पर कोई भी सरकारी आदेश काम नहीं करता.
केंद्रीय मंत्री से लेकर स्थानीय सांसद तक की ओर से चेतावनी पर चेतावनी दी गयी, लेकिन सड़क बनानेवाली कंपनी ज्यों की त्यों बनी हुई है. याद कीजिये, पिछले साल अप्रैल का महीना, तब भूकंप आया था, जिसमें नेपाल में बड़े पैमाने पर क्षति हुई थी. उस समय रक्सौल में बेसकैंप बना था. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान कैंप को देखने आये और जब वो इस सड़क से गुजरने लगे, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. रास्ते से ही केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को फोन लगाकर सड़क की शिकायत करने लगे. उसी समय केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगले तीन महीने में ये सड़क मोटरेबुल हो जायेगी, अगर नहीं हुई, तो कंपनी पर कार्रवाई होगी. इसके बाद केंद्र सरकार के अधिकारी भी मोतिहारी आये. सड़क की हालत देखने के बाद बैठक की और समय सीमा तय की, लेकिन उसका भी पालन होता नहीं दिख रहा है. इसका जिक्र मैं इसलिए यहां कर रहा हूं, क्योंकि ये हाल में उठाये गये ऐसे कदम हैं, जिनका असर होना चाहिये था, लेकिन नहीं हुआ.
52 किलोमीटर लंबी इस सड़क से गुजरना आसान काम नहीं है. मुजफ्फरपुर से पिपराकोठी तक फोरलेन सड़क के बाद जब आप टू-लेन सड़क पर जायेंगे, तो कुछ दूर तक हालत ठीक है, लेकिन इसकी बानगी शुरू से ही मिलने लगती है. मोतिहारी शहर पार करने के साथ ही आपकी परेशानी भी बढ़ जायेगी. इस पर परेशान होने से कुछ नहीं होनेवाला. इस पर आप हनुमान चलीसा का पाठ करें या फिर ईष्ट को याद करें, इससे आपके मन को शांति मिलेगी, लेकिन परेशानी कम होनेवाली नहीं है. आपको हिचकोले खाती सड़क पर परीक्षा देते ही जाना पड़ेगा. पिछली बार जब मैं इस सड़क से गुजरा था, तो साढ़े तीन घंटे रक्सौल पहुंचने में लगे थे. अभी का पता नहीं, लेकिन इससे गुजरनेवाले लोगों का कहना है कि गाड़ी के बजाय बाइक से जाने पर कम समय लगता है.
चालक जब इस सड़क से गुजरते हैं, तो उनका कहना होता है कि इस सड़क से गुजरते हुये हमें खेत में गाड़ी चलाने का अहसास होता है. कई जगह तो स्थिति ऐसी है, जहां चालकों की हिम्मत भी जवाब दे जाती है. जगह-जगह खराब गाड़ियां सड़क की हकीकत बयान करती हैं. इससे गुजरनेवाले कितने लोग बीमार हुये होंगे, इसका आकड़ा तो मेरे पास नहीं है, लेकिन यह मैं जरूर कह सकता हूं कि अगर आप इस सड़क से गुजरते हैं, तो कम से कम उस दिन काम करने की स्थिति में तो नहीं रह जायेंगे. मन-मिजाज दोनों इस पर थक जाता है. 2013 में इस सड़क को लेकर रक्सौल में बड़ा आंदोलन हुआ था, उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी, तब स्थानीय सांसद डॉ संजय जायसवाल ने सड़क को लेकर धरना दिया था, लेकिन समय के साथ केंद्र की सरकार भी बदल गयी, लेकिन इस सड़क की तकदीर व तस्वीर नहीं बदली. डॉ संजय जायसवाल अब भी इस इलाके के सांसद हैं.
