शर्मा जी की बेटी, पिछले चार दिनों से रोज सुबह उठते ही कहती, पापा मुङो इस स्कूल में नहीं पढ़ना है. वहां बहुत गलत पढ़ाया जाता है. मिस से कहते हैं, तो वह डांट देती हैं, लेकिन नेट पर चेक करते हैं, तो सही निकलता है. ऐसे में हम कैसे डॉक्टर बन पायेंगे. अगर हम ज्यादा दिन रहेंगे, तो मिस हमसे नाराज हो जायेंगी. पिछले साल, एक मिस कैसे नाराज हो गयी थीं, जिनको मैंने उनकी गलतियों को बारे में बता दिया था. उन्होंने इस साल भी मेरी सीट बदलवा दी है. परसों ही मेरी क्लास में आयी थीं और मेरी क्लास टीचर से कुछ देर बात की और फिर क्लास टीचर ने मेरी और मेरी सहेली गुड़िया की सीट बदल दी.
शर्मा जी, बेटी के इस सवालों से लगभग पक चुके थे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह बेटी को किस स्कूल में दाखिला दिलवा दें, क्योंकि जिस स्कूल में वह पढ़ती है. वह जिले का सबसे नामी स्कूल है. सालों से उसकी अलग पहचान है. वहां एडमिशन के लिए लोगों में मारामारी लगी रहती है. कितना अच्छा अनुशासन है स्कूल में. कोई भी बिना अनुशासन नहीं रह सकता है. पांच हजार से ज्यादा बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, लेकिन पास से गुजरने पर चूं तक नहीं सुनायी देती. वहां की मैडम शहर के बड़े-बड़े लोगों के बच्चों का एडमिशन लेने से मना कर देती है. अब ऐसे स्कूल से निकाल कर शर्मा जी अपनी बेटी को कहां डालें. यह बात उन्हें समझ में नहीं आ रही है. वह लगातार बेटी को समझा रहे हैं और कह रहे हैं कि हो सकता है कि एक मिस ने ऐसा कर दिया हो, लेकिन और मिस तो अच्छा पढ़ाती हैं. हम मिस से बात करेंगे, वह अपनी गलती सुधार लेंगी.
शर्मा जी ने जैसे ही मिस की बात की, बेटी कहने लगी, पापा आप उनसे बात भी मत करियेगा, नहीं तो मेरी शामत आ जायेगी. हमको वो फेल कर देंगी. पूरी क्लास के सामने बेइज्जती अलग से करेंगी. शर्मा जी की बेटी का तो यह केवल एक उदाहरण है. ऐसे सैकड़ों मामले रोज सामने आ रहे हैं. वह भी उन निजी स्कूलों के, जिनमें ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. सरकारी स्कूलों को छोड़ निजी स्कूलों का रुख करनेवाले अभिभावकों को यहां भी लगातार परेशानी ही ङोलनी पड़ रही है.
पिछले दिनों फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें एक साथी ने कमेंट किया, निजी स्कूल कॉपी, किताब, ड्रेस और जूता-चप्पल बेचवाने के लिए हैं. अगर बच्चे को पढ़ाना है, तो घर में ट्यूशन लगवाइये. स्कूलों में पढ़ाई की अपेक्षा नहीं करें, वरना निराशा हाथ लगेगी.
एक और अभिभावक कहने लगे. सरकार डिजिटल इंडिया की बात कर रही है. निजी स्कूलों ने फीस वसूली में इसे लागू कर दिया है. वह डिजिटल माध्यम से फीस जमा हुई या नहीं. इसकी जानकारी लगातार अभिभावकों को देकर बेइज्जत करते रहते हैं, लेकिन उनका बच्च कैसा पढ़ रहा है. इसके बारे में अगर आप स्कूल में पता लगाने जायें, तब भी जानकारी नहीं मिलेगी.
