महासप्तमी में मां की पूजा के साथ पूजा पंडालों के पट खुल गये श्रद्धालु मां के दर्शन कर रहे हैं. अभी थोड़ी देर पहले एक तस्वीर देखने को मिली सीमांचल के इलाके पूर्णिया की, जिसकी चर्चा पहले से काफी रही है, लेकिन इस बात की चर्चा सुखद है. यहां के एक पूजा पंडाल में शराबबंदी का संदेश दिया गया था. कैसे शराब हमारे लिये नुकसानदायक है, इसके बारे में चित्रों के जरिये बताया गया है.
पूजा पंडाल के जरिये ऐसा संदेश दिये जाने के अपने मायने हैं, क्योंकि मेरा ये मानना है कि शराबबंदी का फैसला बिहार सरकार ने एक बड़ी आबादी को ध्यान में रखते हुये लिया है. बदली हुई परिस्थितियों में पूजा पंडाल के जरिये इस संदेश के अपने मायने हैं. याद करिये आज से छह माह पहले का समय जब प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं थी. शाम होते ही सड़कों से चलना मुश्किल होता था. सड़कों के किनारे ही मोटरसाइकिलों पर चलती-फिरती शराब की दुकानें सज जातीं. ठेलों के जरिये भी पीने-पिलाने का काम शुरू हो जाता था. इसके बाद लड़ाई-झगड़ा मारपीट और सड़क दुर्घटना आम बात थी.
शराब के नशे में लोग एक-दूसरे से लड़ते और देख लेने की बात करने लगते थे. अब कहेंगे कि इसको रोकने के लिए प्रशासन तो था, तो प्रशासन की भी एक सीमा थी. वह काम करता था, लेकिन सब जगह तो व्याप्त नहीं हो सकता, लेकिन शराबबंदी के बाद हालात बदल गये. अब उन स्थानों को देख कर अच्छा लगता है कि जहां पर पहले शराब बिकती थी. वहां कहीं दूध बिक रहा है, तो कहीं होटल खुल गया है. लोग परिवार के साथ खाना खाने आ रहे हैं.
बात पूर्णिया के पूजा पंडाल की हो रही थी. यहां पर पंडाल में शराबबंदी के साथ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश भी दिया जा रहा है. बेटियों को पढ़ाने और उनको आगे बढ़ाने को लेकर हम लोग कितने सजग हैं. ये कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा होता, तो इस श्लोगन की जरूरत सरकार को नहीं पड़ती. इसके अलावा यहां पर उड़ी हमले में शहीद देश के 18 वीर सपूतों को श्रद्धांजलि भी दी जा रही है.
पूजा पंडाल के जरिये ऐसा संदेश दिये जाने के अपने मायने हैं, क्योंकि मेरा ये मानना है कि शराबबंदी का फैसला बिहार सरकार ने एक बड़ी आबादी को ध्यान में रखते हुये लिया है. बदली हुई परिस्थितियों में पूजा पंडाल के जरिये इस संदेश के अपने मायने हैं. याद करिये आज से छह माह पहले का समय जब प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं थी. शाम होते ही सड़कों से चलना मुश्किल होता था. सड़कों के किनारे ही मोटरसाइकिलों पर चलती-फिरती शराब की दुकानें सज जातीं. ठेलों के जरिये भी पीने-पिलाने का काम शुरू हो जाता था. इसके बाद लड़ाई-झगड़ा मारपीट और सड़क दुर्घटना आम बात थी.
शराब के नशे में लोग एक-दूसरे से लड़ते और देख लेने की बात करने लगते थे. अब कहेंगे कि इसको रोकने के लिए प्रशासन तो था, तो प्रशासन की भी एक सीमा थी. वह काम करता था, लेकिन सब जगह तो व्याप्त नहीं हो सकता, लेकिन शराबबंदी के बाद हालात बदल गये. अब उन स्थानों को देख कर अच्छा लगता है कि जहां पर पहले शराब बिकती थी. वहां कहीं दूध बिक रहा है, तो कहीं होटल खुल गया है. लोग परिवार के साथ खाना खाने आ रहे हैं.
बात पूर्णिया के पूजा पंडाल की हो रही थी. यहां पर पंडाल में शराबबंदी के साथ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश भी दिया जा रहा है. बेटियों को पढ़ाने और उनको आगे बढ़ाने को लेकर हम लोग कितने सजग हैं. ये कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अगर ऐसा होता, तो इस श्लोगन की जरूरत सरकार को नहीं पड़ती. इसके अलावा यहां पर उड़ी हमले में शहीद देश के 18 वीर सपूतों को श्रद्धांजलि भी दी जा रही है.
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