परेशानी तो चार दशक पुरानी है, लेकिन मैं लगभग पांच साल से जान रहा हूं. पिछले एक साल से नजदीक से देख रहा हूं. यजुआर के युवा जिस तरह से अपने गांव बिजली लाने के लिए अभियान चलाये हुये हैं. कड़ी से कड़ी जोड़ कर इसे आगे बढ़ा रहे हैं. वह प्रेरणा देनावाला है, लेकिन व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करता है. इलाके से लेकर दिल्ली तक में गांव के युवा अपनी मांग को लेकर अधिकारियों से लेकर नेताओं तक से गुहार लगा चुके हैं. हर दरवाजे से उन्हें आश्वासन मिल रहा है, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ रहा है. हाल में दिल्ली के जंतर-मंतर पर बिजली के लिए धरना-प्रदर्शन हुआ, तो उसमें नेताओं ने भी भागीदारी की. इसके बाद भी यजुआर में बिजली आने की किरण नहीं दिखायी पड़ रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि अब किसका दरवाजा खटखटाएं यजुआर के युवा?
2020 तक सब गांवों को बिजली देने का दावा करनेवाली सरकारें यह बताने को तैयार नहीं हैं, जिस गांव में सत्तर के दशक में बिजली के तार खिच चुके हैं. उस गांव में 2017 में भी बिजली क्यों नहीं जल रही है? अगर नहीं जल रही है, तो इसके पीछे कारण क्या हैं और इसके लिए जिम्मेवार कौन है? उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई की गयी है. अगर सरकार गांववालों को दोषी मानती है, तो उसके बारे में भी बताना चाहिये, ताकि उसके आगे का काम हो सके, लेकिन अब सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलेगा. सिंगल विंडो सिस्टम के जमाने में अगर सरकारी मशीनरी इस तरह का व्यवहार करेगी, तो उसकी महत्ता क्या रह जायेगी? क्या लोगों का विश्वास उसके ऊपर से नहीं उठेगा?
यजुआर के बिजली संघर्ष के बारे में पहली बार विकास ठाकुर ने बताया, जो दिल्ली में रहते हैं, लेकिन गांव में बिजली नहीं होने की कसक उन्हें सालती है. वह लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि जल्दी से जल्दी उनके गांव में भी खिंचे बिजली के तारों से करंट दौड़े. हाल में दिल्ली से मुजफ्फरपुर आये, तो मिलना हुआ. कहने लगे कि बिना गांव को साथ लिये हमारा आंदोलन सफल नहीं होगा. इसी वजह से गांव आया हूं. दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना है. गांव के लोगों से बात करूंगा, तो उससे हमें आंदोलन को सही दिशा में ले जाने की प्रेरणा मिलेगी.
सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न माध्यमों से यजुआर की बिजली की आवाज सामने आयी है, लेकिन जिन लोगों को इसे सुनना है, वह चुप्पी साधे हुये हैं. स्थानीय विधायक भी ग्रामीणों की भाषा बोलते हैं. कहते हैं कि हमने विधानसभा में मामला उठाया है, लेकिन इसके आगे क्या हो रहा है. इसकी जानकारी नहीं दे पाते हैं. विकास ठाकुर जैसे यजुआर के दर्जनों युवा हैं, जो अलग-अलग महानगरों में नौकरी करते हैं, लेकिन सबकी चिंता एक है कि गांव में बिजली कैसे आये. अभियान में शामिल युवाओं में से ज्यादातर उम्र भी उतनी नहीं है, जितने समय से यजुआर के साथ ज्यादती हो रही है. सिके बावजूद इन युवाओं में विश्वास दिखता है कि हमारे गांव में बिजली आयेगी. अन्य गांवों की तरह यजुआर की गलियां भी दूधिया लाइट से रोशन होंगी. बंद पड़ी पानी की टंकी चलेगी और घरों को टैब वाटर मिलेगा, लेकिन कब तक? इसी पर आकर सारी बात रुक जा रही है.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री का पत्र इनके पास है, जो उन्होंने राज्य सरकार को लिखा था, लेकिन राज्य सरकार की ओर से पहल नहीं हुई. कुछ माह पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली गये थे, तो वहां वरिष्ठ पत्रकार मनीष ठाकुर ने उनका ध्यान इसकी ओर खीचा था. उस समय युवाओं को लगा था कि मुख्यमंत्री की ओर से इसकी घोषणा की जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री ने गांव के युवाओं को मिलने के लिए बुलाया, लेकिन अभी तक बात नहीं बनी. अगर यजुआर की बात करें, तो यह सूबे के सबसे बड़े गांव के रूप में शुमार होता है, लेकिन यहां बिजली का नहीं होना पूरी कहानी कहता है.
