गुरुवार, 27 जुलाई 2017

जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे, किरायेदार हैं..

प्रसिद्ध शायर राहत इंदौरी ने अपने एक शेर के जरिये राजनीति पर जबरदस्त टिप्पणी की है..
जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे.
किरायेदार हैं, जाती मकान थोड़ी है.
सभी का खून है, शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है.
पिछले लगभग 24 घंटों में बिहार ने कुछ ऐसा ही मंजर देखा है, जो कल तक सत्ता में थे. आज नहीं हैं. राजद और कांग्रेस बिहार की सत्ता से बाहर हो चुके हैं. ये आज की कड़वी सच्चई है. 2015 के चुनाव से पहले जब यह महागठजोड़ बना था, तो कयास लगाये जा रहे थे कि मोदी की लहर में यह बह जायेगा, लेकिन बिहार ने भाजपा को ऐेसा सबक मिला, जो पार्टी को लगातार परेशान कर रहा था. राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद ने चुनाव के दौरान ही ऐसा दांव मारा कि भाजपा चारों खाने चित हो गयी.
चुनाव के बाद जो हालात बने और जिस तरह से नयी सरकार का गठन हुआ. उस समय से ही कयासों का दौर शुरू हो गया. राजद में शामिल कई नेताओं पर जिस तरह से राज्य सरकार की ओर से कार्रवाई शुरू हुई, तभी यह तय हो गया था कि सरकार चाहे जो हो, अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकेगी. पहले से चारा घोटाले में कानूनी दांव-पेच में उलङो लालू यादव और उनके परिवार पर जब इन्कमटैक्स, इडी और सीबीआइ ने शिकंजा कसना शुरू किया, तो स्थितियां रातोंरात बदल गयीं. बिहार में अटूट कहे जानेवाले गठबंधन की चूलें हिलने लगीं.
लालू प्रसाद की कानूनी मजबूरी देखिये, जब सीबीआइ के आरोपों को लेकर नीतीश कुमार इस्तीफा देने राजभवन पहुंचे, तो वह रांची में चारा घोटाले के मामले में पेशी के लिए निकलने की तैयारी कर रहे थे. आनन-फानन में पत्रकारों से बात की और कुछ समय परिवार के साथ बिताने के बाद रांची के लिए सड़क के रास्ते निकल गये, लेकिन राजनीति में माहिर लालू ने समय का उपयोग किया. वो अपने साथ पत्रकारों को लेकर रांची के लिए निकले, जिनसे रास्ते में बात करते रहे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते रहे. साथ ही केंद्र की भाजपा सरकार विशेष कर प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उनके निशाने पर रहे.
रांची के रास्ते में जाते समय लालू को हाव-भाव वैसे नहीं थे, जिनके लिए वो जाने जाते हैं. सभी सवालों का बड़ी ही विनम्रता व सधे ढंग से जवाब दे रहे थे. साथ ही लगातार घटनाक्रम पर भी नजर रखे हुये थे. पटना में क्या हो रहा है, इसकी पल-पल की जानकारी ले रहे थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आधी रात को सरकार बनाने का दावा पेश किया, तो उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव भी राजभवन पहुंच गये. वह लालू के अंदाज में ही नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे थे. इससे पहले तेजस्वी ने कभी भी नीतीश कुमार के खिलाफ खुल कर नहीं बोला था. वह सधे हुये राजनेता के रूप में बोल रहे थे.
रांची में पेशी के बाद लालू प्रसाद ने पत्रकारों से बात की, तो उन्होंने महत्मा गांधी से लेकर जेपी, लोहिया, 74 का आंदोलन सब आया. लगभग सवा घंटे तक वह पत्रकारों से सामने अपनी बात रखते रहे. इस दौरान वह कई मौकों पर पुराने रंग में भी दिखे. अपने अंदाज में जदयू व भाजपा के नेताओं पर निशाना साधा. साथ ही बसपा की मुखिया बहन मायावती को फिर राज्यसभा में भेजने का न्योता दिया. लालू की राजनीति में यह जरूर देखने को मिला है. उन्होंने तमाम लोगों का भला किया है. याद कीजिये, रामविलास पासवान, जब कोई साथ नहीं था, तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने ही साथ दिया था. 2014 के चुनाव में हार के बाद नीतीश के सामने जब कोई रास्ता नहीं था, तो लालू प्रसाद ने ही बढ़ कर हाथ थामा था. ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनमें लालू यादव राजनीतिक तौर पर एहसान करते रहे हैं, लेकिन चारा घोटाले के आरोपों के बाद लालू जिस राजनीति का प्रतीक बने. वह उन्हें लगातार बेचैन करती रही है. अब सीबीआइ, इडी और इनकम टैक्स के शिकंजे ने उनके परिवार के लिए ऐसी मुश्किलें खड़ी की हैं, जो आनेवाले सालों में उनका पीछा नहीं छोड़ेगीं.

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