पिछले साल इन दिनों वोटिंग का दौर जारी था. उसी के साथ जारी थी मेरी चुनाव यात्र भी. उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में घूमने के बाद उस शहर के मिजाज को देखने और समझने की बारी थी, जिसमें मैं रहता हूं. इसके लिए मैं ऑफिस की गाड़ी छोड़ दी. रिक्शे व टेंपो का सहारा लिया. कुछ दूर टेंपो से यात्र की, तो उसमें मनमानी देखने को मिली. एक ही जगह जाने के एक टेंपो वाले पांच रुपये लिये, जबकि दूसरे ने दस रुपये, जब मैंने प्रतिवाद करने की कोशिश की, तो कहने लगा कि महंगाई का जमाना है, मैंने जो किराया बताया है, वो तो देना ही पड़ेगा. खैर, मैंने दस रुपये देकर किसी तरह से उससे मुक्ति पायी, लेकिन इसके साथ एक सबक भी. शहर में टेंपो को लेकर जो चर्चा होती है, वो अनायास नहीं है.
अब भी टेंपो वालों को देखता हूं, तो वह दिन याद आ जाता है, लेकिन उस यात्र के बाद मैंने तय किया और अब महीने में कम से दो-तीन बार टेंपो से जरूर चलता हूं. इसके अलावा पैदल चलना, तो मुङो खूब भाता है. कई किलोमीटर तक मैं चल सकता हूं. ये आदत मुङो बचपन से पड़ी, जब पढ़ने के लिए हम लोगों को पांच किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था. खेत की मेड़ों से होते हुये. हम लोगों में ये होड़ रहती थी कि कौन एक घंटा से कम समय में स्कूल पहुंचता है, बच्चे थे. दौड़ते हुये जाते थे, तो 45 मिनट लगता था. कभी-कभी आराम से चलने पर एक घंटा पांच मिनट. खैर ये दूरी हम लोगों को रोज तय करनी होती थी. अगर किसी दिन साइकिल पर बैठ कर जाने को मिल जाता था, तो हम इसे अपना सौभाग्य मानते थे. इसकी बात फिर कभी. मुजफ्फरपुर शहर में भी मैं खूब पैदल चलने की कोशिश करता हूं. कई बार परचित लोग रास्ते में मिल जाते थे, तो वह अपनी गाड़ी से छोड़ देने की बात करते हैं, तो उन्हें विनम्रता से मना करने का मन होता है, लेकिन कई बार ऐसा नहीं कर पाता हूं.
चुनाव की फिजां का पता लगाने के लिए मैं कई किलोमीटर पैदल भी चला. एक जगह इच्छा हुई रिक्शे से चलता हूं. रिक्शेवाले से बिना किराया तय किये मैं बैठ गया और वो चलने लगा. कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि कुछ छात्र बीच सड़क से लेकर किनारे तक फैले हुये जा रहे थे. सब आपस में बात करने में मशगूल थे. पीछे से रिक्शेवाले ने दो तीन बार घंटी बजायी, जब इसका असर छात्रों पर नहीं हुआ, तो कहने लगा कि जरा किनारे हट जाओ भारत के भविष्य. रिक्शेवाले के मुंह से ऐसी बात सुन कर मुङो आश्चर्य हुआ. मुझसे नहीं रहा गया. मैंने उससे पूछा, तो कहने लगा कि और क्या कहूं. ये सब भविष्य ही तो हैं, जो हमारे आपके बाद देश को आगे बढ़ायेंगे. अगर इन्हें चोट लग जायेगी, तो मुङो अच्छा नहीं लगेगा. इसीलिए बोल दिया. आप जानते ही हैं कि अभी चुनाव का समय चल रहा है. पूरे शहर की स्थिति देख ही रहे होंगे. मैं अनजान बन कर उसकी बात सुन रहा था. अचानक रिक्शवाला पारंपरिक गीत गाने लगा, तभी हम अपने गंतव्य पर थे. हमने 20 का नोट उसे पकड़ाया, तो प्रसन्न हुआ और आगे बढ़ गया, लेकिन मेरी चुनावी तलाश अभी पूरी नहीं हुई थी.
जारी..
अब भी टेंपो वालों को देखता हूं, तो वह दिन याद आ जाता है, लेकिन उस यात्र के बाद मैंने तय किया और अब महीने में कम से दो-तीन बार टेंपो से जरूर चलता हूं. इसके अलावा पैदल चलना, तो मुङो खूब भाता है. कई किलोमीटर तक मैं चल सकता हूं. ये आदत मुङो बचपन से पड़ी, जब पढ़ने के लिए हम लोगों को पांच किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था. खेत की मेड़ों से होते हुये. हम लोगों में ये होड़ रहती थी कि कौन एक घंटा से कम समय में स्कूल पहुंचता है, बच्चे थे. दौड़ते हुये जाते थे, तो 45 मिनट लगता था. कभी-कभी आराम से चलने पर एक घंटा पांच मिनट. खैर ये दूरी हम लोगों को रोज तय करनी होती थी. अगर किसी दिन साइकिल पर बैठ कर जाने को मिल जाता था, तो हम इसे अपना सौभाग्य मानते थे. इसकी बात फिर कभी. मुजफ्फरपुर शहर में भी मैं खूब पैदल चलने की कोशिश करता हूं. कई बार परचित लोग रास्ते में मिल जाते थे, तो वह अपनी गाड़ी से छोड़ देने की बात करते हैं, तो उन्हें विनम्रता से मना करने का मन होता है, लेकिन कई बार ऐसा नहीं कर पाता हूं.
चुनाव की फिजां का पता लगाने के लिए मैं कई किलोमीटर पैदल भी चला. एक जगह इच्छा हुई रिक्शे से चलता हूं. रिक्शेवाले से बिना किराया तय किये मैं बैठ गया और वो चलने लगा. कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि कुछ छात्र बीच सड़क से लेकर किनारे तक फैले हुये जा रहे थे. सब आपस में बात करने में मशगूल थे. पीछे से रिक्शेवाले ने दो तीन बार घंटी बजायी, जब इसका असर छात्रों पर नहीं हुआ, तो कहने लगा कि जरा किनारे हट जाओ भारत के भविष्य. रिक्शेवाले के मुंह से ऐसी बात सुन कर मुङो आश्चर्य हुआ. मुझसे नहीं रहा गया. मैंने उससे पूछा, तो कहने लगा कि और क्या कहूं. ये सब भविष्य ही तो हैं, जो हमारे आपके बाद देश को आगे बढ़ायेंगे. अगर इन्हें चोट लग जायेगी, तो मुङो अच्छा नहीं लगेगा. इसीलिए बोल दिया. आप जानते ही हैं कि अभी चुनाव का समय चल रहा है. पूरे शहर की स्थिति देख ही रहे होंगे. मैं अनजान बन कर उसकी बात सुन रहा था. अचानक रिक्शवाला पारंपरिक गीत गाने लगा, तभी हम अपने गंतव्य पर थे. हमने 20 का नोट उसे पकड़ाया, तो प्रसन्न हुआ और आगे बढ़ गया, लेकिन मेरी चुनावी तलाश अभी पूरी नहीं हुई थी.
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