राजनीति को संभावनाओं को खेल कहा जाता है. क्रिकेट की तरह अंतिम समय तक क्या होगा, इसमें भी तय नहीं होता, लेकिन बुधवार को जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन से अलग होने का फैसला लिया, तो यह उन कयासों को पुख्ता करनेवाला था, जो 2016 से ही लगाये जा रहे थे, लेकिन तब यह तय नहीं था कि तेजस्वी के मुद्दे पर सरकार चली जायेगी और गठबंधन टूट जायेगा. पिछले दिनों जब तेजस्वी पर आरोप लगे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले चुप्पी साधे रखी, लेकिन अपनी पार्टी के विधायकों की बैठक के बाद यही कहा कि आरोपों का जवाब सार्वजनिक तौर पर दिया जाना चाहिये.
जदयू के स्टैंड के बाद लंबा अर्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह तय करने में लगा कि वह किस तरह से गठबंधन को तोड़ा जाये. इसे यूं भी कह सकते हैं कि भाजपा से बात करने और नया गठबंधन तय करने में मुख्यमंत्री ने जल्दीबाजी नहीं दिखायी. इसके उलट जदयू व भाजपा लगातार अपने स्टैंड पर कायम रहे. भाजपा तेजस्वी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग करती रही, तो जदयू यह साफ करता रहा कि जिन लोगों पर आरोप लगे हैं, उन्हें सार्वजनिक तौर पर सफाई देनी होगी. इसके बीच जब कैबिनेट की बैठक के बाद उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, तो यह लगा था कि बात बन गयी है, लेकिन इसके बाद भी जदयू की ओर से कहा गया कि पार्टी अपने स्टैंड पर कायम है और भ्रष्टाचार से समझौता नहीं कर सकती है.
राजनीतिक घटनाक्रम के बीच जदयू का थिंक टैंक लगातार यह भी जानने की कोशिश करता रहा कि अगर गठबंधन टूटता है, तो उसे किस तरह का नुकसान हो सकता है. उससे जुड़े लोग लगातार इस बात का आकलन कर रहे थे कि कौन लोग उसके साथ खड़े होंगे. अगर वह नये सिरे से भाजपा के साथ गठबंधन करता है तो. वहीं, भाजपा के साथ फिर से जाने पर उसको किस तरह का नफा-नुकसान हो सकता है. यह भी आकलन जदयू की ओर से किया जाता रहा. इस बीच कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने के लिए नीतीश कुमार दिल्ली गये, तो लगा कि बात बन सकती है, लेकिन राहुल गांधी से मुलाकात के बाद जो बयान आया, उससे साफ हो गया था कि अब गठबंधन का बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से ही अपनी छवि को लेकर सतर्क रहे हैं. वह वसूलों की राजनीति करनेवाले नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं. समय-समय पर उन्होंने इसका प्रमाण भी दिया है. 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था. हालांकि जीतनराम मांझी से रिश्ते बिगड़ने के बाद वह फिर मुख्यमंत्री बने थे. ऐसे ही अब जब भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, तो उन्होंने एक और उदाहरण पेश किया है.
अब यह तय हो चुका है कि वह भाजपा के साथ मिल कर फिर से नयी सरकार बनाने जा रहे हैं. ऐसे में नयी सरकार पर यह दबाव होगा कि वह प्रदेश के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से पूरे प्रदेश में अपराध बढ़े हैं. विकास के काम भी ज्यादा तेजी से नहीं चल रहे हैं. हालांकि इन 20 महीनों की सबसे बड़ी उपलब्धि शराबबंदी रही है, जिससे प्रदेश के एक बड़े तबके को फायदा हुआ है. इसे ऐतिहासिक कदम भी कहा जा सकता है.
जदयू के स्टैंड के बाद लंबा अर्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह तय करने में लगा कि वह किस तरह से गठबंधन को तोड़ा जाये. इसे यूं भी कह सकते हैं कि भाजपा से बात करने और नया गठबंधन तय करने में मुख्यमंत्री ने जल्दीबाजी नहीं दिखायी. इसके उलट जदयू व भाजपा लगातार अपने स्टैंड पर कायम रहे. भाजपा तेजस्वी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग करती रही, तो जदयू यह साफ करता रहा कि जिन लोगों पर आरोप लगे हैं, उन्हें सार्वजनिक तौर पर सफाई देनी होगी. इसके बीच जब कैबिनेट की बैठक के बाद उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी, तो यह लगा था कि बात बन गयी है, लेकिन इसके बाद भी जदयू की ओर से कहा गया कि पार्टी अपने स्टैंड पर कायम है और भ्रष्टाचार से समझौता नहीं कर सकती है.
राजनीतिक घटनाक्रम के बीच जदयू का थिंक टैंक लगातार यह भी जानने की कोशिश करता रहा कि अगर गठबंधन टूटता है, तो उसे किस तरह का नुकसान हो सकता है. उससे जुड़े लोग लगातार इस बात का आकलन कर रहे थे कि कौन लोग उसके साथ खड़े होंगे. अगर वह नये सिरे से भाजपा के साथ गठबंधन करता है तो. वहीं, भाजपा के साथ फिर से जाने पर उसको किस तरह का नफा-नुकसान हो सकता है. यह भी आकलन जदयू की ओर से किया जाता रहा. इस बीच कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने के लिए नीतीश कुमार दिल्ली गये, तो लगा कि बात बन सकती है, लेकिन राहुल गांधी से मुलाकात के बाद जो बयान आया, उससे साफ हो गया था कि अब गठबंधन का बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से ही अपनी छवि को लेकर सतर्क रहे हैं. वह वसूलों की राजनीति करनेवाले नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं. समय-समय पर उन्होंने इसका प्रमाण भी दिया है. 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था. हालांकि जीतनराम मांझी से रिश्ते बिगड़ने के बाद वह फिर मुख्यमंत्री बने थे. ऐसे ही अब जब भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है, तो उन्होंने एक और उदाहरण पेश किया है.
अब यह तय हो चुका है कि वह भाजपा के साथ मिल कर फिर से नयी सरकार बनाने जा रहे हैं. ऐसे में नयी सरकार पर यह दबाव होगा कि वह प्रदेश के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से पूरे प्रदेश में अपराध बढ़े हैं. विकास के काम भी ज्यादा तेजी से नहीं चल रहे हैं. हालांकि इन 20 महीनों की सबसे बड़ी उपलब्धि शराबबंदी रही है, जिससे प्रदेश के एक बड़े तबके को फायदा हुआ है. इसे ऐतिहासिक कदम भी कहा जा सकता है.