मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

यजुआर-गंगेया- क्या, आप भी हैरान-परेशान हुये साहब?

क्या आप भी हैरान-परेशान हुये साहब? ये सवाल कल देर रात (24 अक्तूबर 2016) को उस समय मन में आया, जब फेसबुक पर देखा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय ने उन दो पुलों (कटरा के पीपा पुल व बसघट्टा के जमींदोज पुल) से गुजरते हुये तस्वीर पोस्ट की है, जिनका जिक्र मैंने अपनी 23 अक्तूबर की पोस्ट..ये तो अलग देश जैसा है महराज..में किया था. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के साथ जिलाध्यक्ष व इसी क्षेत्र के पूर्व विधायक रामसूरत राय भी थे. हमें, लगता है कि रामसूरत राय ने यहां की दुश्वारियों की चर्चा जरूर अपने प्रदेश अध्यक्ष से की होगी, क्योंकि वो भी उसी जमात का हिस्सा हैं, जिससे यहां की जनता न्याय मांग रही है. भले ही विपक्ष में हैं, लेकिन लंबा समय ऐसा भी बीता है, जब वो पक्ष में थे. तब शायद इस गली कभी नहीं आये होंगे.
जिस अंदाज में मंगल पांडेय जी की तस्वीरें देखने को मिलीं, उससे भी कई सवाल उपजे, लेकिन उनका जिक्र फिर कभी. अभी इसी इलाके की दुश्वारियों की बात. उस स्थान जहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय जी गुजरे, वहां से बमुश्किल डेढ़ से दो किलोमीटर दूर है गंगेया. यह धरती भी बड़ी उर्वरा है. यहां जन्म लेनेवाले लोग देश-दुनिया में इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं, लेकिन अपने गांव को त्रसदी से मुक्ति का इंतजार इन्हें भी है.
गांव की स्थिति ये है कि यहां बीच गांव से बागमती गुजरती है, जो गांव को दो भागों में बांटती है, जो बागमती के इस पार हैं, उनकी दुश्वारियां तो कुछ कम हैं, क्योंकि उन्हें हर बार उस चचरी पुल को नहीं पार करना पड़ता है, जिसे पार करते समय तमाम देवी-देवता याद आने लगते हैं. कुछ लोग हनुमान चालिसा का पाठ करने लगते हैं. कैसे हम सही-सलामत इस पार से उस पार चले जायें. इसी साल मेरा भी जाना हुआ, तो मैंने भी यही अनुभव किया और जितने लोग साथ थे, सब यही बात कह रहे थे. से समस्या हाल-फिलहाल की नहीं है दशकों पुरानी है, लेकिन अब तक कोई व्यवस्था नहीं हो सकी. बागमती की किनारे बसे घरों पर बारिश के दिनों में कटाव का संकट रहता है.
यहां के लोग कैसे रहते हैं, क्योंकि ये वो नदी है, जिसमें बिना बारिश ही बाढ़ आती है, क्योंकि बारिश नेपाल में होगी और बाढ़ यहां आ जायेगी, देखते ही देखते सरकार की ओर से बनायी गयी चमचमाती सड़क कई फुट पानी में डूब जाती है, तब यहां सरकारी पर्यटन शुरू होता है. बड़े-बड़े साहब सव्रे को पहुंचते हैं. सड़क पर भरे पानी के बीच खड़े होते हैं, तो फोटो फोटो खिचता है. बताया जाता है कि साहब ने पानी के बीच जाकर लोगों का हाल जाना और जल्दी से जल्दी राहत बांटने का निर्देश दिया है. यही हर साल होता आ रहा है.
हाल में गंगेया के लोगों ने भी पीपा पुल बनाने का फैसला लिया है. इसके लिए कोई सरकारी मदद नहीं दी जा रही है. गांव के लोगों ने ही चंदा करके पुल बनाने का काम शुरू किया है. क्या सरकारी मदद से पुल नहीं बन सकता है? क्या यहां आनेवाले सरकार के नुमाइंदों व जन प्रतिनिधियों को ये नहीं लगता है कि लोगों को सहूलियत मिले? शायद नहीं, अगर लगता, तो अब से सालों पहले यहां पीपा पुल बन चुका होता और जिस तरह से अन्य चीजों में सरकारी कर्मचारियों की तैनाती होती है. उसी तरह से उस पुल के रख-रखाव में वो लगा दिये जाते, तब यहां के लोगों को आभास होता कि हम भी इसी प्रदेश और जिले के रहनेवाले हैं. हमारा ख्याल रखा जाता है, लेकिन यहां हमारी व्यवस्था कोसों पिछड़ी नजर आती है.
गंगेया से लेकर पहसौल बाजार, नगवारा व यजुआर तक, भले ही दुश्वारियां हैं, लेकिन निजी व्यवस्था यहां सरकारी पर भारी नजर आती है. नगवारा के लोग बताते हैं कि यहां कभी-कभी बीडीओ और सीओ साहब आते हैं और खानापूर्ति करके चले जाते हैं. सबसे बड़ी समस्या यहां बिजली की है, लेकिन इसके बीच भी बदलते समय में यहां निजी कंपनियां सक्रिय हैं. उनका इकबाल सरकार से ज्यादा नजर आता है. नगवारा और यजुआर दोनों में दो-दो मोबाइल टावर लगे हैं, जो जनरेटर से चलते हैं. 24 घंटे यहां के लोगों को नेटवर्क उपलब्ध कराते हैं. बिना फायदे के तो कंपनियां टावर ऐसे गांवों में लगायेंगी नहीं, यह तो मानी हुई बात है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सरकारी व्यवस्था को भी ऐसे ही नहीं सोचना चाहिये? और सुविधाएं मुहैय्या करानी चाहिये. इस मर्म को प्रदेश के विपक्षी दल भाजपा के अध्यक्ष समझ सके या नहीं. ये तो वही बता सकते हैं, लेकिन यहां की जनता की तरह हम भी यही उम्मीद करते हैं कि उन्होंने व्यवस्था देखी है, तो शायद कुछ करें. जिस दिन यहां के लिए काम होगा. हमें भी बहुत खुशी होगी.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें