पिछले लगभग दो दशक से एक्जिट पोल का खेल चल रहा है. शुरू में जब ये कांसेप्ट आया था, तो कुछ स्थिति ठीक थी, लेकिन जब चैनलों की भरमार हुई और तरह-तरह के एक्जिट पोल शुरू हुये. इनको लेकर स्टिंग ऑपरेशन का दौर भी शुरू हुआ. कई चेहरे किस तरह से बेनकाब हुये, तब से एक्जिट पोल को लेकर भरोसा उठ सा गया है. भरोसा उठने के लिए केवल आकड़ों का घालमेल करनेवालों के चेहरे नहीं हैं, बल्कि स्थिति ये भी है कि मान लिया जाये, जहां घालमेल नहीं होता, वहां के नतीजे क्या सही निकलते हैं. पिछले चार-पांच चुनाव का देखें, तो एक-दो जगह ही ऐसा मिलता है, जहां एक्टिज पोल के नतीजे कुछ सही देखने को मिले हैं, बाकि में स्थिति तीन-तेरह वाली ही रही है.
ऐसे में एक्जिट पोल को चाव लेकर देखने और पढ़ने का मन अब नहीं होता है. हां, एक उत्सुकता जरूर रहती है कि चैनल वाले टीआरपी के लिए किस तरफ का रुख कर रहे हैं. सबके नतीजे लगभग साथ ही घोषित होते हैं, ज्यादातर की सीटें आसपास रहती हैं, जबकि कुछ में बड़ा अंतर रहता है. अब इसे क्या कहेंगे, बिहार का चुनाव हुये ज्यादा दिन नहीं हुये. हम लोग ग्राउंड जीरो पर स्थिति देख रहे थे. रंगे-पुते चैनलवाले और वालियां नेताओं के साथ आ रहे थे और यहां से ग्राउंड रिपोर्ट बता रहे थे. वह भी उन लोगों के फीडबैक से जिनका जमीन से कोई सरोकार नहीं? ऐसे में एक्जिट पोल क्या सही होंगे.
हवा-हवाई, तो हवा-हवाई ही रहेंगे. एक्जिट पोल में क्या-क्या नतीजे घोषित किये गये थे बिहार को लेकर और हुआ क्या? एक्जिट पोल के आधार पर सरकार भी बनवाने का काम शुरू हो गया था. कौन-किसके साथ जायेगा, तो सरकार बनने का आकड़ा पूरा हो जायेगा. यही अब सबसे ज्यादा मायने रखनेवाले प्रदेश उत्तर प्रदेश को लेकर किया जा रहा है. चैनलवालों ने अपने हिसाब से सीटों का पिटारा खोल दिया है. अब एक्जिट पोल का नाम भी बदल रहा है. अभी तक कवरेज को लेकर ही महा जैसे शब्दों का इस्तेमाल हो रहा था. अब एक्जिट पोल को लेकर भी इस तरह की बात हो रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिन लोगों के मत के आधार पर इन एक्जिट पोल बनाया गया है. उन्हें क्या सही जानकारी मिली होगी?
अपने यहां का मतदाता जल्दी पत्ते नहीं खोलता है. मतदान केंद्र में वो किस दल को वोट देकर आया है, ये बताने से कम से कम कैमरे पर तो परहेज करता ही है. हां, अगर आप उससे घुल-मिल कर बात करेंगे, तो शायद सच्चई बोल दे. ये सच्चई बिहार चुनाव के दौरान दिख रही थी. हम लोग बात करते थे. कहते थे कि हवा निकलनेवाली है, लेकिन तब हम लोगों को शक की निगाह से देखा जाता है. कथित बुद्धिजीवी कहते थे कि जनता का क्या रुख है और ये क्या बात कर रहे हैं. कई बार खास राजनीतिक दलों से प्रभावित होने के बात हम लोगों के बारे में कह दी जाती थी, लेकिन नतीजा आया, तो क्या हुआ?
