गुरुवार, 11 मई 2017

सांसों पर भारी पड़ता गाड़ियों का धुंआ

मुस्कराइये की आप पटना में हैं, लेकिन यह मुस्कराहट उस समय परेशानी में तब्दील हो जाती है, जब ऑटो व अन्य वाहनों से निकलनेवाला धुंआ आपकी सांस और शरीर की क्षमता का परीक्षा लेने लगता है. सुबह ऑफिस जाने और शाम को ऑफिस छूटने के समय आप पटना की सड़कों पर पहुंचे, तो आपको सांस लेने में परेशानी होगी. डीजल और पेट्रोल की महक आपकी सांसों में घुलेगी और आप घर पहुंच कर जब मुंह-नाक धोयेंगे, तो धुंये के काले कण निकलेंगे. अगर आपने सफेद शर्ट पहनी है, तो उसकी बाहर व कॉलर काले हो चुके होंगे. यही आज के पटना की हकीकत है.
देश में जब सौर्य ऊर्जा से लेकर सीएनजी और एलपीजी जैसे स्वच्छ ईंधन का प्रयोग हो रहा है, तब पटना में इनका चलन नहीं होना संदेह पैदा करता है. आखिर कमी कहां हैं. किस स्तर पर इसके लिए काम हो रहा है, क्योंकि पटना में डीजलवाले ऑटो को चलाया जा रहा है. यह ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर जवाबदेह लोगों को देना चाहिये. पटना में राज्य की सरकार के कर्ताधर्ता बैठते हैं, क्या उन्हें यह समस्या परेशान नहीं करती है. अगर लोगों की सांसों के साथ उनके शरीर में धुंआ और खतरनाक केमिकल जायेगा, तो वह कैसे स्वस्थ्य रह पायेंगे. क्यों स्वच्छ ईंधन की दिशा में पहल नहीं हो रही है. स्वच्छ ईंधन के नाम पर केवल कुछ ई-रिक्शा चलते हैं. इसके अलावा और कुछ नहीं.
अगर हम उत्तर भारत के राज्यों की बात करें, तो लखनऊ जैसे शहर में दशकों पहले डीजल से चलनेवाले ऑटो को बैन कर दिया गया. वहां बैट्री व सीएनजी के चलनेवाले ऑटो ही चलते हैं. इससे एक समय पर पर्यावरण का पर्याय बने लखनऊ को बड़ी राहत मिली थी, जो अब तक जारी है, लेकिन पटना में यह पहल क्यों नहीं हुई. मेट्रो की बात हो रही है. वह भी योजना जमीन पर उतरती नहीं दिखती है. ऐसे में हम कैसे बेहतरी की बात कर सकते हैं, जब हम लोगों की सांसों को ही खतरे में डाल रहे हैं.

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