सोमवार को मुजफ्फरपुर शहर में चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने पर इतिहास बना. हैरिटेज वॉक के बहाने गांधी जी की यात्र का सजीव चित्रण फिर से किया गया. गांधी बने डॉ भोजनंदन प्रसाद ट्रेन से मुजफ्फरपुर जंकशन पहुंचे. इसके बाद बग्घी के सहारे उन्हें शहर में लगभग पांच किलोमीटर जुलूस की शक्ल में घुमाया गया. इस बग्घी को घोड़ों की जगह एलएस कॉलेज के छात्र खीच रहे थे, जैसा कि सौ साल पहले भी किया गया था, लेकिन तब और अब की परिस्थिति बदली है. अब शहर को स्मार्ट सिटी में शामिल कराने की बात हो रही है, लेकिन शहर में सड़के ऐसी हैं कि कहीं भी दो-चार फुट समतल सड़क नहीं दिखती है.
सड़क पर उतरते ही परीक्षा शुरू हो जाती है. ऐसे में गांधी का काफिला लगभग पांच किलोमीटर दूर तक चला. इस दौरान कई जगहों पर जाम की वजह से काफिले को रोकना भी पड़ा, जबकि इसकी अगुवाई प्रशासन के जिम्मे थी, जिसके कारिंदे लोगों को सड़क के दोनों तरफ रोक रहे थे. बड़े पैमाने पर अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक लगाये गये थे, जो ड्युटी बजा रहे थे. इसके बाद भी बापू को जाम में फंसने से नहीं रोक सके.
मैं कल्याणी चौक के पास काफिले में शामिल हुआ, तो लगा कि गांधी जी की बग्घी हिचकोले खा रही है, लेकिन इतिहास खुद को दोहरा रहा था. सो उस ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया. पूरी ऊर्जा तो इतिहास का हिस्सा बनने में लगी थी, लेकिन एक आम शहरी होने की वजह से सड़क से गुजर रहे लोगों के बारे में सवाल भी उठ रहे थे. सवाल, वही बिजली, पानी और सड़क से संबंधित.
सड़क पर उतरते ही परीक्षा शुरू हो जाती है. ऐसे में गांधी का काफिला लगभग पांच किलोमीटर दूर तक चला. इस दौरान कई जगहों पर जाम की वजह से काफिले को रोकना भी पड़ा, जबकि इसकी अगुवाई प्रशासन के जिम्मे थी, जिसके कारिंदे लोगों को सड़क के दोनों तरफ रोक रहे थे. बड़े पैमाने पर अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक लगाये गये थे, जो ड्युटी बजा रहे थे. इसके बाद भी बापू को जाम में फंसने से नहीं रोक सके.
मैं कल्याणी चौक के पास काफिले में शामिल हुआ, तो लगा कि गांधी जी की बग्घी हिचकोले खा रही है, लेकिन इतिहास खुद को दोहरा रहा था. सो उस ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया. पूरी ऊर्जा तो इतिहास का हिस्सा बनने में लगी थी, लेकिन एक आम शहरी होने की वजह से सड़क से गुजर रहे लोगों के बारे में सवाल भी उठ रहे थे. सवाल, वही बिजली, पानी और सड़क से संबंधित.
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