फल आने पर वृक्ष झुक जाता है. ऐेसे ही जब कोई व्यक्ति सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है, तो उसका व्यवहार और सरल होते जाना चाहिये. हमारे जितने भी महापुरुष हुये हैं, उनके जीवन को हम देखेंगे, तो यह पायेंगे. यही नहीं कोई भी व्यक्ति यदि सरलता से रहता है, तो उसे उसका मजा मिलता है, क्योंकि सरल होने का अपना अलग आनंद है. इसे वो लोग समझ नहीं सकते, जो थोड़ी-थोड़ी सी बात पर अकड़ने लगते हैं. अपने पद का रौब दिखाने लगते हैं. किसी को उसके पद और नाम से बुलाने लगते हैं. भला-बुरा कहने लगते हैं. अपनी पहुंच का हवाला देने लगते हैं या फिर अपना बल दिखाने लगते हैं.
यह चर्चा रामचरित मानस की कथा सुनने के बाद गांव के लोगों के बीच हो रही थी, तभी वहां से गुजर रहे घासी किसान को देख कर सब लोग उनकी ओर मुखातिब हो गये. घासी ऐसे व्यक्ति जिन्हें सिर्फ अपने काम से मतलब. कभी किसी का बुरा नहीं चाहा. अपने काम को ही अपना भगवान माना और उसी में दिन भर रमे रहते. गांव में कोई कुछ कहता, तो आसानी से सुन लेते. इससे कई बार उन्हें कष्ट भी उठाना पड़ता, लेकिन घासी कोई जवाब नहीं देते. वह अपने काम में लगे रहते. कई लोग उन्हें कायर समझते, तो कुछ लोग कहते, इतना चुप रहना भी ठीक नहीं. वह घासी को उकसाने की कोशिश करते, लेकिन वह कहता, हम क्या जानें मालिक. जिन्होंने ने कहा, वही जानें, क्यों कहा? हम इसमें क्या कहें, इतना कह कर घासी वहां से चला जाता और अपने काम में लग जाता.
घासी गांव के लोगों के सामने से गुजर गया, तो लोग आपस में चर्चा करने लगे. हम रामचरित मानस को सुन कर समझ रहे हैं, लेकिन उसमें जो कर्म का संदेश दिया गया है. उसे घासी सही मायनों में जी रहा है. वह अपने काम से काम रखता है. उसकी तरक्की भी हो रही है. खुद पढ़ा-लिखा नहीं है, लेकिन बच्चे पढ़ने में तेज हैं. वह भी पिता की तरह सिर्फ अपने काम पर ध्यान देते हैं. इधर-उधर नहीं करते, जब दूसरे बच्चे एक-दसूरे की निंदा में लगे रहते हैं, तो वह पढ़ रहे होते हैं. वह सही रूप में फलदार वृक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जो लगातार अपने कर्म में रमे रहते हैं. कभी अभिमान नहीं करते.
यह चर्चा रामचरित मानस की कथा सुनने के बाद गांव के लोगों के बीच हो रही थी, तभी वहां से गुजर रहे घासी किसान को देख कर सब लोग उनकी ओर मुखातिब हो गये. घासी ऐसे व्यक्ति जिन्हें सिर्फ अपने काम से मतलब. कभी किसी का बुरा नहीं चाहा. अपने काम को ही अपना भगवान माना और उसी में दिन भर रमे रहते. गांव में कोई कुछ कहता, तो आसानी से सुन लेते. इससे कई बार उन्हें कष्ट भी उठाना पड़ता, लेकिन घासी कोई जवाब नहीं देते. वह अपने काम में लगे रहते. कई लोग उन्हें कायर समझते, तो कुछ लोग कहते, इतना चुप रहना भी ठीक नहीं. वह घासी को उकसाने की कोशिश करते, लेकिन वह कहता, हम क्या जानें मालिक. जिन्होंने ने कहा, वही जानें, क्यों कहा? हम इसमें क्या कहें, इतना कह कर घासी वहां से चला जाता और अपने काम में लग जाता.
घासी गांव के लोगों के सामने से गुजर गया, तो लोग आपस में चर्चा करने लगे. हम रामचरित मानस को सुन कर समझ रहे हैं, लेकिन उसमें जो कर्म का संदेश दिया गया है. उसे घासी सही मायनों में जी रहा है. वह अपने काम से काम रखता है. उसकी तरक्की भी हो रही है. खुद पढ़ा-लिखा नहीं है, लेकिन बच्चे पढ़ने में तेज हैं. वह भी पिता की तरह सिर्फ अपने काम पर ध्यान देते हैं. इधर-उधर नहीं करते, जब दूसरे बच्चे एक-दसूरे की निंदा में लगे रहते हैं, तो वह पढ़ रहे होते हैं. वह सही रूप में फलदार वृक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जो लगातार अपने कर्म में रमे रहते हैं. कभी अभिमान नहीं करते.