बहुत ज्यादा दूर नहीं है मुजफ्फरपुर शहर से पीरमोहम्मदपुर गांव. शहर खत्म होते ही गांव की दुश्वारियां शुरू हो जाती हैं. गांव जाने के वैसे तो कई रास्ते हैं, लेकिन मुख्यत: दो रास्ते हैं, जिनसे होकर लोग आते-जाते हैं. दोनों ही रास्ते अभी तक कच्चे हैं. आप जायेंगे, तो मिट्टी नहाना पड़ेगा, क्योंकि कोई वाहन गुजरता है, तो धूल उड़ती है. बूढ़ी गंडक किनारे बसा ये गांव प्राकृतिक और उपज की दृष्टि से बहुत अच्छा है.
यहां बड़े पैमाने पर सब्जी व मक्का की खेती होती है. गांव का हर घर खेती से जुड़ा है. खूब उपजाते हैं और लोगों को पेट भरते हैं, लेकिन इनकी खुद की स्थिति सही नहीं है. गांव के बारे में नीतीश्वर कॉलेज के प्रमोद पांडेय से जाना और सुना, तो इच्छा हुई, जाना चाहिये. प्रमोद जी ने रास्ता बताया. सफर शुरू हुआ, लेकिन जैसे ही बीएमपी-छह के आगे बढ़ा. मन हुआ जानकारी ले ली जाये. साथी से कहा, पता कर लेते हैं. लोगों ने रास्ता बताया, लेकिन हिदायत दी, इधर से जाना ठीक नहीं रहेगा. लंबी दूरी वाले रास्ते से जायें, सो उसी रास्ते से आगे बढ़ चला. पूछते-पूछते एक लोहे के पुल पर पहुंचा. यहां तक को स्थिति ठीक थी, लेकिन पुल से आगे बढ़ते ही परेशानी शुरू हो गयी. बलुई मिट्टी की कच्ची सड़क पर गाड़ी का बढ़ना मुश्किल हो रहा था, लेकिन हम भी गांव जाने पर अडिग थे. साथी ने कहा, गांव के लोग कैसे आते-जाते होंगे. यही सवाल मेरे भी मन में था. बचपन में कमोबेश मेरे गांव का रास्ता भी ऐसा ही था, सो मुङो कुछ आश्चर्य नहीं लग रहा था, लेकिन अब से लगभग 30 साल पहले हमारे यहां सड़क बन गयी, जिससे आना-जाना आसान हो गया.
हर बड़े फोरम, जिस पर गांव की बात होती है. वहां कहा जाता है कि जब तक गांव का विकास नहीं होगा, तब तक देश आगे नहीं बढ़ेगा. पीरमोहम्मदपुर जाते समय ये हकीकत सामने आ रही थी. लगभग दो किलोमीटर का लंबा रास्ता जैसे-तैसे 15 मिनट में तय किया और गांव पहुंचा, तो सुखद अहसास हुआ. गांव में नीतीश्वर कॉलेज का एनएसएस कैंप चल रहा था. कैंप के आखिरी दिन कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया गया था, जो गांव के लोगों को खेती के बारे में जानकारियां दे रहे थे. कृषि वैज्ञानिकों का कहना था कि हम आप लोगों को उपज के बारे में जानकारी नहीं देने आये हैं, क्योंकि उपज आप खूब करते हैं. उपज का संरक्षण कैसे करें. यह जानकारी देने के लिए हम आये हैं और इसी के आधार पर वह गांव के लोगों के सवालों के जवाब दे रहे थे.
गांव में जो खड़ंजे लगे हैं, उनका भी कोई खास अर्थ समझ में नहीं आया. लोगों से जानकारी ली, तो कहने लगे कि गर्मी है, इसलिए आप आ गये. बारिश के दिनों में गांव आाना-जाना दूभर होता है. गांव में चलने में समस्या होती है. बाढ़ पिछले दस साल से नहीं आयी है, लेकिन सड़क भी नहीं बन सकी है. हर बात और हर नेता हमें आश्वासन देते रहे हैं. रमई राम जी इलाके के लगभग तीस दशक विधायक और मंत्री रहे. हर बार आश्वासन दिया, लेकिन सड़क नहीं बनी. अब बेबी कुमारी हैं, वह भी कह रही हैं. सड़क बन पायेगी या नहीं, अभी कुछ भी साफ नहीं है. केवल प्रस्ताव भेजने की बात होती है. प्रस्ताव पर क्या हुआ, ये किसी को समझ नहीं आ रहा.
सड़क नहीं होने की वजह से गांव के लोगों की शादियां टूट जाती हैं. यहां ऐसे दर्जनों लोग मिलेंगे, जिनकी शादी सड़क नहीं होने की वजह से कट गयी. हाल में प्रतिभा नाम की लड़की की शादी कटी है, जो इस समय गांव में चर्चा का विषय है. प्रतिभा पहले कोलकाता में पढ़ी है. अब एमएसकेबी में पढ़ रही है. कहती है कि हम चाहते हैं कि गांव की सड़क बने, क्योंकि हमें कॉलेज आाने-जाने में परेशानी होती है.
गांव में लगभग दो घंटे तक रहने के बाद, जब हम वापस शहर आने लगे, तो हमें लगा कि दूसरा रास्ता भी देखना चाहिये, सो फैसला दूसरे रास्ते से जाने का किया. यह पगडंडी है, जिससे बमुश्किल से गाड़ी गुजरती है. अगर कहीं चूके, तो सीधे बूढ़ी गंडक नदी की खाई में गिरने का खतरा. पगडंडी के दोनों ओर सब्जी व मक्के की खेती सुखद एहसास कराती है, लेकिन रास्ता उतना ही परेशान करता है. लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा रास्ता भगवान का नाम लेते हुये पार किया और जब मुख्य सड़क पर आये, तो वहां भी ज्याद सुकून नहीं मिला. बताया गया कि दो साल पहले सड़क बनी थी, लेकिन अब सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क यह खोजना चुनौती है.
