सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू के चंपारण सत्याग्रह की 100वीं वर्षगांठ हम लोग मना रहे हैं. चंपारण इलाके का वासी होने की वजह से हमारी लोगों की जिम्मेवारी ज्यादा बनती है कि बापू के संदेशों को समङों और उन्हें आत्मसात करके अपने व्यवहार में लायें, लेकिन कुछ पढ़े-लिखे कहे जानेवाले लोगों को क्या हो गया है. बीते शुक्रवार को जैसे एसकेएमसीएच और एमआइटी में जैसी घटनाएं हुईं. वह हम सब पर सवाल खड़ें करती हैं. जाहिर सी बात है कि इसमें सब तो नहीं शामिल हैं, लेकिन जो चंद लोग इसमें हैं. वो भी डॉक्टर और इंजीनियर बनने की राह पर हैं. यह वह लोग हैं, जिन्हें समाज की सेवा करनी है. अगर आपके धैर्य और आत्मबल नहीं है, तो आप सेवा कैसे कर सकेंगे? आपको दूसरों को संभलना है और आपको संभालने के लिए पुलिस की जरूरत पड़े, तो इसे क्या कहेंगे? आपको तो ऐसा कर्म करना चाहिये कि पुलिस आपका सहयोग ले और समाज में जो गड़बड़ियां और हैं, उन्हें ठीक करे, लेकिन दोनों घटनाओं में हुआ, इसकी पूरा उल्टा.
एसकेएमसीएच को एम्स का दर्जा देने की मांग हो रही है. राजनेता से लेकर आम लोग जोर-शोर से ये आवाज उठा रहे हैं, लेकिन वहां हो क्या रहा है. कुछ डॉक्टर और एंबुलेंस चालकों की आपसी खीचतान में बात यहां तक पहुंच गयी. लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये. एक-दूसरे पर टूट पड़े. डॉक्टरों ने जिस तरह से आम लोगों की पिटाई की, उसकी तस्वीर देख लग रहा था कि आखिर किस समाज में रह रहे हैं हम? क्या पढ़े-लिखे लोगों को ये शोभा देता है? अगर पढ़े-लिखे लोग ऐसा करेंगे, तो हम समाज को शिक्षित करने की बात क्यों करते हैं? इससे अच्छे तो अनपढ़ हैं, जिनके अंदर आपसी प्रेम होता है. अगर किसी ने कोई बात कह भी दी, तो वह उसे बड़ी अदब से टाल देते हैं? पर यहां को बिल्कुल इसका उल्टा हुआ? उन लोगों को पीटा गया, जिनका मूल घटना से कोई वास्ता नहीं था.
पांच एंबुलेंस फूंक दी गयीं. 20 गाड़ियों को तोड़ दिया गया. बाइक को जला दिया गया. कई बाइक व एसकेएमसीएच में तोड़फोड़ हुई. यह सब करके आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं. क्या हम सत्य और अहिंसा के पुजारी को सौ साल बाद इस रूप में याद करेंगे? क्या उनके आदर्शो पर चलने की बात कहके हम ये करेंगे? यह नहीं चल सकता है, क्योंकि हिंसा से कोई हल नहीं निकलता है. हल तो बातचीत और आपसी सूझबूझ का ही नतीजा होता है. इस ओर हमें बढ़ना होगा, तभी बात बनेगी. हिंसा का जवाब हिंसा कभी नहीं हो सकता है?
दूसरी घटना एमआइटी के कुछ छात्रों से जुड़ी है. यहां सैकड़ों की संख्या में छात्र इंजीनियरिंग पढ़ते हैं. यहां के पढ़े छात्र देश में कई स्थानों पर बड़े पदों पर काम करते हैं. प्लेसमेंट एजेंसियां आती हैं, तो उन्हें यहां अच्छे काम करनेवाले मिलते हैं, लेकिन शहर के इस बड़े संस्थान की पहचान क्या बनी है? जब भी एमआइटी की बात होती है, तो हल्ला और हंगामा ही जेहन में आता है? यह अपने शहर के लोगों के मन में घर कर गया है? शुक्रवार को भी यहां ऐसा ही हुआ. कुछ छात्रों ने लक्ष्मी चौक के पंप पर पेट्रोल भरवाया और जब पैसे देने की बारी आयी, तो इनकार करने लगे. नोजलमैन आगे आया, तो उसको पीटना शुरू कर दिया. अपने कर्मचारी की रक्षा के लिए जब पंप मालिक पहुंचे, तो छात्रों ने बात सुने बिना उनको पीटना शुरू कर दिया.
