चपरासी बोला, वही बताओ.
मंदिर पर चपरासी पहुंचा, तो पुजारी बाहर बैठे थे. चापरासी ने पूछा, रघुनाथ जी का मंदिर यही है.
पुजारी ने कहा- हां.
चपरासी ने सम्मन आगे बढ़ा दिया, लो ये. पुजारी जी समझ गये. मन ही मन सोचने लगे कि जब भगवान ने मंगा ही लिया है, तो हम क्यों मना करें. हस्ताक्षर, पुजारी ने कर दिये.
चपरासी समझा, यही रघुनाथ जी होंगे.
पुजारी जी ने सम्मन रघुनाथ जी के चरणों में रख दिया और आंखों में आंसू भर कर बोले प्रभु. आपको पोशाक कई बार आयी होगी. भोग लगाने के लिए तरह-तरह के पदार्थ आये होंगे. अभूषण कई बार भक्त लेकर आये होंगे, लेकिन सम्मन पहली बार आया होगा. पर भक्त जो न करें, सो थोड़ा है.
प्रभु उस दीन का आपके अलावा और कोई नहीं है. वो आपके अलावा किसी को जानता ही नहीं है. उसकी लाज आपके हाथ में है.
पुजारी ने केवट से कहा- तुमने क्यों लिखा दिया, रघुनाथ जी का नाम? केवट बोला कोई झूठ लिखा दिया है. हमारे रघुनाथ जी सदा हमारे साथ थे.
केवट तो यही कहे..हरि बिन संकट कौन निवारे..साधन हीन मलीन, दीन मैं.
जाऊं केहि के द्वारे. या अनाथ की लाज आज, रघुनाथ जी हाथ तुम्हारे.
हरि बिन संकट कौन निवारे.
दीन दयाल सुनी जब ते, तब ते मन में कछु ऐसी बसी है. देऊ कहां और जाऊं कहा, बस तेरी ही नाम की फेट कसी है. तेरो ही आसरो, बस एक मलूक. नहीं प्रभु सो कोई औरो जसी है.
ये हो मुरारी पुकारी कहौं, अब मेरी हंसी में, तेरी हंसी है. हरि बिन संकट कौन..हरि बिन संकट कौन निवारे.
कहीं नहीं गया केवट, किसी को जानता ही नहीं रामजी के अलावा. तारीख के एक दिन पहले ही केवट से बोले, तुम आ ही जाओ, ताकि समय से पहुंच जाओ.
रघुनाथ जी की, तो रघुनाथ जी ही जानें.
केवट रघुनाथ जी के चरणों प्रणाम करके चला गया.
दूसरे दिन पुजारी जी सुबह जल्दी जगे. भगवान की आरती पूजा की और नया व पहनाया. भोग लगाया. उनको लग रहा था कि आज भगवान पहली बार बाहर जा रहे हैं. कपड़े अच्छे पहनावें. रोन लगे पुजारी जी. भाव की तो बात है.
प्रभु आपको, जो पोशाक अच्छी लगे, वही पहनकर जाना, लेकिन जाना जरूर. उसका कोई नहीं आपके अलावा.
उधर, केवट पहुंचा, सेठ जी भी पहुंच गये.
जज साहब ने पूछा- केवट तुम्हारे गवाह रघुनाथ जी कहां हैं?
केवट ने कहा- साहब, यहीं कहीं होंगे. वह तो सब जगह रहते हैं.
जज साहब फिर केवट की बात समझ नहीं पाये.
चपरासी को आदेश दिया- आवाज लगाओ.
चपरासी ने आवाज लगाना शुरू किया- रघुनाथ हाजिर हों, रघुनाथ हाजिर हों..रघुनाथ हाजिर हों.
तीन बार चपरासी ने ऐसे जो आवाज लगायी, तो उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी हाथ में लकड़ी पकड़े, कमर झुकी हुई. हाथ से इशारा किया.
रघुनाथ हाजिर है, ऐसे तीन नारे जो लगाये हैं.
चाल लटपटी सी एक वृद्ध की झुकी सी देह.
दुपटी फटी सी शीश बांधे, धर धाये हैं.
हाथ माहे छड़ी पड़ी, तुलसी की हिये माल.
माथे पर रोली चारू, चंदन चढ़ाये हैं.
साहब के सामने विनीत चपरासी साथ.
आज रघुनाथ जी गवाह बन आये हैं.
भगवान गवाह बन कर आ गये. जज साहब ने देखा. सेठ जी देख कर चौक गये. ये कौन आ गया.
