शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

चमेला कुटीर-2-हमने काम नहीं किया, तो पुरस्कार क्यों लेंगे?

सच्चिदा बाबू से एक बार मिलना हुआ, तो उसके बाद मन में सवालों का जाल था. आखिर इस समय में जब सब लोग सुख-सुविधाओं के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं. रिश्ते दरक रहे हैं. ऐसे में कोई व्यक्ति सारी सुख-सुविधाओं को छोड़ कर कैसे पूरा जीवन बिताने का संकल्प कर लेता है और उसी में रम जाता है. सच्चिदा बाबू जैसे उदाहरण विरले ही देखने को मिलते हैं. इसके साथ उनका मौलिक चिंतन, जो दो दशक पहले ही ये भांप लेता है कि आनेवाले सालों में भारतीय राजनीति की दिशा क्या होगी. कैसे एक पार्टी का शासन खत्म हो जायेगा और संयुक्त सरकारें आयेंगी. सच्चिदा बाबू ने इस पर किताब लिखी, तब शायद लोगों को लगा होगा कि ये होनेवाला नहीं है, लेकिन 1989 के बाद भारतीय राजनीति में संयुक्त सरकारें ही हकीकत बन गयीं, जो अब तक जारी हैं.
अमेरिका और यूरोप के देश किस तरह से दुनियाभर के प्राकृतिक संसाधनों पर राज करते हैं. कैसे उन्होंने दूसरे देशों को अपना उपनिवेश बना लिया है. वहां उत्पादित होनेवाली प्राकृतिक चीजों को अपने यहां ले जा रहे हैं. ऐसे ही अगर देश की बात करें, तो वहां भी कुछ शहरों तक ही समृद्धि सिमट कर रह गयी है. सारे देश के प्राकृतिक संसाधन का प्रयोग चंद लोगों के हाथों में चला जाता है. कैसे वो उसका दोहन करते हैं. इससे स्थानीय स्तर पर कैसे लोगों का विस्थापन होता है, उस पर जिनका हक होता है, उन्हें किस तरह से परेशननियों का सामना करना पड़ता है. इस दर्द को सच्चिदा बाबू ने अपनी किताब इंटरनल कॉलोनी में लिखा है. बात शुरू होने पर वह बताते हैं कि आज विश्व के सामने किस तरह का संकट खड़ा है. हम कैसे ऐसा कचरे का ढेर इकट्ठा कर रहे हैं, जो सदियों तक नहीं नष्ट होगा. इससे आनेवाली पीढ़ियों को हम कौन सा वातावरण देकर जायेंगे. कैसे हम अपने आप को नष्ट करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
पहले शौचालय, फिर देवालय पर अभी खूब बात हो रही है. सरकार हर साल शौचालय बनाने का लक्ष्य तय कर रही है, लेकिन शौचालय में लगनेवाली सीट खराब होने पर क्या आसानी से नष्ट हो जायेगी. ये सवाल सच्चिदा बाबू करते हैं. कहते हैं, सरकार की बात सही है, लेकिन इसके लिए राष्ट्रपिता महत्मा गांधी के बताये रास्ते का अनुशरण करना चाहिये. गांधी जी गड्ढा खोद कर शौच करने और फिर उसे मिट्टी से ढक देने की बात कहते थे. इससे गंदगी भी नहीं फैलेगी और हम ऐसा कचरा भी नहीं पैदा करेंगे, जो नष्ट नहीं हो सके. ऐसे ही ऊर्जा पर आधारित अर्थव्यवस्था की बात, जिसमें तेल और कोयले की जरूरत होती है. दोनों ही हमें जमीन से मिलते हैं. इनका एक भंडार है. अगर ये भंडार खत्म हो गया, तो क्या होगा. इस पर भी चिंतन की जरूरत है. सच्चिदा बाबू कहते हैं कि कैसे हम सूर्य के सहारे अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं.
एक मुलाकात को बाद बार-बार मनिका जाने की इच्छा होती है, जब मौका मिलता है, तब चला भी जाता हूं, लेकिन कम हो पाता है. मुङो लगता है कि लगभग तीन साल पहले की बात होगी. रात के समय एक समाचार आया, जिसमें साहित्य से जुड़े कुछ लोगों को सम्मानित करने का फैसला बिहार सरकार ने लिया था. उसमें सच्चिदा बाबू का नाम था. दादा साहेब फाल्के अवार्ड के लिए. हमने सच्चिदा बाबू के पड़ोसी जगत जी को फोन लगाया और कहा कि बात करवा दें. कुछ देर बाद सच्चिदा बाबू लाइन पर थे. हमने कहा कि ये हमारे लोगों के लिए खुशी की खबर हो सकती है, लेकिन आपके लिए नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं कि आप जब ये सूचना सुनेंगे, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी, लेकिन मुङो लगा कि बताना जरूरी है. जैसे ही मैंने पुरस्कार के बारे में जानकारी दी, तो सच्चिदा बाबू ने कहा कि मैंने साहित्य में काम किया ही नहीं है, तो यह पुरस्कार कैसे ले सकता हूं.
जारी..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें