मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

नीतीश कुमार की ये यात्रा कुछ अलग थी


18 अप्रैल 1917 को गांधी जी मोतिहारी की एसडीओ कोर्ट में पेश हुये थे, जहां उन्होंने अपना बचाव खुद किया था और चंपारण नहीं जाने के बारे में साफ तौर पर मजिस्ट्रेट को बताया था. जमानत लेने और जुर्माना भरने के इनकार कर दिया था, तब हार कर मजिस्ट्रेट को अपनी ओर से बांड भर कर बापू को छोड़ना पड़ा था और फैसले को 21 अप्रैल तक टाल दिया गया था. मंगलवार को 18 अप्रैल 2017 था. ठीक एक सौ साल बाद का दिन. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले से घोषणा कर रखी थी कि वह चंपारण शताब्दी वर्ष की याद में पदयात्रा करेंगे. चंद्रहिया से मोतिहारी शहर के गांधी मैदान तक की यात्रा होनी थी.
सुबह 7.25 बजे मुख्यमंत्री की गाड़ी चंद्रहिया के गांधी स्मृति उद्यान में पहुंची, जहां सुरक्षा के इंतजामों के बीच मुख्यमंत्री ने सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लिया. बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. चंपा का पौधा लगाया और पदयात्रा पर रवाना हो गये. मुख्यमंत्री ने गांधी स्मृति उद्यान के बाहर जैसे ही कदम रखा. इतिहास में एक और अध्याय लिख गया प्रतीकों पर कब्जे व दावों की राजनीति के जमाने में क्या कोई राजनेता ऐसा करेगा? अप्रैल में जब सूरज का ताप दिन चढ़ने के साथ चढ़ता है. धूम में चलेगा. धूप में चलने के बाद भी उसके चेहरे पर शिकन नहीं होगी, क्या ऐसा होगा? ऐसे तमाम सवालों के साथ मैं भी पदयात्रा  में शामिल हुआ. मन में जो सवाल उठ रहे थे. उन्हें कसौटी पर परखने के लिए मुख्यमंत्री की पदयात्रा के आसपास होकर ही चलने लगा. एक-दो नहीं हजारों की संख्या में लोग साथ में चल दिये. सब के कदम गांधी मैदान की ओर आगे बढ़ रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे रास्ता तय हो रहा था. लोग परेशान होते दिख रहे थे. कुछ विधायक व पूर्व विधायक सड़क के किनारे छांव की तलाश करने लगे. कुछ बैठ गये. पूछा गया, तो कहने लगे थक गये, तो बैठ गये. क्या करें?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिल्कुल सधे कदमों से लगातार आगे बढ़ रहे थे. उनके समर्थन में नारेबाजी होने लगी, तो उन्होंने तुरंत मना किया और नारेबाजी बंद करने की बात कही. मुख्यमंत्री ऐसे चल रहे थे, जैसे उनके मन में विचारों का सैलाब चल रहा हो. रास्ते में मिलनेवाले हर व्यक्ति का अभिभावन स्वीकार कर रहे थे. मुस्करा रहे थे. रास्ते में फूल की बारिश व अन्य किसी तरह का इंतजाम नहीं किया गया था. न ही किसी तरह की अन्य कोई व्यवस्था की गयी थी. कुछ स्थानों पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से कैंप लगाये गये थे, जिनमें लोगों को मुफ्त इलाज हो रहा था. कुछ स्टॉल पानी व नीबू-पानी के लगे थे. इसके अलावा और कुछ नहीं था. हां, एक बात थी. सड़क के किनारे दोनों ओर लोग खड़े थे. बड़ी संख्या में. इनमें महिलाएं, बच्चे, बूढ़े-जवान सभी शामिल थे.
महिलाओं के हाथ में तख्ती थी, जिस पर शराबबंदी को सराहा गया था. लिखा था कि गांधी के सपने को बिहार ने शराबबंदी करके पूरा किया. ऐसे ही और स्लोगन लगाये लोग रास्ते में खड़े दिखे. इनसे लगा कि मुख्यमंत्री शराबबंदी के बाद नशाबंदी की जो बात कर रहे हैं, उनका संकल्प कुछ और मजबूत हुआ होगा. सुबह आठ बजे शुरू हुई यात्रा 9.20 बजे गांधी मैदान में लगी बापू की प्रतिमा पर आकर पूरी हुई, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बड़ी लकीर खीच चुके थे, जो उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती है. यह पहली बार नहीं है, जो मुख्यमंत्री ने ऐसा करके खुद को और नेताओं से अलग साबित किया है. वो इससे पहले भी विभिन्न यात्राओं के जरिये लोगों के बीच जाते रहे हैं, जिनका व्यापक असर पूरे प्रदेश पर पड़ा है. इसकी चर्चा भी चाहे मुख्यमंत्री के प्रशंसक हों या विरोधी सब करते रहे हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें