गुरुवार, 13 जुलाई 2017

बैठो बताई का पुरवा

अब तो गांवों की स्थिति बदल गयी है. सब जगह स्मार्ट फोन हो गये हैं. अब गांव के लोग भी अपने में व्यवस्त हो गये हैं. दूसरों से बात करने का समय नहीं होता है, लेकिन आज से तीन-चार दशक पहले के बारे में सोचिये, तब स्मार्ट फोन की चर्चा तक नहीं थी. टीवी के बारे में कुछ बात होने लगी थी, लेकिन सब गांवों में टीवी थी नहीं. अगर किसी गांव में टीवी होती थी, तो शाम के समय दो घंटे का प्रसारण आता था दूरदर्शन पर, जिसे देखने के लिए कई गांव के लोग इकट्ठा होते थे. उस समय ग्रामीणों में के मनरंजन का साधन नाच, गान, तमाशा, नौटंकी जैसी चीजें होती थीं, लेकिन यह भी हर समय नहीं हो सकती थीं. किसी खास मौके पर ही इनका आयोजन होता था, लेकिन लोक जीवन में कुछ ऐसे प्रसंग होते थे, जिनसे हंसने का अवसर देते थे. आप कितना भी तवान में हों, ऐसे प्रसंग सुन लें, तो हंसने लगें.
आज ऐेसा प्रसंग याद आया, जो बचपन के दिनों में हर दो-चार दिन पर सुनने को मिल जाता था. हमारे पड़ोस में एक नाई रहता था, नाम था छोटू नाई. बाल बनाने का काम उसका बड़ा भाई करता था. वह उसकी मदद में रहता था. जीवन भर बाल बनाना नहीं सीख सका. खूब प्रसंग कहता था. इसी में एक पसंदीदा प्रसंग था. बैठो बताई का पुरवा. इसको लेकर बड़े चाव से सुनाता था. कहता था कि एक बार एक आदमी साइकिल से कहीं जा रहा था. रास्ते में नहर पड़ी, जिसके किनारे एक आदमी आराम कर रहा था. आराम करने की नीयत से वह वहां कुछ देर के लिए रुका. पास के नल में पानी पीने के बाद उसने पास के आदमी से पूछा, आागे कौन सा गांव है, तो वह आदमी बोल पड़ा. बैठो बताई का पुरवा. यह सुनते ही साइकिल वाला उसके पास बैठ गया और पूछने लगा कि आगे कौन सा गांव है, उसने फिर वही दोहराया. इस पर साइकिल वाले ने कहा कि बैठ तो गये हैं. अब कैसे बैठे. गांव का नाम बताओ, इस पर उस व्यक्ति ने फिर नाम दोहरा दिया. काफी देर तक इसी तरह से बात होती रही. साइकिलवाला आदमी समझ नहीं पा रहा था कि आखिर गांव का नाम क्या है, जबकि नहर के किनारे बैठा व्यक्ति उसे लगातार बता रहा था कि बैठो बताई का पुरवा.
यह प्रसंग सुनाते समय छोटू नाई खुद सीरियस हो जाता था, लेकिन जो लोग सुनते थे. वह हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते थे. ऐसे ही कई और प्रसंग उसके मुंह से लगातार सुनने को मिलते थे. प्रसंग सुनाने के अलावा छोटू नाई कभी सीरियस नहीं रहते. बीमार होने पर भी. कम उम्र ही वह इस दुनिया को छोड़ कर चले गये. हुआ यूं कि छोटू के पेट में दर्द रहता था और वो रात में गरम पानी की कई बोतल लेकर सोते थे, जब दर्द होता था, तो पेट पर गर्म पानी की बोतल रख लेते थे, जिससे आराम मिलता था. ऐेसे ही एक दिन दर्द उठा, वो गरम पानी की बोतल लेकर सोये थे. राम में ऐसा दर्द हुआ, जो उन पानी की बोतलों से ठीक नहीं हुआ. वह बोतल पर बोतल पेट पर रखते गये, लेकिन उसी रात उनकी मौत हो गयी. मौत की सूचना लोगों को तब मिलीं, तब उनके पेट पर रखीं बोतले एक-एक करके चारपाई से नीचे गिरीं.

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