पिछले पांच-छह साल में कितनी बार एलएस कॉलेज होकर गुजरा होउंगा, लेकिन ऐसा इतिहास बोध इससे पहले कभी नहीं हुआ. कई बार कार्यक्रमों में भी शामिल होने का मौका भी मिला. बाबू लंगट सिंह, राजेंद्र बाबू व महत्मा गांधी की प्रतिमाओं पर माल्र्याण का मौका भी मिला, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ, जो 10 अप्रैल 2017 को हुआ. इतिहास जब अपने एक सौ साल पूरे होने पर खुद को दोहरा रहा था. जैसे ही गांधी का वेश धरे डॉ भोजनंदन व जेबी कृपलानी बने डॉ अरुण कुमार सिंह की बग्घी लंगट सिंह कॉलेज के परिसर में घुसी. पूरी तस्वीर सामने नाचने लगी.
सौ साल पहले जब गांधी एलएस कॉलेज पहुंचे थे, तब की तस्वीर अभी तक मैंने नहीं देखी, लेकिन आज की तस्वीर देख रहा हूं. उसे महसूस कर रहा हूं, जो लोग महापुरुषों के किरदार में हैं, उनके बारे में कुछ जानता हूं. उनका स्नेह मिलता रहा है. ऐसे में मुङो देखने और समझने की नयी दृष्टि मिलती है.
लंगट कॉलेज की एक-एक चीज से साक्षात्कार हो रहा है. वही, गांधी जी की प्रतिमा जिस पर माल्र्यापण करके कई बार मैं वापस आ चुका हूं, लेकिन अब अलग लग रही है. रोशनी से नहायी इस प्रतिमा को देखने से ऐसा लगता है, मानों इतिहास फिर से जीवंत हो उठा है. गांधी कूप, जिसे संरक्षित करने की कोशिश हुई है, उसे देख कर भी तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं. ऐसे ही कई और स्थान जो गांधी जी से जुड़े हैं. सब में अलग सी अनुभूति दिखती है. काश! ये जज्जा बना रहता है और अपनी विरासत से ऐसे ही मेरा साक्षात्कार होता रहता.
सौ साल पहले जब गांधी एलएस कॉलेज पहुंचे थे, तब की तस्वीर अभी तक मैंने नहीं देखी, लेकिन आज की तस्वीर देख रहा हूं. उसे महसूस कर रहा हूं, जो लोग महापुरुषों के किरदार में हैं, उनके बारे में कुछ जानता हूं. उनका स्नेह मिलता रहा है. ऐसे में मुङो देखने और समझने की नयी दृष्टि मिलती है.
लंगट कॉलेज की एक-एक चीज से साक्षात्कार हो रहा है. वही, गांधी जी की प्रतिमा जिस पर माल्र्यापण करके कई बार मैं वापस आ चुका हूं, लेकिन अब अलग लग रही है. रोशनी से नहायी इस प्रतिमा को देखने से ऐसा लगता है, मानों इतिहास फिर से जीवंत हो उठा है. गांधी कूप, जिसे संरक्षित करने की कोशिश हुई है, उसे देख कर भी तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं. ऐसे ही कई और स्थान जो गांधी जी से जुड़े हैं. सब में अलग सी अनुभूति दिखती है. काश! ये जज्जा बना रहता है और अपनी विरासत से ऐसे ही मेरा साक्षात्कार होता रहता.
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