शनिवार, 22 जुलाई 2017

प्रकृति से प्यार सच्ची मानवता

भाई शेखर जी से पहली बार कब मिलना हुआ था. ठीक से याद नहीं, लेकिन 2013 में ठंड के मौसम में कंबल वितरण के दौरान हम कुछ घंटे साथ थे. उस समय शेखर जी रोटरी क्लब के सचिव थे और अध्यक्ष थे डॉ एचएन भरद्वाज. कंबल वितरण के दौरान शेखर जी के विचार जानने का मौका मिला. इसके बाद से ज्यादातर फेसबुक की आभासी दुनिया के जरिये शेखर जी को देखता रहा हूं. आज उनके विद्यालय की एक तस्वीर देखी, तो लगा कि कुछ लिखना चाहिये शेखर जी के बारे में. हमें ये मौका फेसबुक की दुनिया तो देती ही है.
तस्वीर के कुछ बच्चे गमलों में लगे प्लांट (पौधों) के प्रति अपना प्यार जता रहे हैं. इसका कैप्शन है, प्रकृति की देखरेख और उसके प्रति प्यार ही सच्ची मानवता है. इससे पहले मुङो याद नहीं किसी स्कूल के छोटे बच्चों की ऐसी तस्वीर मैंने देखी है. हो सकता है, अन्य स्कूलों में बच्चों को ऐेसा होता हो. अगर ऐसा है, तो मैं उसे सलाम करता हूं, क्योंकि ऐसे दौर में जब लगातार प्रकृति के दोहन की बात हो रही है, उसमें उसके प्रति लगाव बड़ी सोच का परिचायक है. मुङो लगता है कि यह सोच शेखर जी में है.
यह पहला मौका नहीं है, जब उनकी सकारात्मक सोच दिखी है. वह अपने स्कूलों में लगातार ऐसे आयोजन करते रहते हैं, जिससे बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ें. यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि यह आदतें, उन बच्चों को सिखायी जा रही हैं, जो पांच से दस साल के बीच की है, जो आनेवाले समय में अपने देश व समाज का भविष्य हैं. अगर बच्चों में यह सीखते हैं, तो हम कैसे समाज का निर्माण करने जा रहे हैं. इसे कहने और सोचने में गर्व का एहसास होता है.
हाल में जब शेखर जी रोटरी क्लब से अध्यक्ष बने, तो मुलाकात हुई. इस दौरान सामाजिक मुद्दों पर देर तक चर्चा होती रही. वो कहने लगे कि हम अपने कार्यकाल के दौरान बच्चों में अच्छी आदतों को लेकर अभियान चलायेंगे. उनको छोटी-छोटी बातों के बारे में बतायेंगे. कुछ साल पहले सरकार ने खाने से पहले हाथ धोने की योजना शुरू की थी, जिसमें बच्चों को बताया जाता था कि हाथ धो कर खाना खाने से क्या फायदे होते हैं? हाथ, कैसे धोना चाहिये, ताकि सही असर हो? यह अभियान फिर से रोटरी के जरिये शेखर जी चलानेवाले हैं.
वह कहते हैं कि हम अपने स्कूलों में ज्यादा छात्रों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहते हैं. यही वजह है कि जैसे तीन सौ के आसपास बच्चे होते हैं. हम दूसरी ब्रांच शुरू कर देते हैं. इससे होता ये है कि स्कूल में अनुशासन बना रहता है. साथ ही कुछ और लोगों को रोजगार भी मिल जाता है.

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