बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

चुनाव यात्रा-6- जिन्न नहीं निकलेगा, देख लीजियेगा

मोतिहारी में चाय पर चुनाव चर्चा के बाद बारी शहर के गणमान्य लोगों से मुलाकात की थी. पहले से तय था, सो सब लोग सुबह की सैर के बाद इकट्ठा हो गये थे. लगातार बुलावा आ रहा था. व्यापारी, डॉक्टर, इंजीनियर, सामाजिक संगठनों से जुड़े कुछ लोग और कुछ पूर्व अधिकारी थे. बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ, तो ऐसी चर्चा की ओर हम लोग बढ़ने लगे, जो चाय की दुकान के ठीक उलट थी. ये शहर का ऐसा तबका था, जो जनमत की बात कर रहा था, लेकिन उसका आधार नहीं दिख रहा था. बातचीत के दौरान ही एक व्यापारी बोल पड़े, अभी चाहे जो विरोध हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक सभा होगी और माहौल बदल जायेगा. हम जानते हैं ना.
बातचीत के दौरान कहा गया कि कोई जिन्न इस बार ईवीएम से नहीं निकलनेवाला है. पहले से रिजल्ट तय है, वही सामने आयेगा. इस दौरान हमारे सवालों को विपक्षी करार दिया गया, जबकि ये ऐसे सवाल थे, जिन्हें चुनाव में दरकिनार नहीं किया जा सकता था. खैर बातचीत पूरी हुई और हम आगे बढ़ने को तैयार थे. हमारा अगला पड़ाव बेतिया का था, लेकिन हम कुछ और देर मोतिहारी की चुनावी फिजां को देखना चाहते थे. इसके लिए हम पैदल ही मोतीझील के किनारे टहलने लगे. इस समय तक झील के बीच की सड़क के दोनों किनारे दुकानें सज गयी थीं फुटपाथ पर. तमाम तरह की चीजें इन दुकानों पर मिल रही थीं. इसी बीच हमने एक दुकानदार से पूछ दिया कि चुनाव में वोट देना है. कहने लगा कि वोट तो देंगे, लेकिन अभी से काहे परेशान हों, जब आयेगा, तब देखेंगे, जबसे बड़े हुये हैं वोट देते आ रहे हैं, लेकिन हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है. ऐसे वोट का मेरे लिए कोई मायने नहीं है, लेकिन कर्तव्य है, तो उसे निभाऊंगा जरूर.
खैर कर्तव्य निभाने के बीच चारों तरफ से अतिक्रमण की श्किार मोतीझील पर नजर पड़ी, तो हमारे साथी कहने लगे कि ये फिर चुनावी मुद्दा है. इसको सुंदर बनाने की बात अरसे से चल रही है, लेकिन अभी तक कोई काम नहीं हुआ है. हर बार लगता है कि हमारे शहर में ऐसा काम होगा, जिसे देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आयेंगे, लेकिन हर बार हम लोग ठगे से रह जाते हैं. मोतीझील का इलाका बड़ा लंबा था, लेकिन लगातार सिकुड़ता जा रहा है. लोगों ने घर बना लिये हैं. सरकार की ओर से घोषणाएं होती हैं, लेकिन काम नहीं होता है. मोतीझील के पानी में जलकुंभी और किनारे पर डाला गया शहर का कूड़ा बहकर बीच में आ गये थे. दोनों आपस में मिल कर एक ऐसा माहौल तैयार कर रहे थे, जिसे देख कर भय लग रहा था.
बातचीत के दौरान हम फ्लैशबैक में चले गये, जब मार्च-अप्रैल के महीने में कवि सम्मेलन हुआ था, तब कवियों ने कहा था, शहर के लोगों के सामने. आपकी मोतीझील बहुत प्यारी है, लेकिन उसकी हालत बहुत खराब है. अगर कभी आप लोग स्वच्छता अभियान चलायें, तो हमें बुलाइयेगा, हम श्रमदान करने अपने खर्च से आयेंगे, क्योंकि हम चाहते हैं कि मोतीझील फिर से शहर की शान बनें. कवियों ने मोतीझील के पुराने किस्से सुने थे. इससे इतना प्रभावित थे, लेकिन चुनाव में मोतीझील मजह एक मुद्दा थी, जो अब भी मुद्दा ही बनी हुई है.
जारी..

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