मोहब्बतों की महक से दिमाग जलते रहें, खुदा करे की हमेशा चिराग जलते रहें.
देर शाम हमारे प्यारे शायर मुनव्वर राना साहब के इस पैगाम के साथ जब दिवाली की मुबारकबाद आयी, तो दिनभर से मन में चल रहे सवाल थोड़ी देर के लिए ठहर गये और मैं इस शेर के अर्थ गढ़ने में लग गया. इसी क्रम में अग्रज डॉ संजय पंकज की वो बात याद आयी, जो उन्होंने कल ही शहीदों के नाम कवि सम्मेलन के दौरान कही थी. ये बात तो मैं कई बार सुन चुका था, लेकिन वर्तमान समय में मौजूं हैं कि सूर्य जब अस्त होने जा रहा था, तो उसे चिंता हुई कि अब घोर अंधकार इस धरा पर छा जायेगा. ऐसे में मेरे होने की सर्थकता क्या होगी, तब सूर्य से एक दीये ने कहा कि आप निश्चिंत होकर अस्त हो सकते हैं सूर्य देवता, क्योंकि जब तक आप सुबह फिर से दस्तक नहीं देंगे, तब तक मैं अपने प्रकाश से इस धरती किसी कोने को ही सही, लेकिन प्रकाशित करता रहूंगा.
हमेशा चिराग जलने का मतलब, उस निरंतरता से लगता है, जिसे हम अमरत्व कहते और समझते हैं. ये हमें पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, क्योंकि समय के साथ चीजें बदलती हैं. धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर की हालत पर नजर जाती है, तो तीन दशक पहले का वो समय याद आता है, जब वहां शांति थी. कैसे देश-विदेश की सैलानी उस पावन भूमि पर जाते थे. खैर सैलानियों के आने-जाने का सिलसिला तो अभी भी नहीं थमा है, लेकिन हालात बदलने से कम जरूर हुआ है. हाल के सालों की बात करें, तो इस साल सीमा पर जितना तनाव है, वैसा नहीं था. तनावपूर्ण माहौल के बीच दिवाली आयी है. बीते दिनों में हमने भारत मां के तीन वीर सपूतों को खोया है. सीमा का ये तनाव भी हमें सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम आपस में मिल कर नहीं रह सकते. 1947 से पहले जो हमारे अपने थे, जमीन पर रेखाएं खिचने के बाद हमारे सबसे बड़े दुश्मन हो गये हैं. आतंकवाद की खेती उन्हीं जगहों पर होने लगी है, जिन पर कभी हमारे पूर्वज गर्व करते रहे होंगे. ये समय का ही चक्र है, लेकिन जीवन उस दीये के समान हमेशा चल रहा है, जिसमें अंधकार को भगाने की शक्ति है. दीपक जलते हुये चारों ओर उजाला फैलाता है, लेकिन अपने नीचे उस अंधकार को समेट लेता है.
हम जिस इलाके में काम करते हैं, वहां के रहनेवाले बीएसएफ के जवान जितेंद्र सिंह की चिता की आग अभी ठंडी नहीं पड़ी होगी. 24 घंटे पहले उस वीर शहीद का हमने अंतिम संस्कार होते देखा है. कैसा जन-सैलाब उमड़ा था रक्सौल के सिसवा गांव में तिलावे नदी के किनारे. किस तरह से पति को खोनेवाले जितेंद्र की पत्नी अपने बच्चों को भी बीएसएफ में भेजने की बात कह रही थीं. आखिर कोई बात तो है इस देश की मिट्टी में, जिसमें एक पत्नी अपने पति की जलती हुई चिता के सामने यह कहती है. यहां मुङो फिर वही चिराग की बात याद आती है कि वो लगातार जलता रहे. इस दिवाली अपने घर पर चिराग तो जलते हुये देख रहा हूं, लेकिन पर्व का वो उत्साह नहीं है.
कल के कवि सम्मेलन के दौरान दो कवियत्रियां थीं, जो खुद शिक्षक हैं, नाम दोनों का एक हैं पूनम, लेकिन उपनाम में सिंह और सिन्हा का फर्क है. दोनों के बच्चे देश की सीमा की निगहबानी में लगे हैं, जब वो कविता पाठ कर रही थीं, तो उनके शब्दों में वह भाव दिख रहे थे. इससे यह भी महसूस करने की कोशिश कर रहा था कि वो मां क्या सोचती होगी, जिसका बेटा देश की रक्षा के लिए सरहद पर तैनात है.
हमेशा चिराग जलने का मतलब, उस निरंतरता से लगता है, जिसे हम अमरत्व कहते और समझते हैं. ये हमें पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, क्योंकि समय के साथ चीजें बदलती हैं. धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर की हालत पर नजर जाती है, तो तीन दशक पहले का वो समय याद आता है, जब वहां शांति थी. कैसे देश-विदेश की सैलानी उस पावन भूमि पर जाते थे. खैर सैलानियों के आने-जाने का सिलसिला तो अभी भी नहीं थमा है, लेकिन हालात बदलने से कम जरूर हुआ है. हाल के सालों की बात करें, तो इस साल सीमा पर जितना तनाव है, वैसा नहीं था. तनावपूर्ण माहौल के बीच दिवाली आयी है. बीते दिनों में हमने भारत मां के तीन वीर सपूतों को खोया है. सीमा का ये तनाव भी हमें सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम आपस में मिल कर नहीं रह सकते. 1947 से पहले जो हमारे अपने थे, जमीन पर रेखाएं खिचने के बाद हमारे सबसे बड़े दुश्मन हो गये हैं. आतंकवाद की खेती उन्हीं जगहों पर होने लगी है, जिन पर कभी हमारे पूर्वज गर्व करते रहे होंगे. ये समय का ही चक्र है, लेकिन जीवन उस दीये के समान हमेशा चल रहा है, जिसमें अंधकार को भगाने की शक्ति है. दीपक जलते हुये चारों ओर उजाला फैलाता है, लेकिन अपने नीचे उस अंधकार को समेट लेता है.
हम जिस इलाके में काम करते हैं, वहां के रहनेवाले बीएसएफ के जवान जितेंद्र सिंह की चिता की आग अभी ठंडी नहीं पड़ी होगी. 24 घंटे पहले उस वीर शहीद का हमने अंतिम संस्कार होते देखा है. कैसा जन-सैलाब उमड़ा था रक्सौल के सिसवा गांव में तिलावे नदी के किनारे. किस तरह से पति को खोनेवाले जितेंद्र की पत्नी अपने बच्चों को भी बीएसएफ में भेजने की बात कह रही थीं. आखिर कोई बात तो है इस देश की मिट्टी में, जिसमें एक पत्नी अपने पति की जलती हुई चिता के सामने यह कहती है. यहां मुङो फिर वही चिराग की बात याद आती है कि वो लगातार जलता रहे. इस दिवाली अपने घर पर चिराग तो जलते हुये देख रहा हूं, लेकिन पर्व का वो उत्साह नहीं है.
कल के कवि सम्मेलन के दौरान दो कवियत्रियां थीं, जो खुद शिक्षक हैं, नाम दोनों का एक हैं पूनम, लेकिन उपनाम में सिंह और सिन्हा का फर्क है. दोनों के बच्चे देश की सीमा की निगहबानी में लगे हैं, जब वो कविता पाठ कर रही थीं, तो उनके शब्दों में वह भाव दिख रहे थे. इससे यह भी महसूस करने की कोशिश कर रहा था कि वो मां क्या सोचती होगी, जिसका बेटा देश की रक्षा के लिए सरहद पर तैनात है.
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