शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

यह बुलेट ट्रेन के जमाने की रेल है

राष्ट्रपिता महत्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता अभियान चल रहा है. रेलवे में कुछ ज्यादा ही कमाल है. ट्विट करने पर चीजें दुरुस्त हो जाती हैं, लेकिन उस मुजफ्फरपुर से रक्सौल जानेवाली पैसेंजर ट्रेन को कोई पूछनेवाला नहीं है. जिस स्टेशन से ट्रेन पर सवार होकर महत्मा गांधी सौ साल पहले किसानों की उस सबसे बड़ी जंग को जीतने के लिए निकले थे, जिसे अंगरेजों ने तीन कठिया प्रथा का नाम दे रखा था. फिर से तैयारी चल रही है, चंद दिनों के बाद यात्र को फिर से जीवंत किया जायेगा. किरदार तैयारी कर रहे हैं, लेकिन रेलवे की पैसेंजर ट्रेन कई सवाल जेहन में खड़ा करने को मजबूर करती है. सुबह 9.45 बजे मुजफ्फरपुर स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर पांच से खुलनेवाली ट्रेन में साफ-सफाई का आलम ये है कि इसमें ऐसी कोई जगह नहीं दिखती, जहां कूड़ा नहीं बिखरा हो. खिड़कियों पर पान की पीक और अन्य गंदगी लगती है कि सालों पुरानी है, लेकिन कोई देखनेवाला नहीं.
ट्रेन की हालत ऐसी है कि इससे हजारों की संख्या में वे लोग सफर करते हैं, जिन्हें विभिन्न जगहों पर ड्युटी के लिए जाना होता है. साथ ही ऐसे लोग भी जो कभी-कभार किसी प्रयोजन से ट्रेन का सफर करते हैं. ऐसा नहीं कि ट्रेन के पास समय नहीं है. मुजफ्फरपुर स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर पांच पर यह रात के समय ही लग जाती है और घंटों खड़े रहने के बाद सुबह 9.45 बजे खुलने का समय है, लेकिन कम ही समय से खुल पाती है. दस बजे के बाद अमूमन स्टेशन से रवाना होती है. इसके बाद मोतिहारी, सुगौली जैसे महत्वपूर्ण स्टेशनों का सफर करते हुये सीमावर्ती स्टेशन रक्सौल पहुंचती है.
ट्रेन में नियमित यात्र करनेवाले यात्रियों का कहना है कि वह इसके आदी हो चुके हैं. कभी भी साफ-सफाई की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है. लगता है कि इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है. ट्रेन जिस स्टेशनों से गुजरती है. उनकी भी हालत ज्यादा ठीक नहीं है. मोतीपुर स्टेशन पर ट्रेन को बीच की लाइन पर खड़ा कर दिया गया, जिससे यात्रियों को परेशानी हुई. महवल स्टेशन पर प्लेटफॉर्म का काम चल रहा है. इसकी वजह से गहरा गड्ढा खोदा गया है. उसी से होकर यात्रियों पर ट्रेन पर बैठना पड़ता है. इस क्रम में उन्हें चोट भी लगती है. ऐसे कई और स्टेशन व हॉल्ट हैं, जहां यात्री जान जोखिम में डाल कर ट्रेन में चढ़ते-उतरते हैं.

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