शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

मैं बिहार की सबसे बड़ी पंचायत हूं

मैं बिहार विधानसभा हूं. आजादी के बाद से मैंने बहुत से मंजर देखे हैं. उन नेताओं को भी देखा, सुना और समझा है, जिनको आधार बना कर आज के नेता राजनीति करते हैं, लेकिन अभी जिस तरह का परिवर्तन दिख रहा है. उसे देख कर मैं भी हैरान हूं. हां, हैरान हूं, लेकिन उतना नहीं, जितना आप सोच-समझ रहे हैं, क्योंकि दो 2005 से पहले हमारा क्या हाल हो रहा था. वह तो आपने भी देखा होगा. खैर, कहां हम अतीत में जा रहे हैं. अभी हमारे यहां जो चल रहा है. उसी पर बात करते हैं.
वह सरकार जो दिन पहले तक अस्तित्व में थी. वह भूतकाल की हो गयी है. ऐेसा नहीं हुआ कि चुनाव हो गया है और उसमें कोई हारा और जीता है. यह तो सिद्धांतों की दुहाई देकर हार और जीत तय की गयी है. उन चुने हुये राजनेताओं के बीच में, जिन्हें लगभग दो साल पहले प्रदेश की जनता ने चुना था, जिसे हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया कहते हैं, लेकिन इस समय मेरे अंदर मिक्स फीलिंग है, क्योंकि जब महागठबंधन बना था, तो इसे बेमेल कहा जा रहा था. उस दौरान इसी में शामिल कई नेता हमारे परिसर में आते थे और कहते थे कि नीतीश जी ने ये सही नहीं किया. भले ही वह सिद्धांत की बात कर रहे हैं, लेकिन हमारा साथ तो 17 साल पुराना था. हम उनसे मिले हैं, जिनके खिलाफ हमें जनता ने जिताया था और प्रचंड बहुमत दिया था. अब समय का चक्र घूम गया है. वही, लोग जो 17 साल तक साथ थे. लगभग दो साल बिछड़ने के बाद फिर से एक हो गये हैं. हालांकि इस दौरान दोनों ने एक-दूसरे की जमकर आलोचना की. डीएनए तक में दोष देखा था, लेकिन अब राज्यहित की दुहाई दी जा रही है.
राज्यहित की दुहाई के बीच हमारे प्रांगण में वह नजारा दिख रहा है, जो आनेवाले दिनों में स्वाभाविक हो जायेगा, लेकिन अभी हमारे लिये नया है. तेजस्वी और तेज प्रताप, जो कल तक वीआइपी रास्ते के जरिये हमारे यहां आया करते थे. आज उन्होंने वह आम रास्ता चुना है, जिससे होकर विधायक आते-जाते हैं. राजद के विधायक, जो कल तक गठबंधन को अटूट बता रहे थे. वही, अब नीतीश कुमार को मौकापरस्त बता रहे हैं. अपने आलाकमान की हां, में हां और उनकी बातों को दोहरा रहे हैं, लेकिन मेरे अंदर जो चल रहा है. वो इससे कहीं ज्यादा है. तोड़फोड़ की आवाज भी आ रही है. उसका क्या होता है, यह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन यह हो रहा है.
समय बढ़ने और बदलने के साथ का यह तालमेल भी देखना और सुनना है, क्योंकि मेरा निर्माण भी इसीलिए हुआ था कि बिहार की उस महान जनता का सम्मान हो, जो अपने बीच से लोगों को चुन कर हमारे यहां भेजती है. हां, ये बात और है कि चुनाव के बाद, वही लोग उस जनता के कम ही रह जाते हैं, जिन्होंने उन्हें चुनाव होता है. यह मैं कल भी देख रही थी और आज भी देख रही हूं. चुनाव से पहले वह सबके रहते हैं, लेकिन चुनाव के बाद केवल अपनों के रह जाते हैं. शायद आज जो नजारा बदला दिख रहा है. इसके मूल में भी यही है.

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