अमर शहीद जुब्बा सहनी के नाम के सहारे राजनीतिक दल दशकों से चुनावी वैतरणी पार करते रहे हैं, लेकिन कभी किसी दल ने ये नहीं सोचा कि आखिर शहीद के परिजनों का क्या हाल है? जब काम पड़ता है, तो नेता हाजिर हो जाते हैं और हमदर्दी जताते हुये शहीद की पतोहू मुनिया देवी का सम्मान कर देते. महीनों से जुब्बा सहनी की पतोहू मुनिया देवी बीमार थी. हालत बिगड़ी तो 15 दिन पहले उसने खाना छोड़ दिया, लेकिन किसी नेता ने मुनिया की सुधि नहीं ली.
मुनिया के बीमार होने व खाना छोड़ देने संबंधी खबर जब प्रभात खबर में प्रमुखता से छपी, तब भी नेता नहीं जागे. निषाद विकास मोर्चा के सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी आगे आये. उन्होंने मुनिया को मुजफ्फरपुर के निजी नर्सिग होम में भर्ती करवाया. इसके बाद बेहतर इलाज के लिए पटना भिजवाया. अब मुनिया के इलाज की उम्मीद बंधी हैं. प्राथमिक इलाज के दौरान जो बात सामने आयी. उसमें मुनिया की हालत बिगड़ने के पीछे मुख्य वजह समय से खाना नहीं मिलने का रहा, जिसकी वजह से शरीर में खून की कमी हो गयी और उसने बिस्तर पकड़ लिया. लगभग 70 साल की मुनिया की देखभाल उसकी बहू गीता कुमारी करती है, जो गांव में लोगों के यहां मजदूरी करती. इससे जो पैसे मिलते. वो घर के सदस्यों के खाने में ही चले जाते. मुनिया का इलाज कैसे हो, परिवार के सामने यही संकट था.
पोता गया कुमार कमाने के लिए बनारस गया था, जहां उसे दिहाड़ी का काम मिला, लेकिन दादी की तबियत के बारे में सुना, तो वापस गांव चला आया. दादी की सेवा करने लगा. गीता देवी की चार बेटियां हैं. वह भी दादी की सेवा में लगी थीं, लेकिन घर की माली हालत ऐसी नहीं थी कि उन्हें इलाज के लिए अस्पताल तक जा सकें. घर में जो आता था, उससे केवल एक टाइम का खाना बनता था. अगर बचता था, तो दूसरे टाइम में खाना होता था, नहीं तो भूखे ही घर के सदस्यों को सोना पड़ता था.
मुनिया व उसके परिजनों का हाल सामने आने के बाद चार मार्च को डीएम धर्मेद्र सिंह चैनपुर पहुंचे. मुनिया के दरवाजे पहुंच कर ग्रामीणों से पूरी जानकारी ली. इसके बाद मुनिया की बहू गीता को फोन करके उसके इलाज के बारे में जानकारी ली. डीएम ने मुनिया को स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी पेंशन दिलाने की बात कही. साथ ही गीता देवी को विधवा पेंशन और उनकी बच्चियों का दाखिला आवासीय विद्यालय में कराने का निर्देश दिया. डीएम ने गया कुमार को भी कौशल विकास के तहत ट्रेनिंग दिलाने की बात कही और उसे गांव में ही रोजगार देने का निर्देश अपने मातहत अधिकारियों को दिया.
डीएम ने कहा कि मुनिया के इलाज पर जो खर्च आयेगा, उसे भी प्रशासन उठाने के लिए तैयार है. डीएम पहुंचे, तो मुनिया के घर नेताओं के पहुंचने का सिलसिला भी शुरू हो गया. राजद से जुड़े शिवचंद्र राय पहुंचे. कहने लगे कि हम मुनिया के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे. विधायक रविवार को मुनिया के घर पर जायेंगे. वो कह रहे हैं, हम मुनिया के दरवाजे पर चापाकल लगवायेंगे. इन सब घोषणाओं के बीच चैनपुर के ग्रामीण प्रभात खबर का शुक्रिया कर रहे हैं. कह रहे हैं. अगर प्रभात खबर के जरिये सामाचार सामने नहीं आया होता, तो मुनिया का बचना मुश्किल था, क्योंकि वह खाना नहीं खाने की वजह से बिल्कुल सूख चुकी थी.
