गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

सादगी देखनी है तो चमेला कुटीर आइये

(किस्त-एक)
मुशहरी से दो से तीन किलोमीटर दूर मनिका गांव में चमेला कुटीर. यही वरिष्ठ चिंतक व समाजवादी लेखक सच्चिदानंद सिन्हा जी का आवास है. अगर किसी को सादगी देखनी है, तो सच्चिदा बाबू के यहां आना चाहिये. जीवन के 86 बसंत पूरा कर चुके सच्चिदा बाबू पूरी गर्मजोशी से अपने यहां आनेवालों का स्वागत करते हैं. देश-दुनिया के क्या हालात हैं. हम कहां जा रहे हैं और हमें कहां जाना चाहिये. इस पर स्पष्ट दृष्टि से बात रखते हैं.
सच्चिदा बाबू की बातों और उनके रहन-सहन में कोई अंतर नहीं हैं, जो वो कहते हैं, वो करते भी हैं. घर में बिजली का कनेक्शन नहीं है. सोलर लाइट के सहारे घर में उजाला होता है, जो दिन में चाजिर्ग के लिए लॉन में रखीं होती हैं. सच्चिदा बाबू के घर में बिजली नहीं, तो टीवी भी नहीं है. न ही आधुनिक सुख-सुविधा की कोई वस्तु है. देश-दुनिया के समाचार जानने के लिए रेडियो जरूर है.
सच्चिदा बाबू के यहां उतनी ही चीजे हैं, जितने से काम चल सके. ऐसा नहीं है कि सच्चिदा बाबू सब चीजें नहीं रख सकते हैं. वो सब-कुछ रख सकते हैं, लेकिन जिस विचारधारा पर वो चलते हैं, उसे उन्होंने अपने जीवन भी उतारा है. तीन दशक से ज्यादा से इसी स्थान पर रह रहे हैं. इससे पहले दिल्ली रहते थे और उससे भी पहले मुंबई. दर्जनों ऐसी किताबें लिखी हैं. समाज जिनका अनुशरण करे, तो बेहतर बन सकता है, लेकिन अभी विकास की अंधी दौड़ में सच्चिदा बाबू जैसे महान विचार वाले लोगों की दिखाये रास्ते पर बात नहीं हो रही है, लेकिन मुङो लगता है कि लंबे समय समय के लिए इनका बताया रास्ता ही सही है.
सच्चिदा बाबू से पहले मुलाकात 2011 में तब हुई, जब हमारे हमारे वरिष्ठों की ओर से कहा गया कि उनका एक इंटरव्यू करना है, तब मैं शहर में नया था और यहां के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने साथियों से एक-दो बार सच्चिदा बाबू के बारे में सुना था. उस समय एस्बेस्टस फैक्ट्री का मुद्दा चल रहा था, जिसके लगने से किस तरह से परेशानी हो सकती है. इसके बारे में सच्चिदा बाबू ने लेख लिखा था. उसमें मौलिक चीजों उठायी गयी थीं.
जब हम सच्चिदा बाबू के सामने पहुंचे, तो सहसा विश्वास नहीं हो रहा था. थोड़ा समय खुद को यह समझाने में लगा कि कोई महान व्यक्ति ऐसे भी रह सकता है. सच्चिदा बाबू से देश-समाज और वर्तमान परिस्थितियों को लेकर लंबी बात-चीत हुई, जिसमें उन्होंने बताया कि हम मशीनीकरण के कारण किस तरह से परेशानी की ओर बढ़ रहे हैं.
जारी..

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