बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

चमेला कुटीर-4- तब छह आने में किलोभर मिलती थी दाल

1960 से हम अभी 56 साल आगे बढ़े हैं, लेकिन मंहगाई कितने गुना आगे बढ़ी है. इसका अंजादा सच्चिदाबाबू की उस डायरी से लगा सकते हैं, जो उन्हें घर की सफाई के दौरान मिली. उसमें 1960 का हिसाब लिखा है. डायरी का जिक्र करते हुये सच्चिदा बाबू कहते हैं कि तब छह आने में एक किलो दाल मिलती थी. कपड़ा धोने का साबुन आठ आने में मिलता था. टमाटर दो आने में किलो भर मिल जाता था. एक पाव मक्खन बीस आने का आता था. किरोसिन ढाई आने का लीटर था. अब इन चीजों की क्या कीमत है. बताने की जरूरत नहीं है. खास कर दाल का क्या हाल हुआ है. अभी भी दाल 120-140 रुपये किलो तक में बिक रही है. ऐसे में हमने कैसा विकास किया है, कहने की जरूरत नहीं है. महंगाई का विकास जरूर हुआ है.
2012 में सच्चिदा बाबू से बात की थी, तो उन्होंने बताया था कि किस तरह से बढ़ती जनसंख्या भारत जैसे देशों के लिए परेशानी का सबब है, लेकिन विकसित देशों के साथ ये बात नहीं है. वहां की आबादी नियंत्रित है. अपने देश में मध्यम वर्ग है, जो सोचता है कि ज्यादा बच्चे होंगे, तो उसके लालन-पालन में परेशानी होगी, लेकिन गरीब व मजूदरों के सामने ये समस्या नहीं है. वे सोचते हैं कि हमारे यहां जितने ज्यादा लोग होंगे, उतना अच्छा रहेगा. सच्चिदा बाबू कहते हैं कि अपने देश में भविष्य को लेकर कोई योजना नहीं है, जबकि विकसित देशों को आप देख सकते हैं कि वहां की आबादी या तो स्थिर है या फिर घट रही है.
सच्चिदा बाबू पानी संकट के बारे में भी अगाह करते हैं. उनका कहना है कि पानी, वो भी पीने का लायक मीठा पानी, इसकी लगातार कमी हो रही है, जबकि मानव से लेकर पशुओं तक के लिए पानी जरूरी है, लेकिन अत्यधिक दोहन की वजह से पीने का पानी लगातार घट रहा है. अब जटिल रासायनिक प्रक्रिया से पानी को साफ करना पड़ता है, तो पीने लायक होता है, लेकिन इस तक गरीब लोगों की पहुंच नहीं है. वो बोतल बंद पानी नहीं खरीद सकते हैं. इससे इतर अगर हम सच्चिदा बाबू की जीवन शैली की बात करें, तो उनके खपरैल के घर में प्रकृति के अनुरूप व्यवस्था है, जब सूर्य उत्तरायण होते हैं, तो गर्मी पड़ती है. उसके ताप से बचने के लिए पेड़ों की छांव चाहिये, सो सच्चिदा बाबू के आवास के उत्तर में पेड़ हैं, जबकि सूर्य के दक्षिणायण होने पर सर्दी पड़ती है, तो सूर्य की गर्मी अच्छी लगती है. सच्चिदा बाबू के आवास पर भी दक्षिण की ओर खाली है. उधर पेड़ नहीं हैं. घर में बिजली नहीं है, तो फैन की बात ही नहीं है, लेकिन गर्मी के दिनों में भी वह आराम से रहते हैं. उनके आवास में बिना पंखा बैठना अच्छा लगता है.
जारी..

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