कलम के सिपाही प्रेमचंद्र की कहानी ईदगाह बचपन में पढ़ी थी. हामिद का किरदार मन में बस गया. मेरे क्या, जिसने भी कहानी पढ़ी होगी, उसे याद होगा. 2011 की ठंडक से हम लोगों ने शहर के लोगों के सहयोग से कंबल वितरण शुरू किया. सर्द रातों में शहर के विभिन्न मोहल्लों व प्रमुख स्थानों पर घूम-घूम कर देखना. कोई ऐसा तो नहीं है, जो सर्द रात में बिना बिना कंबल के सो रहा है. हम लोग लोगों को देखते और उन्हें कंबल ओढ़ा देते. ये सिलसिला अब तक चल रहा है, लेकिन 2012 में कंबल बांटने के दौरान दिसंबर महीने के आखिरी सप्ताह में एक ऐसा वाकया हुआ, जो पूरी तरह से मन-मष्तिस्क पर अंकित हो गया. बीच-बीच में वो प्रेरणा देता रहता है.
सर्द रात में उस दिन कंबल बांटने हम लोग थोड़ी देर से निकले और कई स्थानों पर गये. इससे काफी देर हो गयी. रात बारह बजे के बाद हम लोग मुजफ्फरपुर जंकशन पहुंचे और वहां प्लेटफार्म नंबर दो की ओर बढ़े. कुछ जरूरतमंद मिले. कंबल दिया गया. इसके बाद हम लोग वापस घर के लिए निकल रहे थे, तभी लगभग दस साल का बच्च दिखा, जिसके बदन पर शर्ट और शर्ट के अंदर कुछ गरम कपड़ा. एक हाथ में चाय का बर्तन और दूसरे में झोला, जिसमें शायद कुल्हड़ व प्लास्टिक के कप रहे होंगे. छोटे बच्चे को देखते ही मुङो लगा कि इसे भी कंबल देना चाहिये. साथ गये लोगों से कहा, तुरंत कंबल आ गया.
कंबल बांटने में साथ गये विमल छापड़िया ने उसकी ओर कंबल बढ़ाया, तो बच्चे ने कंबल लेने से मना कर दिया. कहने लगा कि मेरे घर में कई कंबल हैं, जो हमारे माता-पिता ओढ़ते हैं. हम तो चाय बेचने आये हैं. अभी थोड़ी देर में ट्रेन आयेगी वापस हाजीपुर चले जायेंगे और घर में जाकर सो जायेंगे. कंबल बांटने के दौरान का ये पहला वाकया था, जब किसी ने मदद लेने से इनकार किया था. बच्चे का हौसला देख कर अच्छा लगा. दमकता चेहरा. मुझसे नहीं रहा गया. मुङो ये लगा कि मैं कहूं तो शादय कंबल ले लेगा.
मैंने कहा, तो कहने लगा कि कंबल लूंगा, तो मेरे सामान का वजन बढ़ जायेगा. फिर हम सामान संभालेंगे कि कंबल. कंबल के साथ हम चाय कैसे बेच पायेंगे. हमको तो अपने पिता के इलाज के लिए पैसे कमाने हैं. हम चाय बेच कर पैसे ले जायेंगे, तब इलाज होगा ना. इस पर हम सब लोग ये जानने को उत्सुक हो गये, आखिर क्या परिस्थिति है, जो इतनी सर्द रात में इतना छोटा बच्च अपने घर से पचास से ज्यादा किलोमीटर दूर स्टेशन पर चाय बेचने के लिए आया है.
हम लोगों को बच्चे से बात करता देख, आसपास के कई और लोग भी आ गये. बच्च कहने लगा कि हम रोज यह काम करते हैं. रात में आते हैं और इधर से जो ट्रेन मिलती है. उससे वापस हाजीपुर चले जाते हैं. दिन में काम करने जाते हैं. शाम के समय घर से चाय लेकर चलते हैं और देर रात तक बेच कर वापस चले जाते हैं. मेरी मां घर में पिता की सेवा करती हैं, क्योंकि वह बीमारी के कारण उठ नहीं पाते हैं. पहले काम करते थे, लेकिन अचानक बीमारी ने घेरा और वह बेड पर पड़ गये. ऐसे में हम अपने परिवार को नहीं संभालेंगे, तो कौन दूसरा मदद करेगा.
