मंगलवार, 14 मार्च 2017

68 फीसदी जनता खिलाफ थी, तब आप क्यों नहीं बोले?

उत्तर प्रदेश के अप्रत्याशित नतीजों ने उन राजनीतिक पंडितों को सोचने पर मजबूर कर दिया है, जो कह रहे थे कि त्रिशंकु विधानसभा होगी. जोड़तोड़ का दौर चलेगा. भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए सपा-बसपा और कांग्रेस साथ आ जायेंगे, लेकिन चुनाव परिणाम ऐसे आये कि उनके इन दावों की हवा निकल गयी. चुनाव परिणाम के दिन ऐसे लोग दिन भर ये सोचने में व्यस्त रहे कि अब क्या करें और क्या कहें?
शाम तक जब आकड़ों की तस्वीर साफ हुई, तो पता चला कि भाजपा को 41 फीसदी वोट मिले हैं, तो कहने लगे कि ये पूरा जनादेश नहीं है. भले ही सीटें मिल गयी हैं, लेकिन भाजपा को ये नहीं भूलना चाहिये कि उसके खिलाफ 59 फीसदी लोगों ने वोट दिया है, जो अपने आप में वोटों का बहुमत है. ऐसा सवाल करनेवालों ने इससे पहले ये कभी नहीं कहा कि अखिलेश यादव 31-32 फीसदी लोगों का वोट प्राप्त करके ही पांच साल तक सत्ता में रहे, तब यह सवाल उठानेवाले कहां थे, इनका पता नहीं था. अब जब कुछ नहीं मिला, तो प्रतिशत का खेल खेलने लगे.
चूंकि ऐसे लोगों का एक अलग वर्ग होता है. वह विरोध करेंगे ही, चाहे जो भी हो, लेकिन विरोध करने से पहले यह भी सोचना चाहिये कि हम जो कह रहे हैं. वो तो उन लोगों पर भी लागू होता है. विरोध के नाम पर हम जिनका साथ देने को तैयार दिखते हैं. लोकतंत्र में संख्या बल की प्रमुख रही है. संख्या के बल पर ही सरकारें बनती और बिगड़ती रही हैं. अपने देश में लोकतंत्र की लगभग सात दशकों की यात्र के दौरान ऐसे बहुत से मौके आये हैं, जब कुछ वोटों से ही फैसला हुआ है. ऐसे में किस बात को सही माना जाना चाहिये. ये तय कर लेना चाहिये? क्योंकि वोट चाहे जिनते भी मिलें, लेकिन जिसको सीटों में बहुमत मिलेगा, सरकार तो उसी की बनेगी. यह क्या सत्य नहीं है?
अगर मैं ऐसा लिख रहा हूं, तो ये मत समझ लीजियेगा कि मैं किसी पार्टी का समर्थक हूं. मैं किसी पार्टी का समर्थक नहीं हूं. मैं केवल लोकतंत्र की उस तासीर का समर्थक खुद को मानता हूं, जिसमें संख्या बल को सवरेपरि माना गया है. हां, अगर ये सिस्टम खराब है और इसकी जगह पर कुछ और अच्छा हो सकता है, तो हमें उसी को अपनाना चाहिये. क्योंकि अगर हम उत्तर प्रदेश से सटे हुये बिहार राज्य के चुनाव परिणामों की बात करें, तो यहां गठबंधन के सहारे बहुमत मिला, तीन पार्टियां जुट गयीं, तब 43 फीसदी वोट आया. यानी यहां के भी 57 फीसदी लोगों ने सरकार के खिलाफ मत दिया था, जैसा कि विरोध के लिए कहा जा रहा है, लेकिन मैं इस मत का समर्थक नहीं हूं. यहां सरकार को अच्छा बहुमत मिला है. वह राज्य कर रही है, लेकिन इन आलोचकों ने इस सरकार पर कभी सवाल नहीं उठाये? आखिर ये कैसा विश्लेषण है, इस पर भी गौर करना चाहिये. केवल विरोध के लिए विरोध अच्छा नहीं होता है, मेरा सिर्फ यही कहना है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. बात सही है सर.अपने देश मे संख्या बल से सरकारे बनती और बिगड़ती.लेकिन विरोधी बहाना ढून्ढ कर अपनी राजनीति करते है
    .कहा गया है कि चीत भी मेरी पट भी मेरा.

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