यहां बड़े पैमाने पर सब्जी व मक्का की खेती होती है. गांव का हर घर खेती से जुड़ा है. खूब उपजाते हैं और लोगों को पेट भरते हैं, लेकिन इनकी खुद की स्थिति सही नहीं है. गांव के बारे में नीतीश्वर कॉलेज के प्रमोद पांडेय से जाना और सुना, तो इच्छा हुई, जाना चाहिये. प्रमोद जी ने रास्ता बताया. सफर शुरू हुआ, लेकिन जैसे ही बीएमपी-छह के आगे बढ़ा. मन हुआ जानकारी ले ली जाये. साथी से कहा, पता कर लेते हैं. लोगों ने रास्ता बताया, लेकिन हिदायत दी, इधर से जाना ठीक नहीं रहेगा. लंबी दूरी वाले रास्ते से जायें, सो उसी रास्ते से आगे बढ़ चला. पूछते-पूछते एक लोहे के पुल पर पहुंचा. यहां तक को स्थिति ठीक थी, लेकिन पुल से आगे बढ़ते ही परेशानी शुरू हो गयी. बलुई मिट्टी की कच्ची सड़क पर गाड़ी का बढ़ना मुश्किल हो रहा था, लेकिन हम भी गांव जाने पर अडिग थे. साथी ने कहा, गांव के लोग कैसे आते-जाते होंगे. यही सवाल मेरे भी मन में था. बचपन में कमोबेश मेरे गांव का रास्ता भी ऐसा ही था, सो मुङो कुछ आश्चर्य नहीं लग रहा था, लेकिन अब से लगभग 30 साल पहले हमारे यहां सड़क बन गयी, जिससे आना-जाना आसान हो गया.
हर बड़े फोरम, जिस पर गांव की बात होती है. वहां कहा जाता है कि जब तक गांव का विकास नहीं होगा, तब तक देश आगे नहीं बढ़ेगा. पीरमोहम्मदपुर जाते समय ये हकीकत सामने आ रही थी. लगभग दो किलोमीटर का लंबा रास्ता जैसे-तैसे 15 मिनट में तय किया और गांव पहुंचा, तो सुखद अहसास हुआ. गांव में नीतीश्वर कॉलेज का एनएसएस कैंप चल रहा था. कैंप के आखिरी दिन कृषि वैज्ञानिकों को बुलाया गया था, जो गांव के लोगों को खेती के बारे में जानकारियां दे रहे थे. कृषि वैज्ञानिकों का कहना था कि हम आप लोगों को उपज के बारे में जानकारी नहीं देने आये हैं, क्योंकि उपज आप खूब करते हैं. उपज का संरक्षण कैसे करें. यह जानकारी देने के लिए हम आये हैं और इसी के आधार पर वह गांव के लोगों के सवालों के जवाब दे रहे थे.
गांव में जो खड़ंजे लगे हैं, उनका भी कोई खास अर्थ समझ में नहीं आया. लोगों से जानकारी ली, तो कहने लगे कि गर्मी है, इसलिए आप आ गये. बारिश के दिनों में गांव आाना-जाना दूभर होता है. गांव में चलने में समस्या होती है. बाढ़ पिछले दस साल से नहीं आयी है, लेकिन सड़क भी नहीं बन सकी है. हर बात और हर नेता हमें आश्वासन देते रहे हैं. रमई राम जी इलाके के लगभग तीस दशक विधायक और मंत्री रहे. हर बार आश्वासन दिया, लेकिन सड़क नहीं बनी. अब बेबी कुमारी हैं, वह भी कह रही हैं. सड़क बन पायेगी या नहीं, अभी कुछ भी साफ नहीं है. केवल प्रस्ताव भेजने की बात होती है. प्रस्ताव पर क्या हुआ, ये किसी को समझ नहीं आ रहा.
सड़क नहीं होने की वजह से गांव के लोगों की शादियां टूट जाती हैं. यहां ऐसे दर्जनों लोग मिलेंगे, जिनकी शादी सड़क नहीं होने की वजह से कट गयी. हाल में प्रतिभा नाम की लड़की की शादी कटी है, जो इस समय गांव में चर्चा का विषय है. प्रतिभा पहले कोलकाता में पढ़ी है. अब एमएसकेबी में पढ़ रही है. कहती है कि हम चाहते हैं कि गांव की सड़क बने, क्योंकि हमें कॉलेज आाने-जाने में परेशानी होती है.
गांव में लगभग दो घंटे तक रहने के बाद, जब हम वापस शहर आने लगे, तो हमें लगा कि दूसरा रास्ता भी देखना चाहिये, सो फैसला दूसरे रास्ते से जाने का किया. यह पगडंडी है, जिससे बमुश्किल से गाड़ी गुजरती है. अगर कहीं चूके, तो सीधे बूढ़ी गंडक नदी की खाई में गिरने का खतरा. पगडंडी के दोनों ओर सब्जी व मक्के की खेती सुखद एहसास कराती है, लेकिन रास्ता उतना ही परेशान करता है. लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा रास्ता भगवान का नाम लेते हुये पार किया और जब मुख्य सड़क पर आये, तो वहां भी ज्याद सुकून नहीं मिला. बताया गया कि दो साल पहले सड़क बनी थी, लेकिन अब सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क यह खोजना चुनौती है.