दस साल का बच्च वह किसी से मदद भी लेने को तैयार नहीं दिख रहा था. कह रहा था कि मेरे पापा हैं. हम मेहनत करके उनका इलाज करायेंगे. हम पढ़ने के साथ काम करते हैं. चाय बेचते हैं और कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, तो करेंगे. उसकी बातें सुन कर लग रहा था कि आखिर परिस्थिति ने इसे समय से पहले कितना मेच्योर कर दिया है. कैसे इसे खुद के कर्म पर भरोसा है. क्या इस बच्चे की तरह हम सब लोग कर सकते हैं? विभिन्न क्षेत्रों में, जो जहां हैं और जिस काम में है. अगर ऐसा हो, तो अपना देश बदल जायेगा.
सर्द रात में उस दिन कंबल बांटने हम लोग थोड़ी देर से निकले और कई स्थानों पर गये. इससे काफी देर हो गयी. रात बारह बजे के बाद हम लोग मुजफ्फरपुर जंकशन पहुंचे और वहां प्लेटफार्म नंबर दो की ओर बढ़े. कुछ जरूरतमंद मिले. कंबल दिया गया. इसके बाद हम लोग वापस घर के लिए निकल रहे थे, तभी लगभग दस साल का बच्च दिखा, जिसके बदन पर शर्ट और शर्ट के अंदर कुछ गरम कपड़ा. एक हाथ में चाय का बर्तन और दूसरे में झोला, जिसमें शायद कुल्हड़ व प्लास्टिक के कप रहे होंगे. छोटे बच्चे को देखते ही मुङो लगा कि इसे भी कंबल देना चाहिये. साथ गये लोगों से कहा, तुरंत कंबल आ गया.
कंबल बांटने में साथ गये विमल छापड़िया ने उसकी ओर कंबल बढ़ाया, तो बच्चे ने कंबल लेने से मना कर दिया. कहने लगा कि मेरे घर में कई कंबल हैं, जो हमारे माता-पिता ओढ़ते हैं. हम तो चाय बेचने आये हैं. अभी थोड़ी देर में ट्रेन आयेगी वापस हाजीपुर चले जायेंगे और घर में जाकर सो जायेंगे. कंबल बांटने के दौरान का ये पहला वाकया था, जब किसी ने मदद लेने से इनकार किया था. बच्चे का हौसला देख कर अच्छा लगा. दमकता चेहरा. मुझसे नहीं रहा गया. मुङो ये लगा कि मैं कहूं तो शादय कंबल ले लेगा.
मैंने कहा, तो कहने लगा कि कंबल लूंगा, तो मेरे सामान का वजन बढ़ जायेगा. फिर हम सामान संभालेंगे कि कंबल. कंबल के साथ हम चाय कैसे बेच पायेंगे. हमको तो अपने पिता के इलाज के लिए पैसे कमाने हैं. हम चाय बेच कर पैसे ले जायेंगे, तब इलाज होगा ना. इस पर हम सब लोग ये जानने को उत्सुक हो गये, आखिर क्या परिस्थिति है, जो इतनी सर्द रात में इतना छोटा बच्च अपने घर से पचास से ज्यादा किलोमीटर दूर स्टेशन पर चाय बेचने के लिए आया है.
हम लोगों को बच्चे से बात करता देख, आसपास के कई और लोग भी आ गये. बच्च कहने लगा कि हम रोज यह काम करते हैं. रात में आते हैं और इधर से जो ट्रेन मिलती है. उससे वापस हाजीपुर चले जाते हैं. दिन में काम करने जाते हैं. शाम के समय घर से चाय लेकर चलते हैं और देर रात तक बेच कर वापस चले जाते हैं. मेरी मां घर में पिता की सेवा करती हैं, क्योंकि वह बीमारी के कारण उठ नहीं पाते हैं. पहले काम करते थे, लेकिन अचानक बीमारी ने घेरा और वह बेड पर पड़ गये. ऐसे में हम अपने परिवार को नहीं संभालेंगे, तो कौन दूसरा मदद करेगा.
दस साल का बच्च वह किसी से मदद भी लेने को तैयार नहीं दिख रहा था. कह रहा था कि मेरे पापा हैं. हम मेहनत करके उनका इलाज करायेंगे. हम पढ़ने के साथ काम करते हैं. चाय बेचते हैं और कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, तो करेंगे. उसकी बातें सुन कर लग रहा था कि आखिर परिस्थिति ने इसे समय से पहले कितना मेच्योर कर दिया है. कैसे इसे खुद के कर्म पर भरोसा है. क्या इस बच्चे की तरह हम सब लोग कर सकते हैं? विभिन्न क्षेत्रों में, जो जहां हैं और जिस काम में है. अगर ऐसा हो, तो अपना देश बदल जायेगा.
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