एमआइटी के घटनाक्रम के दौरान ही आसपास के लोग इकट्ठा हो गये और पेट्रोल पंप पर पहुंचने लगे, लेकिन खुद को घिरता देख छात्र भाग गये. बाद में कॉलेज प्रबंधन को आगे आना पड़ा. आखिर जब किया कुछ छात्रों ने, तो कॉलेज प्रबंधन इसका खामियाजा क्यों भुगते? अब मामला जांच में है, जो भी छात्र दोषी पाये जायेंगे, उन पर कार्रवाई की बात कही जा रही है, लेकिन क्या कार्रवाई इस समस्या का हल है. हमें लगता है कि नहीं. कार्रवाई ऐसी होनी चाहिये, जिससे छात्रों की सोच बदल जाये और आगे से वो ऐसा करने की सोचें भी नहीं. यह हम उनका मन जीत कर कर सकते हैं. अगर हम उनके मन में सत्य और अहिंसा की बात भरने में कामयाब हो जायें, तो यह मंजर देखने को नहीं मिलेगा.
एसकेएमसीएच को एम्स का दर्जा देने की मांग हो रही है. राजनेता से लेकर आम लोग जोर-शोर से ये आवाज उठा रहे हैं, लेकिन वहां हो क्या रहा है. कुछ डॉक्टर और एंबुलेंस चालकों की आपसी खीचतान में बात यहां तक पहुंच गयी. लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये. एक-दूसरे पर टूट पड़े. डॉक्टरों ने जिस तरह से आम लोगों की पिटाई की, उसकी तस्वीर देख लग रहा था कि आखिर किस समाज में रह रहे हैं हम? क्या पढ़े-लिखे लोगों को ये शोभा देता है? अगर पढ़े-लिखे लोग ऐसा करेंगे, तो हम समाज को शिक्षित करने की बात क्यों करते हैं? इससे अच्छे तो अनपढ़ हैं, जिनके अंदर आपसी प्रेम होता है. अगर किसी ने कोई बात कह भी दी, तो वह उसे बड़ी अदब से टाल देते हैं? पर यहां को बिल्कुल इसका उल्टा हुआ? उन लोगों को पीटा गया, जिनका मूल घटना से कोई वास्ता नहीं था.
पांच एंबुलेंस फूंक दी गयीं. 20 गाड़ियों को तोड़ दिया गया. बाइक को जला दिया गया. कई बाइक व एसकेएमसीएच में तोड़फोड़ हुई. यह सब करके आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं. क्या हम सत्य और अहिंसा के पुजारी को सौ साल बाद इस रूप में याद करेंगे? क्या उनके आदर्शो पर चलने की बात कहके हम ये करेंगे? यह नहीं चल सकता है, क्योंकि हिंसा से कोई हल नहीं निकलता है. हल तो बातचीत और आपसी सूझबूझ का ही नतीजा होता है. इस ओर हमें बढ़ना होगा, तभी बात बनेगी. हिंसा का जवाब हिंसा कभी नहीं हो सकता है?
दूसरी घटना एमआइटी के कुछ छात्रों से जुड़ी है. यहां सैकड़ों की संख्या में छात्र इंजीनियरिंग पढ़ते हैं. यहां के पढ़े छात्र देश में कई स्थानों पर बड़े पदों पर काम करते हैं. प्लेसमेंट एजेंसियां आती हैं, तो उन्हें यहां अच्छे काम करनेवाले मिलते हैं, लेकिन शहर के इस बड़े संस्थान की पहचान क्या बनी है? जब भी एमआइटी की बात होती है, तो हल्ला और हंगामा ही जेहन में आता है? यह अपने शहर के लोगों के मन में घर कर गया है? शुक्रवार को भी यहां ऐसा ही हुआ. कुछ छात्रों ने लक्ष्मी चौक के पंप पर पेट्रोल भरवाया और जब पैसे देने की बारी आयी, तो इनकार करने लगे. नोजलमैन आगे आया, तो उसको पीटना शुरू कर दिया. अपने कर्मचारी की रक्षा के लिए जब पंप मालिक पहुंचे, तो छात्रों ने बात सुने बिना उनको पीटना शुरू कर दिया.
एमआइटी के घटनाक्रम के दौरान ही आसपास के लोग इकट्ठा हो गये और पेट्रोल पंप पर पहुंचने लगे, लेकिन खुद को घिरता देख छात्र भाग गये. बाद में कॉलेज प्रबंधन को आगे आना पड़ा. आखिर जब किया कुछ छात्रों ने, तो कॉलेज प्रबंधन इसका खामियाजा क्यों भुगते? अब मामला जांच में है, जो भी छात्र दोषी पाये जायेंगे, उन पर कार्रवाई की बात कही जा रही है, लेकिन क्या कार्रवाई इस समस्या का हल है. हमें लगता है कि नहीं. कार्रवाई ऐसी होनी चाहिये, जिससे छात्रों की सोच बदल जाये और आगे से वो ऐसा करने की सोचें भी नहीं. यह हम उनका मन जीत कर कर सकते हैं. अगर हम उनके मन में सत्य और अहिंसा की बात भरने में कामयाब हो जायें, तो यह मंजर देखने को नहीं मिलेगा.
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