मोतिहारी के बाद हम बेतिया में थे और हमने तय किया कि उन इलाकों में जाना चाहिये, जहां असली भारत बसता है. भारत-नेपाल सीमा पर बसे मंगुराहा हम इसी लोभ में पहुंचे, जहां एक ओर खुला आकाश और दूर-दूर तक फैली रेत, जिस पर उगी कुछ जंगली झाड़ियां और दूसरी ओर पहाड़, जिसका कुछ हिस्सा भारत और बाकी नेपाल में आता है. पहाड़ के साथ लगा घना जंगल, जिसमें बाघ समेत विभिन्न जंगली जानवरों के रहने की बात बतायी गयी. शाम ढलने के साथ मवेशियों के साथ ग्रामीण अपने घरों का रुख करने लगे. गोधूलि बेला के समय हम पहाड़ी नदी के किनारे खड़े थे. वहां इक्के-दुक्के लोग ही दिख रहे थे, लेकिन लोगों का आना-जाना जारी.
नदी के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे, तो कुछ लोग पीने का पानी लेने के लिए आये हुये थे. इसी दौरान एक वृद्ध साइकिल से पहुंचे. उन्होंने साइकिल के हैंडिल में दो बड़ी बोतलें लटका रखीं थी. कहने लगे रात के पीने का पानी लेने के लिए नदी आये हुये हैं. पिछले पचास साल से ये नदी का पानी पी रहे हैं. इन्हें कोई बीमारी नहीं हुई. एक बेटा बाहर कमाता है, जबकि दूसरा सीआरपीएफ में जवान है. हम लोग मिले, तो चुनाव पर बात होने लगी. कहने लगे कि देखिये दोनों गंठबंधनों का जोर है. हर नेता की ओर से हमारे गांव में प्रचार किया जा रहा है. महागंठबंधनवाले का प्रचार ज्यादा है, लेकिन जीतेगा कौन, यह तो सब जानते हैं. प्रचार करने से क्या होगा?
मंगुराहा के आस-पास सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने अपना कार्यालय बना रखा था, जहां बजनेवाले लाउडस्पीकरों से चुनाव का एहसास हो रहा था. बाकी जगह पर शांति थी. हां, जब कभी प्रत्याशी या प्रत्याशी के समर्थक सड़क से जुगरते, तो लगता कि चुनाव प्रचार चल रहा है. वैसे लोगों में चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा था. सब अपने काम में व्यस्त थे. यहां के लोगों की नेताओं से मांग भी नहीं है. जिनता है, उतने में संतुष्ट होनेवाले लोग. किसी की शिकायत भी नहीं करते. बस अपनी धुन में मस्त.
जारी..
नदी के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे, तो कुछ लोग पीने का पानी लेने के लिए आये हुये थे. इसी दौरान एक वृद्ध साइकिल से पहुंचे. उन्होंने साइकिल के हैंडिल में दो बड़ी बोतलें लटका रखीं थी. कहने लगे रात के पीने का पानी लेने के लिए नदी आये हुये हैं. पिछले पचास साल से ये नदी का पानी पी रहे हैं. इन्हें कोई बीमारी नहीं हुई. एक बेटा बाहर कमाता है, जबकि दूसरा सीआरपीएफ में जवान है. हम लोग मिले, तो चुनाव पर बात होने लगी. कहने लगे कि देखिये दोनों गंठबंधनों का जोर है. हर नेता की ओर से हमारे गांव में प्रचार किया जा रहा है. महागंठबंधनवाले का प्रचार ज्यादा है, लेकिन जीतेगा कौन, यह तो सब जानते हैं. प्रचार करने से क्या होगा?
मंगुराहा के आस-पास सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों ने अपना कार्यालय बना रखा था, जहां बजनेवाले लाउडस्पीकरों से चुनाव का एहसास हो रहा था. बाकी जगह पर शांति थी. हां, जब कभी प्रत्याशी या प्रत्याशी के समर्थक सड़क से जुगरते, तो लगता कि चुनाव प्रचार चल रहा है. वैसे लोगों में चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा था. सब अपने काम में व्यस्त थे. यहां के लोगों की नेताओं से मांग भी नहीं है. जिनता है, उतने में संतुष्ट होनेवाले लोग. किसी की शिकायत भी नहीं करते. बस अपनी धुन में मस्त.
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