शुक्रवार, 17 मार्च 2017

चुनाव जीत लिया, तो मुख्यमंत्री भी चुन लेंगे, आप क्यों परेशान हैं?

विरोध भी अजीब चीज है. दिल है कि मानता नहीं..की तर्ज पर बढ़े ही जाता है? उत्तर प्रदेश में चुनाव का नतीजा आया और भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए ने बंपर जीत दर्ज की. इसके बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया. राजनीति है, सब लोग कयास लगाते हैं. होना भी चाहिये, लेकिन कुछ ऐसे भी बुद्धिजीवी हैं, जो तरह-तरह के तर्को का सहारा ले दिन भर कुछ न कुछ गढ़ते रहते हैं. गोवा और मणिपुर का हवाला दे रहे हैं. वहां बना लिया, यहां क्यों नहीं बना पा रहे हैं. ऐसे राय दे रहे हैं, जैसे सरकार बनाने में इनकी राय ही मानी जायेगी. अगर भाई, आपकी राय के बिना चुनाव जीत लिया है, तो मुख्यमंत्री भी चुन लेंगे. इसमें आप क्यों परेशान हैं?
यह आप खुद के साथ भी करते होंगे, जो काम अर्जेट होता है. उसे जल्दी कर लिया जाता है. जिसमें आप खुद को सक्षम पाते हैं, उसे अपने हिसाब से करते हैं. ऐसा तरह-तरह की सलाह देनेवाले भी करते होंगे, लेकिन विरोध करते समय इसे भूल जाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमारा विरोध इतना सतही होना चाहिये? अगर विरोध ही करना है, तो ऐसे मुद्दों को लेकर हो, जिससे समाज का भला हो? शायद हम लोगों की ऐसी आदत अब नहीं रह गयी है.

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