रविवार, 9 जुलाई 2017

वो बारिश का मौसम, बाढ़ का पानी

आज रविवार का दिन भले ही है. सावन की पहली सोमवारी से पहले का भी दिन है. दोपहर बाद से हो रही बारिश से आत्मिक आनंद तो जरूर मिला, लेकिन इसकी वजह वर्तमान नहीं, अतीत रहा. वो बचपन, जिसे हमने गांव में जिया. सामूहिकता के बीच बच्चों की होनेवाली परवरिश को देखा. वहां अपना-पराया कम देखा जाता था. उम्र बढ़ी, तो दायरा और सोच, दोनों सिमट गये. अब मैं सिमट कर दो बेडरूम के अपार्टमेंट में आ गया हूं. बारिश को खिड़कियों से देखना और महसूस करना मजबूरी बन गया है, जब बारिश आये, तो यह डर लगा रहता है कि कहीं भीग ना जायें. भीगे तो सर्दी जुकाम और बुखार आ जायेगा. इसी की वजह से दूर हो गया हूं. मन खुद को अकेला महसूस करता है.
कई सालों बाद इस बार अच्छी बारिश देखने को मिल रही है. इस बार पानी बरसता है, तो ऐसा नहीं लगता कि कुछ देर में बंद हो जायेगा. पता नहीं क्यों? मन कहता है कि इस बार अच्छी बारिश होगी. होगी या नहीं, ये तो भविष्य की गर्त में है, लेकिन अभी तो अच्छा ही हो रहा है. आज खिड़की के पास बैठा था, तो किसी चलचित्र की तरह बचपन की दिनों का बारिश की यादें सामने घूमने लगीं. क्या थे, वो बचपन के दिन. संसाधन कम थे, लेकिन सुकून ज्यादा. बारिश में लगभग हर साल बाढ़ आती थी. बाढ़ का पानी, एक तरफ से गांव के पास आ जाता था, तो दूसरी ओर से घर की कुछ दूरी पर. जंगली जानवर, सांप आदि, गांव की ओर रुख करते थे. रात में खतरे की बात होती थी, लेकिन हम बच्चे, किसी न किसी बहाने पानी तक पहुंच ही जाते थे. कागज की नाव और गांव के लोगों की जिंदगी को देखने के लिए.
गांव की खेती का बड़ा हिस्सा नदी के पार था, सो लोग कोई न कोई जतन करके नदी के पार जाने की व्यवस्था बना लेते थे. यही मौसम मूंगफली बोने का भी होता था और धान की रोपनी का भी. मूंगफली बोनेवाले बड़े-बड़े मिट्टी के घड़ों में सामान भर कर उसी के सहारे तैरते हुये नदी पार करते थे. कई कपड़े सिर में बांध लेते थे और जानवरों की पूछ पकड़ लेते थे और नदी पार कर जाते थे. नदी पार करने में भैंस पर भरोसा कम रहता था, क्योंकि वह पानी में कभी-कभी डुबकी भी मार देती थी, जिससे लोगों के सिर में बंधे कपड़े भीग जाते थे. कई बार धारा के साथ बहती जाती, तो गांव से काफी दूर पर जाकर निकलते थे.
सुबह-शाम नदी के पार जाने और आने का नजारा देखना अद्भुत होता था. अब जब भी गांव जाता हूं, तो पूछता हूं. बाढ़ आयी थी, जवाब नहीं में मिलता है. अब बाढ़ नहीं आती. नदी सूख कर तालाब बन गयी है. वह तो सूख जाती, लेकिन सरकारी योजना आयी, नदी में कुछ-कुछ दूर पर बांध बांध दिये गये, जिनकी वजह से सालों भर पानी बना रहता है. अब अगर हम गांव में भी रहते, तो बाढ़ और बारिश का वो नजारा नहीं ले पाते, जो बचपन में था, क्योंकि बाढ़ अब आती नहीं और बारिश को हमने उम्र बढ़ने के साथ बीमारी का कारण मान लिया है, तो इससे वह आनंद खत्म हो गया है, जो बचपन में आता है. अब बारिश आती है, तो बच्चे बंद कमरे की खिड़की खोल बारिश के साथ सेल्फी लेने का आनंद लेने लगे हैं, जिसे पलक झपकते ही फेसबुक और ट्विटर पर अपलोड करते हैं. उस पर आनेवाले कमेंट और लाइक अब आनंद का साधन बन गये हैं. मोबाइल पर अब बारिश की बूंदोंवाला स्क्रीन सेवर और वॉल पेपर लगा कर काम चलाया जा रहा है. बारिश तो वही है, लेकिन समय के साथ सब बदल गया है.

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