लगभग साढ़े पांच साल पहले जब मुजफ्फरपुर आया था, तो सबसे पहले किसी व्यक्ति के यहां जाना हुआ था, तो वो हैं डॉ गोपाल जी त्रिवेदी, पूर्व कुलपति पूसा विश्वविद्यालय. शहर के शोर-शराबे से दूर डॉ त्रिवेदी रिटायर होने के बाद अपने पैतृक गांव में रहते हैं. वहीं, पर उन्नत खेती करवाते हैं और 85 साल की उम्र में भी इतना सक्रिय रहते हैं, उतना शायद ही कोई युवा रह सके.
बंदरा प्रखंड के मतलूपुर गांव में डॉ त्रिवेदी का आवास है. पेड़-पौधों से घिरे उनके घर से चंद कदम की दूरी पर ही बाबा खगेश्वर नाथ का पुरातन मंदिर है, जिसके विकास के लिए डॉ त्रिवेदी लगातार काम कर रहे हैं. पहली बार मुलाकात हुई, तो रविवार का दिन था. सुबह ही युवा साथी अविनाश के साथ उनके आवास पर पहुंच गया. अविनाश ने ही डॉ त्रिवेदी के बारे में बताया था और कहा था कि आपको उनसे मिलना चाहिये. इसी के बाद हम इतनी बड़ी हस्ती के सामने थे. बड़े ही आत्मीय ढंग से डॉ त्रिवेदी हम लोगों से मिले. इसके बाद गांव-समाज और खेती पर प्रमुख रूप से बात हुई.
डॉ त्रिवेदी ने बताया कि वह गांव में रहते हैं और यहीं पर लोगों को खेती के प्रति प्रोत्साहित करते हैं. पेड़ लगाने का अभियान भी वो बड़े पैमाने पर चला रहे हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि हम कभी निगेटिव बात नहीं करते हैं. गांव के कई लोग आते हैं, जो एक-दूसरे के बारे में बात करना चाहते हैं, लेकिन हम उन्हें शुरुआत में ही रोक देते हैं. कहते हैं कि अगर कोई अच्छी बात हो, तो करो, नहीं तो ये सुनने का समय मेरे पास नहीं है. पहली मुलाकात में ही डॉ त्रिवेदी की जो छाप मन पर बनी, वो समय के साथ और गहरी होती गयी. डॉ त्रिवेदी की जो बात मुङो सबसे अच्छी लगती है, उसमें उनका पॉजिटिव बात करना सबसे महत्वपूर्ण हैं. अभी डॉ त्रिवेदी मक्का का उत्पादन अपने यहां कैसे बढ़े और कैसे हम मक्का उत्पादन में अमेरिका को पीछें छोड़ दें, इस पर काम कर रहे हैं. वो मक्का की खेती करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. गांव में रह कर वो खेती की मूक क्रांति को अंजाम दे रहे हैं.
बंदरा प्रखंड के मतलूपुर गांव में डॉ त्रिवेदी का आवास है. पेड़-पौधों से घिरे उनके घर से चंद कदम की दूरी पर ही बाबा खगेश्वर नाथ का पुरातन मंदिर है, जिसके विकास के लिए डॉ त्रिवेदी लगातार काम कर रहे हैं. पहली बार मुलाकात हुई, तो रविवार का दिन था. सुबह ही युवा साथी अविनाश के साथ उनके आवास पर पहुंच गया. अविनाश ने ही डॉ त्रिवेदी के बारे में बताया था और कहा था कि आपको उनसे मिलना चाहिये. इसी के बाद हम इतनी बड़ी हस्ती के सामने थे. बड़े ही आत्मीय ढंग से डॉ त्रिवेदी हम लोगों से मिले. इसके बाद गांव-समाज और खेती पर प्रमुख रूप से बात हुई.
डॉ त्रिवेदी ने बताया कि वह गांव में रहते हैं और यहीं पर लोगों को खेती के प्रति प्रोत्साहित करते हैं. पेड़ लगाने का अभियान भी वो बड़े पैमाने पर चला रहे हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि हम कभी निगेटिव बात नहीं करते हैं. गांव के कई लोग आते हैं, जो एक-दूसरे के बारे में बात करना चाहते हैं, लेकिन हम उन्हें शुरुआत में ही रोक देते हैं. कहते हैं कि अगर कोई अच्छी बात हो, तो करो, नहीं तो ये सुनने का समय मेरे पास नहीं है. पहली मुलाकात में ही डॉ त्रिवेदी की जो छाप मन पर बनी, वो समय के साथ और गहरी होती गयी. डॉ त्रिवेदी की जो बात मुङो सबसे अच्छी लगती है, उसमें उनका पॉजिटिव बात करना सबसे महत्वपूर्ण हैं. अभी डॉ त्रिवेदी मक्का का उत्पादन अपने यहां कैसे बढ़े और कैसे हम मक्का उत्पादन में अमेरिका को पीछें छोड़ दें, इस पर काम कर रहे हैं. वो मक्का की खेती करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. गांव में रह कर वो खेती की मूक क्रांति को अंजाम दे रहे हैं.
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