गुरुवार, 13 जुलाई 2017

बाहर गंध, अंदर सुगंध

बाहर गंध, अंदर सुगंध, यह बात जैसे ही आनंद ने सुनी, नहले पे दहला मारते हुये बोले, बाहर से सेरवानी, अंदर से परेशानी. दरअसल, यह दो तस्वीरें उस जगह की हैं, जिन्हें हम अपने मुजफ्फरपुर की अच्छी जगहों में शुमार करते हैं. आनंद एक बड़े शो रूम में काम करते हैं. गुरुवार को चलते-चलते उनसे मुलाकात हो गयी. शो रूम के बाहर इतनी बदबू कि खड़ा होना मुश्किल. इसके बाद भी दर्जनों की संख्या में लोग खड़े थे, जबकि शो रूम के अंदर सेंट छिड़का गया था, जिससे महक बिखर रही थी. इससे वहां सामान खरीद रहे लोग अच्छा महसूस कर रहे थे. बात चली, तो आनंद कहने लगे कि ये सब देखने के लिए है. बारिश होती है, तो शो रूम में भी पानी आ जाता है. यहां की स्थिति अलग नहीं है. हमने सोख्ता बनाया हुआ है. यह चमक दमक..आगे कुछ बोलते हुये वह रुक जाते हैं.
मुजफ्फरपुर शहर के कुछ ऊंचे इलाकों को छोड़ दें, तो निचले इलाकों में अब दरुगध ने डेरा जमा लिया है. बारिश को चार दिन हो गये हैं, लेकिन अभी गली, मोहल्लों और घरों से पानी नहीं निकल पाया है. कहने को निगम की ओर से लगातार काम हो रहा है, लेकिन अभी तक सभी को राहत नहीं मिली है. कहीं, लोग ट्यूब के सहारे घर से बाहर निकल रहे हैं, तो कहीं हाफ पैंट के सहारे गुजारा कर रहे हैं. महिलाएं पानी में खड़ी होकर खाना बनाने व घर के काम करने को मजबूर हैं.
मुजफ्फरपुर ही क्या, उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, दरभंगा और मधुबनी सब जगह यही स्थिति है. तस्वीरें वहां की हकीकत को बयान कर रही हैं. कैसे लोग रह रहे हैं. निजी क्या, सरकारी ऑफिसों तक में पानी भरा है. वहां कर्मचारियों व अधिकारियों का काम करना मुश्किल है, लेकिन इसी मुश्किल के बीच काम हो रहा है.
गांव और शहर को समझनेवाले विशेषज्ञ कहते हैं कि यह हम लोगों की बनायी स्थिति है. हम लाखों रुपये खर्च करके घर बनाते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि नाली कहां निकलेगी. सड़क से लोग कैसे गुजरेंगे. घर के आसपास कुछ न कुछ अतिक्रमण की आदत हम में से ज्यादातर को पड़ गयी है. उसका परिणाम ही हमें इस रूप में देखने को मिल रहा है. यह ठीक होनेवाला नहीं. नगर निगम और नगर परिषद चाहे जितना कर लें, हालात हमीं आप मिल कर बदल सकते हैं. अतिक्रमण के साथ हम लोग कूड़े के रूप में इतनी पॉलीथीन सड़कों पर फेंक रहे हैं, जो नाले और नालियों में जाकर फंस रही हैं.
कहने और सुनने में भले ही यह उपदेश जैसा लगता है, लेकिन सच्चई यही है और इसी का खामियाजा हमारे शहर भुगत रहे हैं. हम स्मार्ट सिटी में तो शामिल होना चाहते हैं, लेकिन खुद स्मार्ट नहीं बनना चाहते हैं. ऐसे कैसे होगा, क्या स्मार्ट होने का यही नतीजा है कि लोग हफ्तों, महीनों बारिश के पानी में रहने को मजबूर हों.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें