शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

आंदोलन की राह पर यजुआर के युवा

यजुआर के युवा फिर आंदोलन की राह पर हैं. वजह है, उनके गांव में बिजली जैसी मूलभूत सुविधा का नहीं होना. गांव में बिजली आये, इसके लिए यहां के युवा सालों से अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है, लेकिन क्या इस पर काम होगा, ये बड़ा सवाल अभी बना हुआ है, क्योंकि सालों पहले गांव में विकास की पहल हुई थी, मुजफ्फरपुर से अधिकारियों का अमला यजुआर गांव पहुंचा था. तब भी बिजली का सवाल था, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ.
गौरवशाली अतीत वाले यजुआर गांव में 40 साल पहले पोल-तार लगे थे. शायद वही, इस गांव के वर्तमान के लिए अभिशाप बन गया. तार खिचे, ट्रांसफारमर लगे, तो सरकारी फाइलों में चढ़ गया कि गांव में बिजली है, लेकिन बिजली का दर्शन गांव के लोगों को हुआ नहीं. पोल-तार और ट्रांसफारमर अब भी लगा है, लेकिन किस काम का. ये बात नेता से लेकर अधिकारी तक सब मानते हैं. इसके बाद भी फाइल में चढ़ी बात कैसे नहीं बदली जा रही है. ये बड़ा सवाल है?
यह शायद उस कहावत का जीता-जागता उदाहरण है, जो जंगल में रहनेवाले जानवरों से जुड़ी हैं. जिसमें कहा जाता है कि जंगल में एक दिन जानवर तेजी से भाग रहे थे. उनके साथ ऊंट भी भागा चला जा रहा था. रास्ते में किसी ने पूछ लिया कि ऊंट भाई आप क्यों भाग रहे हैं, तो उसने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की टोली जंगल में बिल्लियों को पकड़ने आयी है. हम इसलिए भाग रहे हैं. कहीं, बिल्ली समझ कर हमें भी पकड़ लिया, तो हमें दशकों ये साबित करने में लग जायेंगे कि मैं बिल्ली नहीं ऊंट हूं.
लगभग आठ माह पहले मेरा भी यजुआर जाना हुआ था. आने-जाने के दौरान चचरी पुल के साथ जिस तरह का सफर रहा, उससे पता चल गया कि कैसे वहां के लोग रह रहे हैं. प्रखंड कार्यालय जाने के लिए उन्हें किस तरह से जद्दोजहद करनी पड़ती है. गांव में टंकी बनी है. कर्मचारी की नियुक्ति है, लेकि बिजली के बिना पानी सप्लाई नहीं होती है. चालीस साल पहले जो पाइप लगी थी, उससे पानी सप्लाई हुये बिना ही जंग खा गया है. पहले गांव में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र था, जहां पर डॉक्टर रहते थे, लेकिन अब यह भी खंडहर हो गया है. 40 हजार से ज्यादा की आबादी वाले यजुआर की हालत सुनने और देखने के बाद सहसा विश्वास नहीं होता है, लेकिन हकीकत यही है.
एक क्लिक पर देश-दुनिया तक समाचार पहुंचने के जमाने में यजुआर जैसे जागरूक गांव की ऐसी स्थिति परेशान करती है. ये परेशानी नाहक नहीं है. यजुआर गांव से ही औराई के विधायक की जीत और हार का रास्ता निकलता है. जिसके पक्ष में यहां वोट पड़ता है, उसका विधानसभा पहुंचना तय माना जाता है. ऐसे ही लोकसभा चुनाव में भी यहां के वोटर अच्छा-खासा अंतर पैदा करते हैं. यही वजह है कि सांसद अजय निषाद ने यहां की एक पंचायत को गोद लिया है, लेकिन पंचायत के लोग कहते हैं कि जब घोषणा हुई थी, तब उम्मीद जगी थी, लेकिन अब हमारी उम्मीद टूट चुकी है.
पूर्व विधायक रामसूरत राय, जो इस समय भाजपा के जिलाध्यक्ष भी हैं. कहते हैं कि हमने गांव में बिजली लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सका. ऐसे ही अन्य जन प्रतिनिधि भी दुहाई देते हैं, लेकिन इस सबका खामियाजा गांव के लोगों को ही भुगतना पड़ रहा है.



 

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