निजी स्कूलों में नकेल कसने की बात सालों से हो रही है. हर साल एक बार शिक्षा विभाग के अधिकारी बैठक करते हैं, लेकिन इसके बाद हालात फिर पिछले साल जैसे ही रहते हैं. अभी तक किसी भी स्कूल में ड्रेस बिकनी बंद नहीं हुई. कॉपी-किताब का तो जैसे ठेका ले रखा है. एनसीइआरटी की जो किताब 50 से 100 रुपये में मिल जाती है, निजी प्रकाशन उसका दाम ही 400 से शुरू करते हैं. बुक की दुकान चलानेवाला कहता है कि इससे (एनसीइआरटी) कुछ नहीं होगा, स्कूल में तो ये किताब पढ़ाई जायेगी, लेकिन खरीदना आपको दोनों को है.
जारी..
शर्मा जी, बेटी के इस सवालों से लगभग पक चुके थे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह बेटी को किस स्कूल में दाखिला दिलवा दें, क्योंकि जिस स्कूल में वह पढ़ती है. वह जिले का सबसे नामी स्कूल है. सालों से उसकी अलग पहचान है. वहां एडमिशन के लिए लोगों में मारामारी लगी रहती है. कितना अच्छा अनुशासन है स्कूल में. कोई भी बिना अनुशासन नहीं रह सकता है. पांच हजार से ज्यादा बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, लेकिन पास से गुजरने पर चूं तक नहीं सुनायी देती. वहां की मैडम शहर के बड़े-बड़े लोगों के बच्चों का एडमिशन लेने से मना कर देती है. अब ऐसे स्कूल से निकाल कर शर्मा जी अपनी बेटी को कहां डालें. यह बात उन्हें समझ में नहीं आ रही है. वह लगातार बेटी को समझा रहे हैं और कह रहे हैं कि हो सकता है कि एक मिस ने ऐसा कर दिया हो, लेकिन और मिस तो अच्छा पढ़ाती हैं. हम मिस से बात करेंगे, वह अपनी गलती सुधार लेंगी.
शर्मा जी ने जैसे ही मिस की बात की, बेटी कहने लगी, पापा आप उनसे बात भी मत करियेगा, नहीं तो मेरी शामत आ जायेगी. हमको वो फेल कर देंगी. पूरी क्लास के सामने बेइज्जती अलग से करेंगी. शर्मा जी की बेटी का तो यह केवल एक उदाहरण है. ऐसे सैकड़ों मामले रोज सामने आ रहे हैं. वह भी उन निजी स्कूलों के, जिनमें ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. सरकारी स्कूलों को छोड़ निजी स्कूलों का रुख करनेवाले अभिभावकों को यहां भी लगातार परेशानी ही ङोलनी पड़ रही है.
पिछले दिनों फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें एक साथी ने कमेंट किया, निजी स्कूल कॉपी, किताब, ड्रेस और जूता-चप्पल बेचवाने के लिए हैं. अगर बच्चे को पढ़ाना है, तो घर में ट्यूशन लगवाइये. स्कूलों में पढ़ाई की अपेक्षा नहीं करें, वरना निराशा हाथ लगेगी.
एक और अभिभावक कहने लगे. सरकार डिजिटल इंडिया की बात कर रही है. निजी स्कूलों ने फीस वसूली में इसे लागू कर दिया है. वह डिजिटल माध्यम से फीस जमा हुई या नहीं. इसकी जानकारी लगातार अभिभावकों को देकर बेइज्जत करते रहते हैं, लेकिन उनका बच्च कैसा पढ़ रहा है. इसके बारे में अगर आप स्कूल में पता लगाने जायें, तब भी जानकारी नहीं मिलेगी.
निजी स्कूलों में नकेल कसने की बात सालों से हो रही है. हर साल एक बार शिक्षा विभाग के अधिकारी बैठक करते हैं, लेकिन इसके बाद हालात फिर पिछले साल जैसे ही रहते हैं. अभी तक किसी भी स्कूल में ड्रेस बिकनी बंद नहीं हुई. कॉपी-किताब का तो जैसे ठेका ले रखा है. एनसीइआरटी की जो किताब 50 से 100 रुपये में मिल जाती है, निजी प्रकाशन उसका दाम ही 400 से शुरू करते हैं. बुक की दुकान चलानेवाला कहता है कि इससे (एनसीइआरटी) कुछ नहीं होगा, स्कूल में तो ये किताब पढ़ाई जायेगी, लेकिन खरीदना आपको दोनों को है.
जारी..