हां, एक बात और. यही उत्तर प्रदेश जिसका कल नतीजा आनेवाला है. लोकसभा चुनाव में यहां के एक्जिट पोल में क्या आया था और नतीजों में क्या हुआ? ये सब लोगों ने देखा, तब क्या किसी ने सोचा था कि भाजपा को 72 सीटें मिलेंगी, लेकिन जो लोग जनता के बीच में रहते हैं. उन्हें इस बात का एहसास जरूर था, लेकिन वो स्क्रीन पर नहीं दिख रहा था.
ऐसे में एक्जिट पोल को चाव लेकर देखने और पढ़ने का मन अब नहीं होता है. हां, एक उत्सुकता जरूर रहती है कि चैनल वाले टीआरपी के लिए किस तरफ का रुख कर रहे हैं. सबके नतीजे लगभग साथ ही घोषित होते हैं, ज्यादातर की सीटें आसपास रहती हैं, जबकि कुछ में बड़ा अंतर रहता है. अब इसे क्या कहेंगे, बिहार का चुनाव हुये ज्यादा दिन नहीं हुये. हम लोग ग्राउंड जीरो पर स्थिति देख रहे थे. रंगे-पुते चैनलवाले और वालियां नेताओं के साथ आ रहे थे और यहां से ग्राउंड रिपोर्ट बता रहे थे. वह भी उन लोगों के फीडबैक से जिनका जमीन से कोई सरोकार नहीं? ऐसे में एक्जिट पोल क्या सही होंगे.
हवा-हवाई, तो हवा-हवाई ही रहेंगे. एक्जिट पोल में क्या-क्या नतीजे घोषित किये गये थे बिहार को लेकर और हुआ क्या? एक्जिट पोल के आधार पर सरकार भी बनवाने का काम शुरू हो गया था. कौन-किसके साथ जायेगा, तो सरकार बनने का आकड़ा पूरा हो जायेगा. यही अब सबसे ज्यादा मायने रखनेवाले प्रदेश उत्तर प्रदेश को लेकर किया जा रहा है. चैनलवालों ने अपने हिसाब से सीटों का पिटारा खोल दिया है. अब एक्जिट पोल का नाम भी बदल रहा है. अभी तक कवरेज को लेकर ही महा जैसे शब्दों का इस्तेमाल हो रहा था. अब एक्जिट पोल को लेकर भी इस तरह की बात हो रही है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जिन लोगों के मत के आधार पर इन एक्जिट पोल बनाया गया है. उन्हें क्या सही जानकारी मिली होगी?
अपने यहां का मतदाता जल्दी पत्ते नहीं खोलता है. मतदान केंद्र में वो किस दल को वोट देकर आया है, ये बताने से कम से कम कैमरे पर तो परहेज करता ही है. हां, अगर आप उससे घुल-मिल कर बात करेंगे, तो शायद सच्चई बोल दे. ये सच्चई बिहार चुनाव के दौरान दिख रही थी. हम लोग बात करते थे. कहते थे कि हवा निकलनेवाली है, लेकिन तब हम लोगों को शक की निगाह से देखा जाता है. कथित बुद्धिजीवी कहते थे कि जनता का क्या रुख है और ये क्या बात कर रहे हैं. कई बार खास राजनीतिक दलों से प्रभावित होने के बात हम लोगों के बारे में कह दी जाती थी, लेकिन नतीजा आया, तो क्या हुआ?
हां, एक बात और. यही उत्तर प्रदेश जिसका कल नतीजा आनेवाला है. लोकसभा चुनाव में यहां के एक्जिट पोल में क्या आया था और नतीजों में क्या हुआ? ये सब लोगों ने देखा, तब क्या किसी ने सोचा था कि भाजपा को 72 सीटें मिलेंगी, लेकिन जो लोग जनता के बीच में रहते हैं. उन्हें इस बात का एहसास जरूर था, लेकिन वो स्क्रीन पर नहीं दिख रहा था.
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