मेरे मन में गांधी जी व उनके विचारों को लेकर अपार श्रद्धा है, जिसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता, लेकिन गांधी जी के नाम पर शनिवार को मुजफ्फरपुर में जो हुआ, वो परेशान करनेवाला है. 10 अप्रैल से सौ साल पहले की गांधी जी की यात्र का सफल मंचन किया जा रहा था. इस मंचन में एक सोच दिख रही थी, समाज की बेहतरी की. लोगों का मानस बदलने की, लेकिन 15 अप्रैल को चंपारण के लिए रवाना होने से पहले ऐसा हुआ कि जो सबको स्तब्ध कर गया. पता चला कि अब नये गांधी विशेष ट्रेन से चंपारण जायेंगे. उन्हें मोतिहारी से भेजा गया है. अच्छा है भेजा गया, लेकिन इसमें एक समन्वय होता, तो ज्यादा अच्छा होता, ताकि किसी को खराब नहीं लगता, लेकिन आनन-फानन में ऐसा हुआ, जो गांधी जी के किरदार को सफलता पूर्वक निभा रहे थे. उन्हें दरकिनार करने की कोशिश थी ये, लेकिन उन्होंने कहा कि जो हुआ, उसका उन्हें तनिक भी अफसोस नहीं है.
वहीं, मुजफ्फरपुर से जो गांधी चंपारण के लिए विशेष ट्रेन से चले. उनका ड्रेस अलग था. वह लाठी के सहारे चल रहे थे. हाथ में गुजराती में अनुवाद की हुई गीता लिये चल रहे थे. गांधी दर्शन के बारे में पूछने पर जवाब कुछ अलग होते थे. साथ में बैठे व्यक्ति की ओर से समझाया जा रहा था. इसके उलट मोतिहारी के रास्ते में पड़नेवाले स्टेशनों पर लोगों की भीड़ बहुत ज्यादा था, जिनकी आंखों में एक उम्मीद थी. वह गांधी को देखना और मिलना चाहते थे. यह चाहत पूरे रास्ते में पड़नेवाले गांवों व कस्बों के लोगों में दिखी. सभी अपना काम छोड़ कर स्पेशल ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. ट्रेन लगभग समय से चल रही थी और समय से कुछ ही मिनट लेट मोतिहारी पहुंची.
मोतिहारी स्टेशन पर ही रेलवे की प्रदर्शनी गांधी जी ने देखी और इसके बाद रेलवे के कार्यक्रम में शरीक हुये. इसके बाद खुली जीप में तिरंगा यात्र व गोरखबाबू के घर गये. यह मुजफ्फरपुर के उलट था, क्योंकि वहां पिछले पांच दिनों से गांधी जी बग्घी पर सवार होकर चल रहे थे. यह अंतर बहुत कुछ कह रहा था. हालांकि गांधी जी को लेकर नेताओं के अपने तर्क थे, लेकिन इनमें से कुछ ऐसे थे, जिन पर विश्वास नहीं हो रहा था.
वहीं, मुजफ्फरपुर से जो गांधी चंपारण के लिए विशेष ट्रेन से चले. उनका ड्रेस अलग था. वह लाठी के सहारे चल रहे थे. हाथ में गुजराती में अनुवाद की हुई गीता लिये चल रहे थे. गांधी दर्शन के बारे में पूछने पर जवाब कुछ अलग होते थे. साथ में बैठे व्यक्ति की ओर से समझाया जा रहा था. इसके उलट मोतिहारी के रास्ते में पड़नेवाले स्टेशनों पर लोगों की भीड़ बहुत ज्यादा था, जिनकी आंखों में एक उम्मीद थी. वह गांधी को देखना और मिलना चाहते थे. यह चाहत पूरे रास्ते में पड़नेवाले गांवों व कस्बों के लोगों में दिखी. सभी अपना काम छोड़ कर स्पेशल ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. ट्रेन लगभग समय से चल रही थी और समय से कुछ ही मिनट लेट मोतिहारी पहुंची.
मोतिहारी स्टेशन पर ही रेलवे की प्रदर्शनी गांधी जी ने देखी और इसके बाद रेलवे के कार्यक्रम में शरीक हुये. इसके बाद खुली जीप में तिरंगा यात्र व गोरखबाबू के घर गये. यह मुजफ्फरपुर के उलट था, क्योंकि वहां पिछले पांच दिनों से गांधी जी बग्घी पर सवार होकर चल रहे थे. यह अंतर बहुत कुछ कह रहा था. हालांकि गांधी जी को लेकर नेताओं के अपने तर्क थे, लेकिन इनमें से कुछ ऐसे थे, जिन पर विश्वास नहीं हो रहा था.
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