मोतिहारी-रक्सौल एनएच. कहने को तो ये सड़क अंतरराष्ट्रीय सीमा तक जाती है. इससे होकर नेपाल के लिए रसद का बड़े पैमाने पर सामान जाता है. बड़े ट्रक इससे 24 घंटे गुजरते हैं, लेकिन पिछले आठ साल से ये सड़क बन रही है, लेकिन अभी तक पूरी नहीं हो सकी. अगर इससे आप एक बार गुजरे, तो दुबारा जाने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे. इसके बावजूद लोग इससे आते-जाते हैं, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है. अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगनेवाली इस सड़क की कहानी भी रहस्यों से भरी है, क्योंकि इस पर कोई भी सरकारी आदेश काम नहीं करता.
केंद्रीय मंत्री से लेकर स्थानीय सांसद तक की ओर से चेतावनी पर चेतावनी दी गयी, लेकिन सड़क बनानेवाली कंपनी ज्यों की त्यों बनी हुई है. याद कीजिये, पिछले साल अप्रैल का महीना, तब भूकंप आया था, जिसमें नेपाल में बड़े पैमाने पर क्षति हुई थी. उस समय रक्सौल में बेसकैंप बना था. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान कैंप को देखने आये और जब वो इस सड़क से गुजरने लगे, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ. रास्ते से ही केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को फोन लगाकर सड़क की शिकायत करने लगे. उसी समय केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगले तीन महीने में ये सड़क मोटरेबुल हो जायेगी, अगर नहीं हुई, तो कंपनी पर कार्रवाई होगी. इसके बाद केंद्र सरकार के अधिकारी भी मोतिहारी आये. सड़क की हालत देखने के बाद बैठक की और समय सीमा तय की, लेकिन उसका भी पालन होता नहीं दिख रहा है. इसका जिक्र मैं इसलिए यहां कर रहा हूं, क्योंकि ये हाल में उठाये गये ऐसे कदम हैं, जिनका असर होना चाहिये था, लेकिन नहीं हुआ.
52 किलोमीटर लंबी इस सड़क से गुजरना आसान काम नहीं है. मुजफ्फरपुर से पिपराकोठी तक फोरलेन सड़क के बाद जब आप टू-लेन सड़क पर जायेंगे, तो कुछ दूर तक हालत ठीक है, लेकिन इसकी बानगी शुरू से ही मिलने लगती है. मोतिहारी शहर पार करने के साथ ही आपकी परेशानी भी बढ़ जायेगी. इस पर परेशान होने से कुछ नहीं होनेवाला. इस पर आप हनुमान चलीसा का पाठ करें या फिर ईष्ट को याद करें, इससे आपके मन को शांति मिलेगी, लेकिन परेशानी कम होनेवाली नहीं है. आपको हिचकोले खाती सड़क पर परीक्षा देते ही जाना पड़ेगा. पिछली बार जब मैं इस सड़क से गुजरा था, तो साढ़े तीन घंटे रक्सौल पहुंचने में लगे थे. अभी का पता नहीं, लेकिन इससे गुजरनेवाले लोगों का कहना है कि गाड़ी के बजाय बाइक से जाने पर कम समय लगता है.
चालक जब इस सड़क से गुजरते हैं, तो उनका कहना होता है कि इस सड़क से गुजरते हुये हमें खेत में गाड़ी चलाने का अहसास होता है. कई जगह तो स्थिति ऐसी है, जहां चालकों की हिम्मत भी जवाब दे जाती है. जगह-जगह खराब गाड़ियां सड़क की हकीकत बयान करती हैं. इससे गुजरनेवाले कितने लोग बीमार हुये होंगे, इसका आकड़ा तो मेरे पास नहीं है, लेकिन यह मैं जरूर कह सकता हूं कि अगर आप इस सड़क से गुजरते हैं, तो कम से कम उस दिन काम करने की स्थिति में तो नहीं रह जायेंगे. मन-मिजाज दोनों इस पर थक जाता है. 2013 में इस सड़क को लेकर रक्सौल में बड़ा आंदोलन हुआ था, उस समय केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी, तब स्थानीय सांसद डॉ संजय जायसवाल ने सड़क को लेकर धरना दिया था, लेकिन समय के साथ केंद्र की सरकार भी बदल गयी, लेकिन इस सड़क की तकदीर व तस्वीर नहीं बदली. डॉ संजय जायसवाल अब भी इस इलाके के सांसद हैं.
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