सूचना क्रांति क्या हुई. चिट्ठी और तार के सहारे चलनेवाली जिंदगी फास्ट फारवर्ड मोड में आ गयी. अब लोग आदमी नहीं रोबोट की तरह नजर आते हैं. चिंटू- पिंटू, पप्पू- बिल्लू सब एक्शन में हैं. एक फोन से बात कर रहे हैं, तो दूसरे से मैसेज का उत्तर दे रहे हैं. सामने पानवाले को भी इशारा कर रहे हैं. कैसा पान लगाना है. ऐसे चिंटू-पिंटू हर गली मोहल्ले में आसानी से मिल जायेंगे, जो कुछ साल पहले तक बिस्तर पर पड़े चारपायी तोड़ते नजर आते थे. अब कामी पुरुषों में इनकी गिनती होने लगी है. काम क्या, यह तो यही बता सकते हैं, लेकिन मम्मी-पापा का सिरदर्द इन्होंने बढ़ा रखा है.
पांचवीं से आगे बढ़ते ही बच्चे खुद के लिए अलग से फोन की फरमाइश करने लगे हैं. फोन के लिए यह कोई भी जुगत लगाते हैं. मौका पड़ने पर अनशन करने (खाना छोड़ने) तक को तैयार हो जाते हैं. यह बदलाव का कौन सा दौर चल रहा है, इसे नाम देना मुश्किल हो रहा है. क्योंकि आकरुट से शुरू हुआ. ऑनलाइन मित्र बनाने का सिलसिला अब क्लासिफिकेशन तक पहुंच गया है. नौकरी चाहते तो इस साइट पर रहिये. मित्र बनाना है, तो फलाना साइट के सदस्य बन जाइये. चैटिंग करना है, तो इस साइट पर रह कर शोभा बढ़ाइये. रोज नयी-नयी साइट और एप लांच हो रहे हैं. अब आप खुद को एप बना कर भी धमाल मचा सकते हैं.
सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा है कि चिंटू-पिंटू के ऊपर से भी कई बातें निकल जा रही हैं. इस बदलाव ने क्या दिया. अभी इस पर चर्चा कम हो रही है, लेकिन दस बच्चे से लेकर अस्सी साल के दादा जी तक को बिजी रहने का मौको दे दिया है. अब घरों में साथ रहने पर भी बात नहीं होती है. दादा जी अपने फोन में लगे हैं, तो पोता अलग से आइपैड लेकर बैठा है. दोनों एक कमरे और एक सोफे पर होने के बाद भी आपस में बात नहीं करते हैं. स्क्रीन पर चलनेवाली गतिविधि से खुशी और गम में डूबते हैं, तो कभी जोर से सांस लेकर एक दूसरे को देख कर फिर स्क्रीन में डूब जाता है. मुङो लगता है कि ये सूचना क्रांति का स्क्रीन काल है, जिसमें उंगलियों के साथ सबसे ज्यादा आंख की एक्सरसाइज हो रही है, जिससे आंखें धोखा बी देने लगी हैं. छोटे-छोटे बच्चे आंख की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
क्रांति के इस दौरान में सब फिंगर टिप्स पर आता जा रहा है, जिससे शारीरिक श्रम जाता रहा है. जैसे-जैसे यह आगे बढ़ रहा है, सोच का तरीका भी बदल रहा है. लोगों की सोचने की क्षमता कम हो गयी है. यह हम नहीं, वो लोग ही कह रहे हैं, जो इन सबके आदी हो चुके हैं. अब तो सोशल साइट्स से खुद को अलग करने का दौर भी शुरू हो गया है, लेकिन अभी इसकी स्पीड कम है और जो अलग होता है, वो जल्दी ही वापस भी आ जाता है, क्योंकि वह आभासी दुनिया से बाहर के माहौल में खुद को एडजस्ट नहीं कर पाता है और हार कर उसकी निगाह पास पड़े मोबाइल पर जाती है, जिसमें बिना इच्छा ही ये मैसेज टाइप और सेंड हो जाता है कि कुछ दिन आप लोगों से दूर रहा. क्षमा चाहता हूं. अब फिर से वापस आ गया हूं. अपने विचारों से आपको अवगत कराता रहूंगा.
पांचवीं से आगे बढ़ते ही बच्चे खुद के लिए अलग से फोन की फरमाइश करने लगे हैं. फोन के लिए यह कोई भी जुगत लगाते हैं. मौका पड़ने पर अनशन करने (खाना छोड़ने) तक को तैयार हो जाते हैं. यह बदलाव का कौन सा दौर चल रहा है, इसे नाम देना मुश्किल हो रहा है. क्योंकि आकरुट से शुरू हुआ. ऑनलाइन मित्र बनाने का सिलसिला अब क्लासिफिकेशन तक पहुंच गया है. नौकरी चाहते तो इस साइट पर रहिये. मित्र बनाना है, तो फलाना साइट के सदस्य बन जाइये. चैटिंग करना है, तो इस साइट पर रह कर शोभा बढ़ाइये. रोज नयी-नयी साइट और एप लांच हो रहे हैं. अब आप खुद को एप बना कर भी धमाल मचा सकते हैं.
सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा है कि चिंटू-पिंटू के ऊपर से भी कई बातें निकल जा रही हैं. इस बदलाव ने क्या दिया. अभी इस पर चर्चा कम हो रही है, लेकिन दस बच्चे से लेकर अस्सी साल के दादा जी तक को बिजी रहने का मौको दे दिया है. अब घरों में साथ रहने पर भी बात नहीं होती है. दादा जी अपने फोन में लगे हैं, तो पोता अलग से आइपैड लेकर बैठा है. दोनों एक कमरे और एक सोफे पर होने के बाद भी आपस में बात नहीं करते हैं. स्क्रीन पर चलनेवाली गतिविधि से खुशी और गम में डूबते हैं, तो कभी जोर से सांस लेकर एक दूसरे को देख कर फिर स्क्रीन में डूब जाता है. मुङो लगता है कि ये सूचना क्रांति का स्क्रीन काल है, जिसमें उंगलियों के साथ सबसे ज्यादा आंख की एक्सरसाइज हो रही है, जिससे आंखें धोखा बी देने लगी हैं. छोटे-छोटे बच्चे आंख की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
क्रांति के इस दौरान में सब फिंगर टिप्स पर आता जा रहा है, जिससे शारीरिक श्रम जाता रहा है. जैसे-जैसे यह आगे बढ़ रहा है, सोच का तरीका भी बदल रहा है. लोगों की सोचने की क्षमता कम हो गयी है. यह हम नहीं, वो लोग ही कह रहे हैं, जो इन सबके आदी हो चुके हैं. अब तो सोशल साइट्स से खुद को अलग करने का दौर भी शुरू हो गया है, लेकिन अभी इसकी स्पीड कम है और जो अलग होता है, वो जल्दी ही वापस भी आ जाता है, क्योंकि वह आभासी दुनिया से बाहर के माहौल में खुद को एडजस्ट नहीं कर पाता है और हार कर उसकी निगाह पास पड़े मोबाइल पर जाती है, जिसमें बिना इच्छा ही ये मैसेज टाइप और सेंड हो जाता है कि कुछ दिन आप लोगों से दूर रहा. क्षमा चाहता हूं. अब फिर से वापस आ गया हूं. अपने विचारों से आपको अवगत कराता रहूंगा.
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