शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

शहादत को सलाम- बेटी से किया वादा अब कभी पूरा नहीं कर पायेंगे जीतेंद्र


रक्सौल जैसे सीमावर्ती क्षेत्र से निकल कर बीएसएफ (बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स) में शामिल हुये जीतेंद्र कुमार सिंह को सेवा में 23 साल पूरे होनेवाले थे. 20 साल की नौकरी पर रिटायरमेंट मिलनेवाला था, लेकिन तीन साल का एक्सटेंशन ले लिया, ताकि देश की सेवा कर सकें. हाल के महीनों में जब सीमा  पर तनाव बढ़ा, तो जीतेंद्र को आनेवाले दिनों का आभास हो गया था. पाक की नापाक हरकतों से वो सरहद की सुरक्षा करते हुये रोज रू-ब-रू होते थे. सामने से पाक रेंजर्स कब फायरिंग शुरू कर दें. कब मोटर्र से गोले दागने लगें, कोई भरोसा नहीं रहता.
इधर, जितेंद्र का परिवार रक्सौल के जिस घर में रहता है. वह टीन का है. उसमें केवल एक छोटी से कोठरी बनी है, जो उनके पिता लक्ष्मी सिंह ने बनवायी थी. लक्ष्मी सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं. जितेंद्र के एक भाई हैं, जो अलग रहते हैं. मां-पत्नी व तीन बच्चे इसी टीन शेड में गुजारा कर रहे हैं. डेढ़ माह पहले जितेंद्र घर आये थे. बच्चों ने बहुत दबाव डाला था कि पापा घर बनवा लो, तब कहने लगे कि अगले साल मार्च में रिटायर होना है, तभी घर बनवायेंगे. अच्छा घर बनाना है. इसके बाद ड्यूटी पर गये, तो वहां के हालात के बारे में घरवालों को बताते थे. सप्ताह भर पहले फोन किया था, तब बच्चों से कहा था कि यहां सीमा पर हालात ठीक नहीं है. पता नहीं कब कौन शिकार हो जाये, पता नहीं है. उन्होंने अपनी बड़ी बेटी से कहा था कि बेटा अगर हम शहीद हो जायेंगे, तो तुम लोग रोना नहीं.
26 अक्तूबर की रात पाकिस्तान की ओर से की गयी फायरिंग में जीतेंद्र जख्मी हुये और जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया जाता, वो शहीद हो चुके थे. इधर, रक्सौल में जीतेंद्र का परिवार दिवाली की तैयारी में लगा था. पत्नी मोतिहारी में पढ़नेवाले बेटे को स्कूल के हॉस्टल से वापस लाने के लिए सुबह ही निकल गयी थी. बड़ी बेटी घर पर थी, जबकि छोटी स्कूल गयी थी. दिन में लगभग 11 बजे जब रक्सौल के लोगों को जीतेंद्र की शहादत की बात पता चली, तो वह उनके आवास पर इकट्ठा होने लगे, तब उनकी बेटी को किसी अनहोनी की आशंका हो गयी थी. कुछ ही देर में उसे इस बात का पता चल गया कि अब पापा इस दुनिया में नहीं हैं. वो शहीद हो चुके हैं.
जीतेंद्र के घर पर जो आ रहा था, उनके घर की हालत देख कर परेशान हो रहा था. किस हालात में हमारे देश की रक्षा करनेवाले जवान का परिवार रहता है. इसकी बात चली, तो बेटी बोल पड़ी कि पापा पिछली बार आये थे, तब कह कर गये थे कि मार्च में घर आयेंगे, तो अच्छा सा घर बनवायेंगे, तब तक तुम लोग इसी में किसी तरह से रहो, लेकिन अब पापा नहीं हैं. हमारे लिए घर कौन बनायेगा. ये कह कर वो जोर-जोर से रोने लगी, तो वहां मौजूद सैकड़ों की संख्या में लोगों की आंखें नम हो गयीं. सरकारी हुक्म लेकर पहुंचे अधिकारियों ने भी जब जीतेंद्र के घर की हालात देखी, तो वह भी परेशान हो उठे.
जीतेंद्र ने वतन की राह में अपनी जान कुर्बान कर दी, उनकी चर्चा सीमावर्ती रक्सौल में रहनेवाले हर व्यक्ति की जुबान पर है. वह कैसे देश के बारे में सोचते थे. इसकी झलक हमें उनके अंतिम फोन से मिलती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर हम शहीद हो गये, तो रोना नहीं. आखिर जीतेंद्र ने देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया है. अब हमारी बारी है कि हम उनके जज्बे व शहादत का सम्मान करें.

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