जज साहब ने पूछा- आप थे वहां.
रघुनाथ जी ने कहा- हां, केवट ने रुपया दिया है.
जज ने पूछा- इसका प्रमाण.
रघुनाथ जी बोले- हां, इन्होंने रसीद भी लिख ली थी. सेठ जी को यहीं रखा जाये. इनके मकान की सामनेवाली बैठक के सामनेवाली दीवार पर तीन आलमारियां हैं. उसकी बीच वाली अलमारी में बही रखी है, 32 नंबर की. उसी में रसीद अभी तक सुरक्षित रखी है.
सर्वातरयामी भगवान से क्या छुप सकता है? सिपाही भेजे गये. बही और रसीद मिल गयी. सेठ जी को दंडित होना पड़ा.
केवट, बाइज्जत बरी हुआ. रघुनाथ जी गायब हो गये, क्योंकि काम तो हो ही गया था.
अब जज साबह ने सोचा, इतने दिन हो गये फैसला सुनाते. पर ऐसा गवाह आज तक नहीं पहुंचा.
केवट से अकेले में पूछा- ये रघुनाथ जी कहां रहते हैं.
केवट बोला- जहां हम रहते हैं.
जज बोले- तुम कहां रहते हो.
केवट बोला- जहां रघुनाथ जी रहते हैं.
जज साहब बोले- हम समङो नहीं, तुम लोग एक ही जगह, एक ही गांव के रहनेवाले हो.
केवट बोला- हां, हुजूर, आपको कैसे समझायें. आप तो पढ़े-लिखे हो. पढ़े-लिखों को समझाना. बहुत कठिन है. भक्ति और भगवान की बात.
जज साहब बोले- ये हैं कौन?
केवट बोला- हुजूर ये वो हैं, जिनका मंदिर है.
जज साहब बोले- इन्होंने मंदिर बनवाया है. देखने से तो नहीं लग रहे थे कि कोई इतने बड़े संपन्न आदमी होंगे, जिन्होंने मंदिर बनवाया होगा. पुजारी भी नहीं लग रहे थे.
केवट बोला- हुजूर, ये वही हैं, जो मंदिर में बैठे हुये हैं.
अब तो जज साहब ने चपरासी को बुलाया- चपरासी कांपने लगा. कहने लगा- हुजूर ये वो आदमी नहीं था, जिसने हस्ताक्षर किये थे.
इसके बाद जज साहब ने गांव में पता लगाया, तो भाव विह्वल हो गये. अपने बंगले पर आये और रोने लगे.
लोगों ने रोने का कारण पूछा- तो जज साहब रोते हुये बोले-
शिव सारद, नारद, शेष गणोश, के नहीं ध्यान में आते रहे. सोइ आज विनीत अदालत में केवटा के गवाह कहाते रहे.
लोग बोले- अरे तो इसमें, रोने की क्या बात है. खुश होना चाहिये कि दर्शन हो गये. चले गये, तो वे, तो जाते ही.
जज साहब साहब बोले- सुख धो के उतर्स दिये को भयो. दुख नाहिंन, जो तज जाते रहे.
लोग बोले- तो, ये रो क्यों रहे हो?
तो जज साहब ने बड़ी भाव भरी बात कही. बोले- आज बड़ी गलती हो गयी.
कुरसी पर बना जज बैठा रहा. जगदीश खड़े समझाते रहे.
कुरसी पर जज बना बैठा रहा, जिनकी अदालत में सबको उपस्थित होना पड़ता है. वे भगवान खड़े-खड़े गवाही देते रहे. ऐसा वैराग्य हुआ. उसी दिन पद से इस्तीफा दे दिया. वृंदावन आ गये. साधु जीवन बिताया. अक्सर खड़े रहते. कहते, भगवान, खड़े रहे और मैं बैठा रहा. अब तो खड़े रहना ही अच्छा है. मंदिर में जाते, तो अंदर नहीं. बाहर से ही दरवाजे की धूल सिर पर चढ़ा लेते. कोई कहता - अंदर क्यों नहीं जाते, तो कहते, मैं उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं हूं. मुझसे जो अपराध हुआ.
केवट के कारण भगवान गवाह बने. क्या था केवट में?
सबकै ममता ताग बटोरी, मम पद मनहि बांध बर डोरी. अस सज्जन मम उर बस कैसे. लोभी हृदय बसै धन जैसे.
ये सज्जन की दूसरी परिभाषा है.
राजेश्वरानंद जी के प्रवचन से