गांव के लोग अतीत पर गर्व करते हैं, जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र के प्रभाव से यहां बिजली के खंभे गड़े थे. ट्रांसफार्मर लगा था. गांव में टंकी बनी थी. सड़कों का निर्माण हुआ था. एपीएचसी खुल गया था. यह गांव आदर्श गांवों में शुमार हो गया था. गांव में बिजली का खंभा, पोल, तार व ट्रांसफार्मर लगने के बाद भी बिजली केवल टेस्टिंग के लिए आयी. उसके बाद से आज तक बिजली के दर्शन नहीं हुये. बिजली नहीं है, तो टंकी से पानी कैसे मिलेगा, लेकिन टंकी पर सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति जरूर है, जो केवल टंकी की रखवाली का काम कर रहा है.
एपीएचसी बंद हो गयी, जिसके बाद से यहां के ग्रामीण फिर से झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले हो गये हैं. गांव की आबादी लगभग 40 हजार के आसपास है. इसके बाद भी ये दुर्दशा है. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि सात साल पहले अधिकारियों की बड़ी टीम गांव आयी थी, उस समय लगा था कि दिन बहुरनेवाले हैं. 40 बिंदुओं से ज्यादा की रिपोर्ट बनी थी, लेकिन काम किसी पर नहीं हुआ. रिपोर्ट कहीं सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ा रही होगी. गांव के लोगों की बेहतरी की खुशी कुछ दिनों में काफूर हो गयी और वह फिर से खुद को ठगा महसूस करने लगे, जो स्थिति अभी तक जारी है. यहां सवाल फिर से वही है, सरकार ने तमाम योजनाएं बनायी हैं, लेकिन कोई योजना यजुआर जैसे गांव पर क्यों नहीं लागू होती, जिससे यहां पर बिजली आ जाये?
2020 तक सब गांवों को बिजली देने का दावा करनेवाली सरकारें यह बताने को तैयार नहीं हैं, जिस गांव में सत्तर के दशक में बिजली के तार खिच चुके हैं. उस गांव में 2017 में भी बिजली क्यों नहीं जल रही है? अगर नहीं जल रही है, तो इसके पीछे कारण क्या हैं और इसके लिए जिम्मेवार कौन है? उनके खिलाफ किस तरह की कार्रवाई की गयी है. अगर सरकार गांववालों को दोषी मानती है, तो उसके बारे में भी बताना चाहिये, ताकि उसके आगे का काम हो सके, लेकिन अब सिर्फ आश्वासन से काम नहीं चलेगा. सिंगल विंडो सिस्टम के जमाने में अगर सरकारी मशीनरी इस तरह का व्यवहार करेगी, तो उसकी महत्ता क्या रह जायेगी? क्या लोगों का विश्वास उसके ऊपर से नहीं उठेगा?
यजुआर के बिजली संघर्ष के बारे में पहली बार विकास ठाकुर ने बताया, जो दिल्ली में रहते हैं, लेकिन गांव में बिजली नहीं होने की कसक उन्हें सालती है. वह लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि जल्दी से जल्दी उनके गांव में भी खिंचे बिजली के तारों से करंट दौड़े. हाल में दिल्ली से मुजफ्फरपुर आये, तो मिलना हुआ. कहने लगे कि बिना गांव को साथ लिये हमारा आंदोलन सफल नहीं होगा. इसी वजह से गांव आया हूं. दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना है. गांव के लोगों से बात करूंगा, तो उससे हमें आंदोलन को सही दिशा में ले जाने की प्रेरणा मिलेगी.