अमर शहीद जुब्बा सहनी की बात करें, तो उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान जिस दिलेरी से साथियों को बचाने के लिए अपने सिर पर अंगरेज दारोगा की हत्या का इल्जाम लिया, वो साधारण नहीं था. क्योंकि हत्या के आरोपित को फांसी मिलनी तय थी और वही हुआ. 11 मार्च 1944 को जुब्बा सहनी को भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी की सजा दी गयी थी. उस परिवार की पतोहू मुनिया इस हाल में रहे? उसके पास खाने को दो जून की रोटी नहीं हो? वह भी तब देश में खाने की सुरक्षा का कानून पास है?
मुनिया के बीमार होने व खाना छोड़ देने संबंधी खबर जब प्रभात खबर में प्रमुखता से छपी, तब भी नेता नहीं जागे. निषाद विकास मोर्चा के सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी आगे आये. उन्होंने मुनिया को मुजफ्फरपुर के निजी नर्सिग होम में भर्ती करवाया. इसके बाद बेहतर इलाज के लिए पटना भिजवाया. अब मुनिया के इलाज की उम्मीद बंधी हैं. प्राथमिक इलाज के दौरान जो बात सामने आयी. उसमें मुनिया की हालत बिगड़ने के पीछे मुख्य वजह समय से खाना नहीं मिलने का रहा, जिसकी वजह से शरीर में खून की कमी हो गयी और उसने बिस्तर पकड़ लिया. लगभग 70 साल की मुनिया की देखभाल उसकी बहू गीता कुमारी करती है, जो गांव में लोगों के यहां मजदूरी करती. इससे जो पैसे मिलते. वो घर के सदस्यों के खाने में ही चले जाते. मुनिया का इलाज कैसे हो, परिवार के सामने यही संकट था.
पोता गया कुमार कमाने के लिए बनारस गया था, जहां उसे दिहाड़ी का काम मिला, लेकिन दादी की तबियत के बारे में सुना, तो वापस गांव चला आया. दादी की सेवा करने लगा. गीता देवी की चार बेटियां हैं. वह भी दादी की सेवा में लगी थीं, लेकिन घर की माली हालत ऐसी नहीं थी कि उन्हें इलाज के लिए अस्पताल तक जा सकें. घर में जो आता था, उससे केवल एक टाइम का खाना बनता था. अगर बचता था, तो दूसरे टाइम में खाना होता था, नहीं तो भूखे ही घर के सदस्यों को सोना पड़ता था.
मुनिया व उसके परिजनों का हाल सामने आने के बाद चार मार्च को डीएम धर्मेद्र सिंह चैनपुर पहुंचे. मुनिया के दरवाजे पहुंच कर ग्रामीणों से पूरी जानकारी ली. इसके बाद मुनिया की बहू गीता को फोन करके उसके इलाज के बारे में जानकारी ली. डीएम ने मुनिया को स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी पेंशन दिलाने की बात कही. साथ ही गीता देवी को विधवा पेंशन और उनकी बच्चियों का दाखिला आवासीय विद्यालय में कराने का निर्देश दिया. डीएम ने गया कुमार को भी कौशल विकास के तहत ट्रेनिंग दिलाने की बात कही और उसे गांव में ही रोजगार देने का निर्देश अपने मातहत अधिकारियों को दिया.
डीएम ने कहा कि मुनिया के इलाज पर जो खर्च आयेगा, उसे भी प्रशासन उठाने के लिए तैयार है. डीएम पहुंचे, तो मुनिया के घर नेताओं के पहुंचने का सिलसिला भी शुरू हो गया. राजद से जुड़े शिवचंद्र राय पहुंचे. कहने लगे कि हम मुनिया के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे. विधायक रविवार को मुनिया के घर पर जायेंगे. वो कह रहे हैं, हम मुनिया के दरवाजे पर चापाकल लगवायेंगे. इन सब घोषणाओं के बीच चैनपुर के ग्रामीण प्रभात खबर का शुक्रिया कर रहे हैं. कह रहे हैं. अगर प्रभात खबर के जरिये सामाचार सामने नहीं आया होता, तो मुनिया का बचना मुश्किल था, क्योंकि वह खाना नहीं खाने की वजह से बिल्कुल सूख चुकी थी.
अमर शहीद जुब्बा सहनी की बात करें, तो उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान जिस दिलेरी से साथियों को बचाने के लिए अपने सिर पर अंगरेज दारोगा की हत्या का इल्जाम लिया, वो साधारण नहीं था. क्योंकि हत्या के आरोपित को फांसी मिलनी तय थी और वही हुआ. 11 मार्च 1944 को जुब्बा सहनी को भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी की सजा दी गयी थी. उस परिवार की पतोहू मुनिया इस हाल में रहे? उसके पास खाने को दो जून की रोटी नहीं हो? वह भी तब देश में खाने की सुरक्षा का कानून पास है?
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