सोमवार, 24 जुलाई 2017

हमने मशीनों के सामने आत्मसमर्पण किया

बहुत संकीर्ण हो गये हैं हम. हमारे जीवन का मशीनीकरण हो गया है. हम स्विच दबाते हैं, तो बत्ती जल जाती है. सुबह से रात तक के जीवन में मशीन का प्रवेश है. कंप्यूटर है, गुगल है. इन विरोधाभासों को कैसे ठीक करें? हम मंगल पर पहुंच रहे हैं, लेकिन अपने पड़ोसी के बारे में नहीं जान रहे हैं. बहुत संकीर्ण हो गये हैं. हमको फिर से इस ढाचे को व्यवस्थित करना होगा. फिर से सोचना होगा. थोड़ा-सा मशीन और ज्ञान की जो भूमिका है, उसको घटाना होगा. और थोड़ा- सा हमारा जो अपना कंट्रोल है, उसे बढ़ाना होगा. हम मशीनों के सामने आत्मसमर्पण कर गये हैं. हमारे दिमाग को मैकेनाइज्ड कर दिया गया है.
वीडियो गेम में बच्चे इतना मशगूल हो गये, उन्हें होश- हवास नहीं रहा. एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, वो अपने घर में बच्चों को 21 साल तक आइपैड का इस्तेमाल नहीं करने देते थे. उस आदमी ने एक इंटरव्यू में कहा कि नीम-करोली बाबा ने इस दुनिया को क्या दिया? हमने इस दुनिया को कुछ दिया है. मैं पूछता हूं स्टीव जॉब्स से कि तुम नीम करोली के चरणों की धूल के बराबर नहीं हो, क्योंकि तुम दोहरे मापदंड अपनाये हुए हो. उस चीज को घर में नहीं दे रहे हो, क्योंकि तुम समझते हो कि वह नुकसानदेह है, लेकिन उसी को बेच कर तुम करोड़पति-अरबपति हो गये. दूसरे के बच्चे का नुकसान हो, लेकिन तुम्हारे बच्चे का नुकसान ना हो, यह क्या है? इसलिए मैं कहता हूं कि नये सिरे से हमें देखना होगा कि मशीन की जीवन में कहां तक इजाजत है?
ये कंप्यूटर, टीवी हमारे जीवन में हमला है. विजुअल मीडिया ने त्रस्त कर रखा है. गंदी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. मनुष्य जरा चेते. जरा सावधान हो. कैसा राक्षस को हमने जन्म दिया है, जो हमको खा रहा है. ये भस्मासुर है. ये शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर शिव को ही जलाने चला है. शिव भाग रहे हैं. इसलिए हमें निश्चित रूप से बैठना होगा. पुनर्मूल्यांकन करना होगा, पूछना होगा कि हमारा रिश्ता मशीन के साथ कैसा हो. 
- भाईश्री के साक्षात्कार का एक अंश. साक्षात्कार हरिवंश सर ने किया है.

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