सोशल मीडिया से लेकर विभिन्न माध्यमों से यजुआर की बिजली की आवाज सामने आयी है, लेकिन जिन लोगों को इसे सुनना है, वह चुप्पी साधे हुये हैं. स्थानीय विधायक भी ग्रामीणों की भाषा बोलते हैं. कहते हैं कि हमने विधानसभा में मामला उठाया है, लेकिन इसके आगे क्या हो रहा है. इसकी जानकारी नहीं दे पाते हैं. विकास ठाकुर जैसे यजुआर के दर्जनों युवा हैं, जो अलग-अलग महानगरों में नौकरी करते हैं, लेकिन सबकी चिंता एक है कि गांव में बिजली कैसे आये. अभियान में शामिल युवाओं में से ज्यादातर उम्र भी उतनी नहीं है, जितने समय से यजुआर के साथ ज्यादती हो रही है. सिके बावजूद इन युवाओं में विश्वास दिखता है कि हमारे गांव में बिजली आयेगी. अन्य गांवों की तरह यजुआर की गलियां भी दूधिया लाइट से रोशन होंगी. बंद पड़ी पानी की टंकी चलेगी और घरों को टैब वाटर मिलेगा, लेकिन कब तक? इसी पर आकर सारी बात रुक जा रही है.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री का पत्र इनके पास है, जो उन्होंने राज्य सरकार को लिखा था, लेकिन राज्य सरकार की ओर से पहल नहीं हुई. कुछ माह पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली गये थे, तो वहां वरिष्ठ पत्रकार मनीष ठाकुर ने उनका ध्यान इसकी ओर खीचा था. उस समय युवाओं को लगा था कि मुख्यमंत्री की ओर से इसकी घोषणा की जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री ने गांव के युवाओं को मिलने के लिए बुलाया, लेकिन अभी तक बात नहीं बनी. अगर यजुआर की बात करें, तो यह सूबे के सबसे बड़े गांव के रूप में शुमार होता है, लेकिन यहां बिजली का नहीं होना पूरी कहानी कहता है.
गांव के लोग अतीत पर गर्व करते हैं, जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्र के प्रभाव से यहां बिजली के खंभे गड़े थे. ट्रांसफार्मर लगा था. गांव में टंकी बनी थी. सड़कों का निर्माण हुआ था. एपीएचसी खुल गया था. यह गांव आदर्श गांवों में शुमार हो गया था. गांव में बिजली का खंभा, पोल, तार व ट्रांसफार्मर लगने के बाद भी बिजली केवल टेस्टिंग के लिए आयी. उसके बाद से आज तक बिजली के दर्शन नहीं हुये. बिजली नहीं है, तो टंकी से पानी कैसे मिलेगा, लेकिन टंकी पर सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति जरूर है, जो केवल टंकी की रखवाली का काम कर रहा है.
एपीएचसी बंद हो गयी, जिसके बाद से यहां के ग्रामीण फिर से झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले हो गये हैं. गांव की आबादी लगभग 40 हजार के आसपास है. इसके बाद भी ये दुर्दशा है. यहां के ग्रामीण बताते हैं कि सात साल पहले अधिकारियों की बड़ी टीम गांव आयी थी, उस समय लगा था कि दिन बहुरनेवाले हैं. 40 बिंदुओं से ज्यादा की रिपोर्ट बनी थी, लेकिन काम किसी पर नहीं हुआ. रिपोर्ट कहीं सरकारी फाइलों की शोभा बढ़ा रही होगी. गांव के लोगों की बेहतरी की खुशी कुछ दिनों में काफूर हो गयी और वह फिर से खुद को ठगा महसूस करने लगे, जो स्थिति अभी तक जारी है. यहां सवाल फिर से वही है, सरकार ने तमाम योजनाएं बनायी हैं, लेकिन कोई योजना यजुआर जैसे गांव पर क्यों नहीं लागू होती, जिससे यहां पर बिजली आ जाये?
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