शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

चुनाव यात्रा- 3: जोर है और जोर रहेगा

बस यात्रा भी चुनाव कवरेज में अहम रही. मुजफ्फरपुर से समस्तीपुर जाने के दौरान दो एक बस बदलनी पड़ी. मुजफ्फरपुर की सीमा तक एक बसे ने ले जाकर उतार दिया. बस में इतनी भीड़ कुछ कहते नहीं बन रहा था किसी तरह बोनट पर जगह मिली और यात्र शुरू हुई. बस के आगे बढ़ते ही चुनाव पर चर्चा शुरू समीकरण बनने और बिगड़ने की बात होने लगी. एक मास्टर साहब कहने लगे, आप लोग जितना गुड़ा-भाग लगा लीजिये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक दौरा होगा, रुख बदल जायेगा. मास्टर साहब के इतना बोलते ही एक महिला शिक्षिका ने कहा, 2014 बीत गया है. ये लोकसभा नहीं विधानसभा का चुनाव है. कहां हैं आप. क्या हुआ है, पिछले 17 महीने में आप बतायेंगे. दाल का क्या दाम है? सब्जी किस भाव में मिल रही है? तेल का दाम कहां जा रहा है? किसान कैसे परेशान हो रहा है? कहां पर सुधार हुआ है?
सवालों की झड़ी के बीच बस में सवारियों का जोर भी बढ़ता जा रहा था. गेट पर तीन-चार लोग लटके हुये थे, जिनके बैग घूमते-फिरते हमारे पास आ गये और उन्हें संभालने के जिम्मेवारी हमको मिल गयी, क्योंकि हम बोनट के पास थे. खलासी ने कहा कि अभी धरिये, जब उतरने लगेंगे, तो बढ़ा दीजियेगा. बस में हम नये थे, बाकी लगभग सब लोग एक-दूसरे के परिचित थे, जिनका लगभग रोज इसी बस से आना जाना होता था, क्योंकि बस स्कूल टाइम से जा रही है. मुङो भी समस्तीपुर पहुंचने की जल्दी थी, क्योंकि तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी के क्षेत्र सरायरंजन को देखने की ललक थी, जहां को लेकर तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे थे.
इधर, शिक्षिका के सवालों से तिलमिलाए मास्टर जी कहने लगे ऐसे थोड़े हो जाता है, समय लगता है. इतना पुराना रोग है. ऐसे ठीक हो जायेगा. काम हो रहा है, कुछ साल लगेंगे सुधार में, तब असर दिखेगा. एतना जल्दी नतीजा पर नहीं पहुंचना चाहिये. अभी कुछ समय दीजिये. बताइये ना कि जब से भाजपा से गंठबंधन टूटा है, बिहार का क्या हाल हुआ है? यहां की बात काहे नहीं करती हैं? यहां का भी तो देखना होगा, इसको ऐसे थोड़े छोड़ा जा सकता है. यह तो देखना पड़ेगा और जो आप कह रही हैं ना, देखियेगा, जोर रहा है और जोर रहेगा.
जारी..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें