मुजफ्फरपुर का नाम आने पर तरह-तरह की उपमायें दी जाती हैं. कोई इसे मच्छरपुर कह देता है, तो कोई जाम व अतिक्रमण वाले शहर के नाम से पुकारता है. कोई कहता है कि वहां कोई काम ढंग का नही है. ऐसी बातें सालों से सुनता रहा हूं. यहां के लोग जब भी किसी विकास के काम की बात आती है, तो जन प्रतिनिधियों को दोषी ठहरा देते हैं, लेकिन पांच साल बाद नगर निगम चुनाव में वोट का मौका आया, तो 55 फीसदी लोग ही घरों से निकले. 45 फीसदी लोगों ने वोट नहीं डाला. इससे यह साफ है कि वोटिंग को लेकर 45 फीसदी लोग उदासीन बने रहे. ऐसे में शहर के विकास और यहां की व्यवस्थाओं के बदलने की बात कैसे हो सकती है.
कई बार शहर में जब निगम की राजनीति की चर्चा होती है, तो एक व्यक्ति के वर्चस्व की बात भी सामने आती है. अगले चुनाव में उसे बदलने की बात भी कही जाती है, लेकिन इस चुनाव में जो हुआ, उसने फिर से साबित कर दिया कि लोगों की चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है? ऐसे में सवाल यह उठता है कि बदलाव कैसे आयेगा? अच्छे प्रत्याशी चुन कर निगम में कैसे पहुंचेंगे. अगर अच्छे प्रत्याशी फिर से हमारा प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे, तो हम विकास की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? शहर में जिस तरह का बदलाव चाहते हैं, वह कैसे होगा? यह ऐसे सवाल हैं, जिनसे आनेवाले दिनों में दो-चार होना पड़ सकता है. हम फिर से वहीं पर खड़े हैं, जहां पर पहले से थे. ऐसे में शहर को स्मार्ट बनाने की बात हो सकती है क्या?
स्मार्ट सिटी से याद आया. तीन बार इसके लिए प्रपोजल गया, लेकिन एक बार भी अपना शहर इसमें पास नहीं हो पाया. हर बार हम लोगों की भागीदारी में कमी रही. ऐेसा ही हाल अब चुनाव में दिखा. इससे उन शक्तियों को भी झटका लगा है, जो चाहती थीं कि शहर के लोग बड़े पैमाने पर वोट के लिए निकलें और अपने मताधिकार का प्रयोग करें. इसके लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा था. उनमें शहर के लोग शामिल भी हो रहे थे और अपनी समस्याएं रख रहे थे. वोट देने की बात भी कर रहे थे, लेकिन जब वोट देने की बात आयी, तो बूथ तक नहीं पहुंचे.
कई बार शहर में जब निगम की राजनीति की चर्चा होती है, तो एक व्यक्ति के वर्चस्व की बात भी सामने आती है. अगले चुनाव में उसे बदलने की बात भी कही जाती है, लेकिन इस चुनाव में जो हुआ, उसने फिर से साबित कर दिया कि लोगों की चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं है? ऐसे में सवाल यह उठता है कि बदलाव कैसे आयेगा? अच्छे प्रत्याशी चुन कर निगम में कैसे पहुंचेंगे. अगर अच्छे प्रत्याशी फिर से हमारा प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे, तो हम विकास की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? शहर में जिस तरह का बदलाव चाहते हैं, वह कैसे होगा? यह ऐसे सवाल हैं, जिनसे आनेवाले दिनों में दो-चार होना पड़ सकता है. हम फिर से वहीं पर खड़े हैं, जहां पर पहले से थे. ऐसे में शहर को स्मार्ट बनाने की बात हो सकती है क्या?
स्मार्ट सिटी से याद आया. तीन बार इसके लिए प्रपोजल गया, लेकिन एक बार भी अपना शहर इसमें पास नहीं हो पाया. हर बार हम लोगों की भागीदारी में कमी रही. ऐेसा ही हाल अब चुनाव में दिखा. इससे उन शक्तियों को भी झटका लगा है, जो चाहती थीं कि शहर के लोग बड़े पैमाने पर वोट के लिए निकलें और अपने मताधिकार का प्रयोग करें. इसके लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा था. उनमें शहर के लोग शामिल भी हो रहे थे और अपनी समस्याएं रख रहे थे. वोट देने की बात भी कर रहे थे, लेकिन जब वोट देने की बात आयी, तो बूथ तक नहीं पहुंचे.
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