मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

एनएच-104 आपको तिलमिला देगा

उत्तर बिहार की सड़कें-एक
सीतामढ़ी से शिवहर की दूरी 25 किलोमीटर है. फोरलेन के जमाने में इसे तय करने में 25 से 30 मिनट का समय लगता, लेकिन अगर आप ये सोच कर इस पर चलेंगे, तो आपको निराशा के साथ खीझ भी होगी, क्योंकि ये दूरी पूरी करने में लगभग दो घंटे का समय लगेगा. पहले तो सीतामढ़ी की की सकरी सड़कें आपकी परीक्षा लेंगी, जब आप शहर से बाहर आयेंगे, तो कुछ दूर डबल लेन रोड मिलेगी, जिस पर अपकी गाड़ी हवा से बात करने जैसी स्पीड ले लेगी, लेकिन ये स्थिति कुछ ही मिनटों में खत्म हो जायेगी. आपका सामना एनएच-104 कही जानेवाली सिंगल रोड से होगा, जो दोनों ओर से टूटी है, सड़क के बीच में गड्ढे हैं. दो जिलों को जोड़नेवाली इस सड़क पर वाहनों का दबाव है, जिसकी वजह से लगातार धूल उड़ती रहती है. अगर आप बाइक से हैं, तो धूल से नहा जायेंगे. कार से जा रहे हैं, तो हिचकोले लेती सड़क  आपके धैर्य की परीक्षा लेनी शुरू कर देगी.
25 अक्तूबर 2015 को जब दिन में मैं इस रोड गुजर रहा था, तो तमाम सवाल एक साथ मन में आने लगे. सबसे पहला यही कि इस सड़क से आने का फैसला क्यों किया? पहले पता करके क्यों नहीं चला? फिर हर साल सरकार सैकड़ों किलोमीटर सड़क बनाने की बात करती है, लेकि एनएच ही सिंगल रहे, तो क्या? इससे पहले बेतिया से बगहा के सिंगल एनएच पर धैर्य की परीक्षा दे चुका हूं. डेढ़ घंटे का सफर छह घंटे में तय किया था, क्योंकि गन्ना लदे टैक्ट्रर-ट्रालियां लगातार डरा रही थीं. पूरे रास्ते में राम-राम करते ही बीता. किसी तरह जब पार हुआ था, तब जाकर सुकून मिला था. आज दूसरी बार ऐसा हो रहा था.
रास्ते में बताया गया कि यह सड़क टू-लेन बन रही है. कहीं-कहीं पर काम शुरू हो गया है. कुछ जगह पर मिट्टी भराई का काम हो रहा है, जो दिख भी रहा था, लेकिन सवाल ये है कि अब तक इसका काम क्यों नहीं हुआ? क्या शिवहर-सीतामढ़ी जिलों के साथ ऐसा व्यवहार ठीक है? अगर नहीं, तो वे सब सुविधाएं क्यों नहीं इन जिलों (खास कर शिवहर) को मिल रहीं, जो अन्य जिलों में हैं. अभी तक यहां कोई डिग्री कॉलेज नहीं खुल सका है. इसके लिए लंबा आंदोलन चला है. अखबार के जरिये हम लोगों ने भी लंबे समय तक ये बात उठायी है, तब जाकर डिग्री कॉलेज की घोषणा हुई है. रेल लाइन शिवहर तक अभी नहीं आयी है. ऐसी और तमाम सुविधाएं हैं, जो यहां पर नहीं हैं, जिनको गिनाने लगूंगा, तो एक लंबी लिस्ट होगी, लेकिन ये सड़क जो परीक्षा ले रही थी, वो और गंभीर होती जा रही थी, क्योंकि रास्ता कटने के बजाय लंबा होता जा रहा था.
घंटा भर बीता, तो पता किया, पता चला अभी 12 किलोमीटर और जाना है. स्पीड ब्रेकर जैसी इस सड़क पर मनमाना राग भी देखने को मिला. एक जगह बीच सड़क पर दो ट्रक खड़े थे, जिनके चालकों का कहना था कि आपको बगल के रास्ते से जाना होगा. हम ट्रक सड़क से नहीं हटायेंगे, कुछ ही देर में वाहनों की लंबी लाइन लगने लगी और जब कुछ वाहन चालकों ने कहा कि हम तो सड़क से ही जायेंगे, तब ट्रक चालकों का दिल पसीजा और उन्होंने जाने का रास्ता दिया. सड़क के किनारे जो बाजार हैं. वहां पर दुकानों में खुले में रखा सामान देख कर आश्चर्य हो रहा था और सवाल उठ रहा था कि इसे कौन खाता होगा, क्योंकि मैंने रास्ते में एक जगह पानी की बोतल ली, जिस पर कई पर्त धूल जमा थी? उसका पानी पीने की हिम्मत नहीं हुई. जैसे-तैसे उसे रख लिया, क्योंकि पैसा चुकाया था, सो फेंक भी नहीं सकता था, लेकिन इसके साथ इस इलाके में रहनेवाले लोगों के बारे में सोच रहा था. कैसी परेशानी ये लोग ङोलते होंगे? इन्हीं सवालों के बीच जब ये पता चला कि शिवहर अब पांच किलोमीटर दूर रह गया है, तो थोड़ा संतोष हुआ कि अब मंजिल पर पहुंचनेवाला हूं, लेकिन तब तक डेढ़ घंटे का समय निकल चुका है. जिनते उत्साह और जोश के साथ सीतामढ़ी से चला था, वो ठंडा पड़ चुका था.

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