भगवान हमारे हैं और हमारे का, हमें भरोसा है. राम जी हैं. एक बात सुनाऊं मैं, ममता की बात सुनाऊं.
वृंदावन में एक महत्मा घूमते थे, जिन्हें देख कर लोग कहते थे कि जज साहब आ रहे हैं. जज साहब आ रहे हैं. तीस साल पुरानी घटना है. एक संत से किसी पूछा कि इन्हें जज साहब क्यों कहते हैं?
तो संत ने कहा कि अब साधु हो गये हैं. पहले जज थे. पुराना नाम अभी भी चल रहा है.
उसने पूछा, साधु क्यों हुये?
संत ने कहा,दक्षिण भारत में एक छोटी सी जगह थी. लोक अदालत की तरह, वहां ये जज थे. वहां एक गांव में बड़ा सीधा सरल आदमी रहता था. नाम था भोला. भोला नाम तो लोगों ने रख दिया था, लेकिन वो था भी बिल्कुल भोला. वो राम जी के अलावा किसी को जानता ही नहीं था. गांव में रघुनाथ जी का मंदिर था. भोला केवट जाति का था. सामान्य परिस्थिति थी. गांव का कोई भी व्यक्ति उससे पूछता, भोले वो बात कैसी है, तो भोला बोलता था कि रघुनाथ जी जानें, मैं तो कुछ नहीं जानता.
भोला के दो बेटे और एक बेटी. बेटी विवाह के योग्य हुई, तो बेटों ने कहा कि पिता जी यहां के जो धनी सेठ हैं, उनसे रुपया ले लिया जाय. विवाह के बाद हम लोग कमा कर रुपया चुका देंगे.
केवट गया, सेठ जी ने ब्याज की सामान्य दर तय की. लिखा-पढ़ी हुई, रुपया ले आये. बेटी का विवाह हुआ. बेटी विदा हुई ससुराल को. केवट ने घर छोड़ दिया और गांव में ही रघुनाथ के मंदिर में रहने लगा. सबकै ममता ताग बटोरी. मम पद मनहि बांधि बर डोरी.
इधर, केवट के बेटों ने काम करना शुरू किया और रुपया कमाया. पिता को दिया. भोला रुपया लेकर सेठ जी को वापस करने पहुंच गया. सेठ ने रुपया ले लिया. रसीद बना दी कि पाइ-पाइ से पैसा मिला. केवट को रसीद दे दी और कहा कि केवट पढ़ो, क्या लिखा है?
केवट बोला, सेठ जी, रघुनाथ जी जाने मैं तो कुछ नहीं जानता. क्या लिखा है. इस पर सेठ जी के मन में पाप आया कि इससे दुबारा पैसा लिया जा सकता है. सेठ जी ने कहा कि ये कागज हमें दे दो और तुम जाकर पानी ले आओ.
केवट पानी लेने गया, तो सेठ जी ने वो रसीद अपने पास रख ली. फाड़ते तो शक होता. एक कागज पर कुछ ऐसे ही लिख कर केवट को दे दिया. केवट कागज लेकर मंदिर आ गया. उसने रसीद रघुनाथ जी चरणों में चढ़ाकर, अपने कमरे में रख दी.
इधर, सेठ जी ने मुकदमा कर दिया कि भोला ने रुपया लिया. वापस नहीं दे रहा है. मांगने पर कहता है कि मैंने रुपया चुका दिया है. अदालत में केवट को जाना पड़ा, वही जज जो महत्मा हो गये थे. उन्होंने सुनवाई शुरू की. केवट से पूछा, तुमने सेठ से रुपया लिया था?
केवट ने कहा- हां.
चुका दिया- हां.
इसका प्रमाण- केवट ने वही कागज जज साहब के आगे बढ़ा दिया, जो सेठ जी ने दिया था.
जज बोले- ये कोई सबूत नहीं है. इसमें कुछ लिखा ही नहीं.
केवट रोने लगा. दयालु हृदय जज साहब ने कहा कि रोओ मत. तुमने जब सेठ जी को रुपया रुपया दिया था, तो तुम्हारे और सेठ जी के बीच में कोई तीसरा था?
केवट की जो आदत थी. स्वभाव था. उसी भाव से बोला. सत्य कहता हूं जज साहब. मैंने जब सेठ जी को रुपया दिया था, तो मेरे और सेठ के बीच में रघुनाथ जी के अलावा और कोई तीसरा नहीं था.
केवट की बात सुन कर जज साहब बोले- ठीक है. तुम जाओ. अगली तारीख पर
आना.
जज साहब ने सोचा कि रघुनाथ कोई केवट के गांव का रहनेवाला आदमी होगा. उन्होंने अपने खर्चे से रघुनाथ के नाम पर सम्मन जारी कर दिया.
चपरासी पूरे गांव में सम्मन लिये घूमे. उस गांव में रघुनाथ नाम का कोई आदमी ही नहीं थी. चपरासी परेशान हो गया. इसी दौरान एक व्यक्ति ने कहा कि गांव में रघुनाथ नाम का कोई नहीं है, लेकिन रघुनाथ जी का एक मंदिर जरूर है. जारी..
