उस समय के बड़े स्कॉलर रहे एरिक ड्वॉस्चर ने ट्रॉवोस्की की जीवनी लिखी थी. प्रॉफेट आर्म, उस समय का जिक्र है, जब ट्रॉवोस्की सत्ता में था. वहां का रक्षा मंत्री था. क्रांति के समय सारी चीजों को वो चला रहा था. उसके बाद जब कि उसके हाथ से सत्ता चली गयी और बाद उसे देश से निकाला गया, तो उसी के जीवन पर ये था. वो भी चुनौती थी, क्या सचमुच में ऐसा है कोई बड़ा राजनेता होता है, तभी सफल हो पाता है, जब तक उसके हाथ में इतनी शक्ति होती है कि जबरदस्ती लोगों के ऊपर अपने नियम-कानून लागू करता है, तो ये उसका सार था. गांधी जी के साथ दूसरी स्थिति हो रही थी. चीनी क्रांति को सफलता मिली थी. रूस में भी क्रांति हुई. उसी से स्टॉनिल की सत्ता बनी, जो व्यवस्था बनी, समाजवादी थी या नहीं, ये विवाद का विषय था, लेकिन सत्ता बहुत ही मजबूत थी. इतनी मजबूत कि ब्रिटेन के खिलाफ दूसरे विश्वयुद्ध में एक बहुत बड़ी शक्ति रूस की थी, जिसकी वजह से पराजय हुई. इधर, भारत में गांधी जी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई चल रही थी. ये भी था कि जो बड़े-बड़े क्रांतिकारी नेता था, वो हिंसा के बल पर शासन कायम कर रहे थे. उसके विपरीत क्या गांधी जी जैसे आदमी को सफलता मिल सकती है. एक ये भी संदर्भ था. इस किताब को जब लिखा गया, तो उस समय संक्रमण काल था, जबकि दिखायी पड़ रहा था कि जिन क्रांतियों का बड़ा गुणगान हो रहा था. रूस व चीन की क्रांति, वो अपने उद्देश्य से पूरी तरह से भटक गयी थीं. रूस में तो बजाफ्ता 1980 आते-आते पूरी व्यवस्था बदल गयी थी, उसने पूरा पूंजीवाद कबूल कर लिया. चीन में भी माउत्से तुंग ने कोशिश की थी कि नये मूल्य स्थापित किये जायें, लेकिन माओ के मरने के दस साल के अंदर ही चीन दुनिया का सबसे सफल पूंजीवादी व्यवस्था वाला देश बन गया.
उसी पृष्ठभूमि में ये था कि गांधी जी, जिनके नाम पर इतना बड़ा दुनिया में प्रचार नहीं हुआ. इनकी कोई प्रशस्ति नहीं हुई, लेकिन कुल मिला करके उनके जो मूल्य थे. वो विस्थापित नहीं हुये. गांधी जी सफल नहीं हुये, उनके मॉडल पर हिन्दुस्तान नहीं चला, लेकिन जो कुछ विचार गांधी जी ने थे, वो अभी भी कायम है. दुनिया में बहुत सारे लोग गांधी जी की ओर देख रहे हैं. इन्हीं चीजों को लेकर ये पुस्तक लिखी गयी है. गांधी जी को अपने ही देश में आधिकारिक तौर पर तो एक तरह से खारिज ही कर दिया गया है, लेकिन गांधी जी की प्रासंगिकता भी देश में खत्म नहीं हुई है. ऐसे अभियान, जो मूलत: गांधी जी के विचारों के विपरीत हैं. उनको भी सफल बनाने के लिए गांधी जी का नाम लेने की कोशिश हो रही है. जैसे कि अभी स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है. इसके समर्थन में गांधी जी का नाम बार-बार लिया जाता है. हालांकि ये बहुत बड़ा धोखा है लोगों के साथ. स्वस्छता का मतलब सिर्फ इतना ही रह गया है कि आप घरों में शौचालय बनायें. क्या स्वच्छता का इतना ही मतलब होता है क्या?
गांधी जी स्वस्छता के बारे में जो सोचते थे. वो वही था क्या, जो आज किया जा रहा है. महत्मा गांधी ने अफ्रीका में दो बड़े फॉर्म बनाये थे. एक फिनिक्स फॉर्म था, जो शुरू में उन्होंने बनाया था. बाद में टॉलस्टाय फॉर्म बनाया था. दोनों जगह कुछ लोग कम्युन की जिंदगी बिताते थे. खुद खेती करते थे. सामूहिक लोगों का जीवन था. शौचालय की व्यवस्था के रूप में वहां था कि जो घर थे, उसके पास में एक-दो कट्ठा जमीन थी, जिसमें शौच के बाद लोग मिट्टी डाल देते थे. इस तरह से वहां कभी गंदगी नहीं फैलती थी. जारी..
उसी पृष्ठभूमि में ये था कि गांधी जी, जिनके नाम पर इतना बड़ा दुनिया में प्रचार नहीं हुआ. इनकी कोई प्रशस्ति नहीं हुई, लेकिन कुल मिला करके उनके जो मूल्य थे. वो विस्थापित नहीं हुये. गांधी जी सफल नहीं हुये, उनके मॉडल पर हिन्दुस्तान नहीं चला, लेकिन जो कुछ विचार गांधी जी ने थे, वो अभी भी कायम है. दुनिया में बहुत सारे लोग गांधी जी की ओर देख रहे हैं. इन्हीं चीजों को लेकर ये पुस्तक लिखी गयी है. गांधी जी को अपने ही देश में आधिकारिक तौर पर तो एक तरह से खारिज ही कर दिया गया है, लेकिन गांधी जी की प्रासंगिकता भी देश में खत्म नहीं हुई है. ऐसे अभियान, जो मूलत: गांधी जी के विचारों के विपरीत हैं. उनको भी सफल बनाने के लिए गांधी जी का नाम लेने की कोशिश हो रही है. जैसे कि अभी स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है. इसके समर्थन में गांधी जी का नाम बार-बार लिया जाता है. हालांकि ये बहुत बड़ा धोखा है लोगों के साथ. स्वस्छता का मतलब सिर्फ इतना ही रह गया है कि आप घरों में शौचालय बनायें. क्या स्वच्छता का इतना ही मतलब होता है क्या?
गांधी जी स्वस्छता के बारे में जो सोचते थे. वो वही था क्या, जो आज किया जा रहा है. महत्मा गांधी ने अफ्रीका में दो बड़े फॉर्म बनाये थे. एक फिनिक्स फॉर्म था, जो शुरू में उन्होंने बनाया था. बाद में टॉलस्टाय फॉर्म बनाया था. दोनों जगह कुछ लोग कम्युन की जिंदगी बिताते थे. खुद खेती करते थे. सामूहिक लोगों का जीवन था. शौचालय की व्यवस्था के रूप में वहां था कि जो घर थे, उसके पास में एक-दो कट्ठा जमीन थी, जिसमें शौच के बाद लोग मिट्टी डाल देते थे. इस तरह से वहां कभी गंदगी नहीं फैलती थी. जारी..
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