गुरुवार, 18 मई 2017

अपनों पर विश्वास से वैशाली को मिला था वैभव

किस्त-तीन
वैशाली ऐेसे ही वैभवशालिनी नहीं थी. उसके पीछे सबसे खास वहज थी, जो वहां के लोगों में एकता थी, किसी भी समस्या का समाधान वो लोग मिलजुल कर करते थे. कहते हैं, कि एक मामले का समाधान जब तक सर्वसम्मति से नहीं हो जाता था, तब तक बैठक चलती रहती थी. इसी एका की वजह थी कि दूसरे राज्य इसकी तरफ आंख उठा कर बी देखने की हिम्मत नहीं करते थे. इसमें एक और अहम बात है, जो राम शरण अग्रवाल जी बताते हैं. कहते हैं कि वैशाली के तत्कालीन शासन करनेवालों को अपने लोगों पर बहुत विश्वास था. वह यह नहीं समझते थे कि वैशाली के लोग किसी तरह के अनैतिक काम में संलिप्त हो सकते हैं. इसीलिए अनैतिक कामों की जांच के लिए उस समय आठ स्तरीय व्यवस्था थी. अगर किसी के खिलाफ शिकायत आती थी, तो उसकी जांच आठ स्तर पर की जाती थी और सभी स्तर पर दोषी पाये जाने पर ही व्यक्ति को सजा होती थी. अगर किसी भी स्तर पर हुई जांच में वह निदरेष पाया जाता था, तो जांच वहीं बंद कर दी जाती थी. यानी विश्वास का स्तर क्या था? यह हम सहज की कल्पना कर सकते हैं.
क्या हम आज इस तरह की व्यवस्था नहीं बना सकते? राम शरण जी की बातों को सुनते हुये मेरे दिमाग में यह सवाल चलने लगा, तो लगा कि मेरा मन गलत समय में सही सवाल कर रहा है. इस समाज जिस तरह से समाज पर बजार हावी है. हम सब लोग बजार के हवाले हैं. वैसे में इस तरह के सही प्रश्नों का जबाव बेमानी ही होगा और जो होगा भी उसे हम आदर्शवादी कह सकते हैं. हम उस दौर में जी रहे हैं, जहां एक ऐसा वर्ग बनता जा रहा है, जो लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र बांटता चलता है. खुद को नहीं देखता है. वह क्या है? अपने कृत्यों से कहां पहुंचता जा रहा है, लेकिन प्रमाण पत्र का बंडल लेकर घूम रहा है. फेसबुक से लेकर ट्विटर और जितने भी साधन हैं, सब पर सार्टिफिकेट देनेवालों की बाढ़ सी है. अगर कोई अच्छा काम कर रहा है, तो उसे भी बिना जाने-समङो कुछ भी कहे जा रहा है. इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो खुद को तथाकथित बुद्धिजीवी कहते हैं. खैर, मैं किन बातों में लग गया, लेकिन यह सवाल वैशाली घूमते समय मन में आ रहे थे, सो लिख दिये.
वैशाली को लेकर जो बातें राम शरण जी कहते हैं, उन पर सहसा विश्वास होता चला जाता है, तो क्योंकि इनमें किसी तरह का लाग लपेट नहीं है और इतिहास के रूप में ही सही, जो दिखता है. वह अपने आप अद्भुत है. वैशाली स्तूप से लेकर अभिषेक पुस्करिणी तक कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां देश-विदेश से आनेवाले पर्यटक जाते हैं. उन्हें देखते-समझते हैं, लेकिन राम शरण जी इनके आसपास बसे गांवों में ले जाते हैं और वहां के स्थलों को दिखाते और बताते हैं, तो लगता है कि अभी अपनी वैशाली के बारे में कितना जानना और समझना बाकी है. सरकार की ओर से इस काम को बड़े पैमाने पर और बेहतर तरीके से किया जाना चाहिये. गांवों के आसपास के जिन खेतों में गेहूं की फसल लहलहा रही है. वहीं, कभी तथागत (बुद्ध) घूमते रहे होंगे और उनसे जुड़ी जो जनश्रुतियां राम शरण जी सुनाते हैं, तो लगता है कि हमारी आंख के सामने घट रहा है.
खेतों-पगडंडियों के बीच बने छोटे-छोटे टीलों की थोड़ी सी मिट्टी भी हटायी जाती है, तो उससे ऐतिहासिक चीजें झांकने लगती हैं. वह अपने समृद्ध अतीत की गवाही देने लगती हैं. इन्हें देख कर ही संतोष होता है कि आखिर कितने समृद्धिशाली क्षेत्र में रहने को हमें मिला है. हम धन्य हैं. वैशाली में लोगों से बात होती है, तो उनकी बोली और भाषा अब भी अन्य जगहों से अलग और निराली लगती है. उन्हें इसका एहसास है कि वह कहां रह रहे हैं. उसके क्या मायने हैं.

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