(राजेश्वरानंद जी के प्रवचन से)
वृंदावन में एक महत्मा घूमते थे, जिन्हें देख कर लोग कहते थे कि जज साहब आ रहे हैं. जज साहब आ रहे हैं. तीस साल पुरानी घटना है. एक संत से किसी पूछा कि इन्हें जज साहब क्यों कहते हैं?
तो संत ने कहा कि अब साधु हो गये हैं. पहले जज थे. पुराना नाम अभी भी चल रहा है.
उसने पूछा, साधु क्यों हुये?
संत ने कहा,दक्षिण भारत में एक छोटी सी जगह थी. लोक अदालत की तरह, वहां ये जज थे. वहां एक गांव में बड़ा सीधा सरल आदमी रहता था. नाम था भोला. भोला नाम तो लोगों ने रख दिया था, लेकिन वो था भी बिल्कुल भोला. वो राम जी के अलावा किसी को जानता ही नहीं था. गांव में रघुनाथ जी का मंदिर था. भोला केवट जाति का था. सामान्य परिस्थिति थी. गांव का कोई भी व्यक्ति उससे पूछता, भोले वो बात कैसी है, तो भोला बोलता था कि रघुनाथ जी जानें, मैं तो कुछ नहीं जानता.
भोला के दो बेटे और एक बेटी. बेटी विवाह के योग्य हुई, तो बेटों ने कहा कि पिता जी यहां के जो धनी सेठ हैं, उनसे रुपया ले लिया जाय. विवाह के बाद हम लोग कमा कर रुपया चुका देंगे.
केवट गया, सेठ जी ने ब्याज की सामान्य दर तय की. लिखा-पढ़ी हुई, रुपया ले आये. बेटी का विवाह हुआ. बेटी विदा हुई ससुराल को. केवट ने घर छोड़ दिया और गांव में ही रघुनाथ के मंदिर में रहने लगा. सबकै ममता ताग बटोरी. मम पद मनहि बांधि बर डोरी.
इधर, केवट के बेटों ने काम करना शुरू किया और रुपया कमाया. पिता को दिया. भोला रुपया लेकर सेठ जी को वापस करने पहुंच गया. सेठ ने रुपया ले लिया. रसीद बना दी कि पाइ-पाइ से पैसा मिला. केवट को रसीद दे दी और कहा कि केवट पढ़ो, क्या लिखा है?
केवट बोला, सेठ जी, रघुनाथ जी जाने मैं तो कुछ नहीं जानता. क्या लिखा है. इस पर सेठ जी के मन में पाप आया कि इससे दुबारा पैसा लिया जा सकता है. सेठ जी ने कहा कि ये कागज हमें दे दो और तुम जाकर पानी ले आओ.
केवट पानी लेने गया, तो सेठ जी ने वो रसीद अपने पास रख ली. फाड़ते तो शक होता. एक कागज पर कुछ ऐसे ही लिख कर केवट को दे दिया. केवट कागज लेकर मंदिर आ गया. उसने रसीद रघुनाथ जी चरणों में चढ़ाकर, अपने कमरे में रख दी.
इधर, सेठ जी ने मुकदमा कर दिया कि भोला ने रुपया लिया. वापस नहीं दे रहा है. मांगने पर कहता है कि मैंने रुपया चुका दिया है. अदालत में केवट को जाना पड़ा, वही जज जो महत्मा हो गये थे. उन्होंने सुनवाई शुरू की. केवट से पूछा, तुमने सेठ से रुपया लिया था?
केवट ने कहा- हां.
चुका दिया- हां.
इसका प्रमाण- केवट ने वही कागज जज साहब के आगे बढ़ा दिया, जो सेठ जी ने दिया था.
जज बोले- ये कोई सबूत नहीं है. इसमें कुछ लिखा ही नहीं.
केवट रोने लगा. दयालु हृदय जज साहब ने कहा कि रोओ मत. तुमने जब सेठ जी को रुपया रुपया दिया था, तो तुम्हारे और सेठ जी के बीच में कोई तीसरा था?
केवट की जो आदत थी. स्वभाव था. उसी भाव से बोला. सत्य कहता हूं जज साहब. मैंने जब सेठ जी को रुपया दिया था, तो मेरे और सेठ के बीच में रघुनाथ जी के अलावा और कोई तीसरा नहीं था.
केवट की बात सुन कर जज साहब बोले- ठीक है. तुम जाओ. अगली तारीख पर
आना.
जज साहब ने सोचा कि रघुनाथ कोई केवट के गांव का रहनेवाला आदमी होगा. उन्होंने अपने खर्चे से रघुनाथ के नाम पर सम्मन जारी कर दिया.
चपरासी पूरे गांव में सम्मन लिये घूमे. उस गांव में रघुनाथ नाम का कोई आदमी ही नहीं थी. चपरासी परेशान हो गया. इसी दौरान एक व्यक्ति ने कहा कि गांव में रघुनाथ नाम का कोई नहीं है, लेकिन रघुनाथ जी का एक मंदिर जरूर है. जारी..
(राजेश्वरानंद जी के प्रवचन से)
Nice
जवाब देंहटाएंAti sundar
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