बुधवार, 5 जुलाई 2017

मैं मुजफ्फरपुर टावर चौक की घड़ी बोल रही हूं

मैं मुजफ्फरपुर टावर चौक की घड़ी. मेरा हाल आप लोग देख रहे हैं. अगर नहीं, तो यह मेरी नहीं, आपकी बदकिस्मती है, क्योंकि मैं उनमें हूं, जिन्हें आप अपना पूर्वज कहते हैं, जिनके नाम पर दंभ भरते हैं. उन्हें समय बताती थी, जिससे वो अपनी राह तय करते थे. हाल के सालों में शहर की चाल क्या बदली. मेरा भी समय बदल गया. मैं भी खराब रहने लगी. समय के साथ किसी ने मेरा साथ नहीं दिया. ठीक वैसे ही, जैसे शहर का. सब कहते हैं ना कि पहले बड़ा भाईचारा था, कल्याणी पर शहर के लोग इकट्ठा होते थे. वहीं, पर बातें होती थीं, देश से लेकर दुनिया तक की, लेकिन अब वहां की रवायत खत्म हो गयी है. अंडा पराठा और मोमो जैसे फास्ट फूड उस चौक की पहचान बन गये हैं, जिनके साथ युवा वर्ग ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपनी तस्वीरें शेयर करता है और कहता है कि ये है हमारा शहर मुजफ्फरपुर.
क्या मुजफ्फरपुर यही है? ये सवाल मैं खुद से करती हूं और फिर चारों ओर नजर दौड़ाती हूं, तो कल्याणी चौक पर अभी भी वो चीजें मौजूद हैं, जिनकी चर्चा नहीं होती. हां, तो मैं अपनी बात कह रही थी. कैसे हमें उपेक्षा की गर्त में ढकेल दिया गया है. इस उपेक्षा के बाद भी मैं दिन में दो बार कम से कम सही समय बताती हूं, लेकिन मुङो देखने और मुङो पर गर्व करनेवालों को दिनों, महीनों और सालों में भी मेरे लिए एक भी सही शब्द नहीं आते. अगर ऐसा होता, तो आज मेरी हालत यह नहीं होती. मैं, महाभारत के संजय की तरह आपकों सब चीजें, दिन, तारीख व समय के हिसाब से बता सकती हूं, जो मेरे आसपास घटा है, लेकिन क्या करूं मजबूर हूं. अपनों ने ही मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है कि अब मैं खुद पर इतरा नहीं सकती. किसी छात्र से यह नहीं कह सकती कि अभी तुम लेट नहीं हुये हो, क्योंकि मुङो बंद कर दिया गया है?
अपने अतीत पर गर्व करनेवाले क्या नहीं करते. सैकड़ों साल पुरानी गाड़ियां नहीं चलतीं? हैरिटेज के नाम पर? उनके कलपुज्रे कहां से आाते हैं, तो फिर मेरे कलपुजरे के बारे में ये क्यों कहा जा रहा है कि मिल नहीं रहे हैं? अरे, कोई ठीक से खोजना नहीं चाहता. ऐसा कहनेवाले झूठ बोल रहे हैं. मेरे ही साथ की कई घडियां आज भी विभिन्न शहरों के चौक-चौराहों पर चल रही हैं. अगर मैं इतनी ही परेशानी का सबब बन गयी हूं, तो मुङो बदला भी तो जा सकता है, लेकिन क्या किसी ने इसकी ओर ध्यान दिया. ऐेसा मेरे ही साथ क्यों हो रहा है?
मैंने बहुत से ऐसे लोगों को इसी शहर में जीरो से हीरो बनते देखा है. मुझमे समय समय देख-देख कर उन्होंने अपना तो समय बना लिया, लेकिन शहर को क्या दिया? हमें क्या दिया? यह सवाल उन लोगों से जरूर है और रहेगा? यह सवाल शहर के उन लोगों को भी पूछना चाहिये, जो तथस्ट हैं? क्योंकि समय उन्हें भी नहीं छोड़ेगा, जवाब देना होगा? हां, मैं इसी आशा में हूं कि मुङो मेरा जवाब मिले और मेरे नीचे समय की शिला पर ऐसी रेखा खीचनेवाले बापू तो बैठे ही हैं, जो सदियां बीतने के साथ और चमकीली होती जायेगी. बाकी बातें फिर कभी, आज के लिए इतना ही. सावन का महीना आनेवाला है. मैं फिर से बाबा गरीबनाथ की महिमा के कयाल भक्तों को देखना चाहती हूं, जय गरीबनाथ.

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