वैभव शालिनी वैशाली. ये वाक्य पिछले छह सालों में कई बार सुनने को मिला. वैशाली भी बीच-बीच में जाने का मौका मिला. वहां के ऐतिहासिक स्थलों पर भी कई बार गया. स्थानीय साथी ने कई चीजें बतायीं. कुछ पढ़ने को भी मिला, तो वैशाली में विभिन्न स्थलों पर होनेवाली खुदाई के दौरान मिलनेवाली मूर्तियां व सिक्कों के बारे में समाचारों से परचित होता रहा. कई बार खुद को वैशाली के इतिहास का विशेषज्ञ कहनेवाले लोगों से भी साक्षात्कार हुआ, लेकिन ऐसी अनुभूति कभी नहीं हुई, जैसी की सीता माता की भूमि में रहनेवाले रामशरण अग्रवाल जी के साथ वैशाली जाकर हुई. बहुत समय से सोच रहा था कि कुछ लिखूंगा, लेकिन लिख नहीं पा रहा था. पर आज लगा कि लिखना ही चाहिये.
नौ अप्रैल को सुबह सात बजे के आसपास जब हम मुजफ्फरपुर से वैशाली के लिए चले, तो अन्य दिनों की तरह यह भी वैशाली की सामान्य यात्र ही लग रही थी, लेकिन जैसे ही रामशरण जी ने वहां का इतिहास और उन स्थलों के बारे में बताना शुरू किया. मेरी धारणा बदलती चली गयी. वैशाली क्षेत्र में प्रवेश करते-करते मुङो ऐसा लगा कि अपने वैभव के कारण प्रसिद्ध वैशाली मुझसे भी कुछ कहना चाहती है. वहां की मिट्टी का कण-कण बात करना चाहता है. यह अद्भुद है कि वैशाली के कण-कण में अपना समृद्ध इतिहास छुपा हुआ है, जिसे आज की पीढ़ी के सामने लाये जाने की जरूरत है, लेकिन इस पर बहुत धीमी गति से काम हो रहा है.
नौ अप्रैल को महावीर जयंती थी, सो शुरुआत महावीर मंदिर से हुई. वहां की ऐतिहासिक मूर्ति के दर्शन पहली बार हुये. पुजारी जी ने मुङो पूजा करने की विधि बतायी और समझाया भी. इसके बाद लंगर में प्रसाद मिला. मंदिर के बगल में ही तालाब बना है. देखने में यह सामान्य लगता है, लेकिन इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है. इसकी बनावट अभिषेक पुस्करणी के जैसी है. रामशरण जी ने बताया कि अब भले ही तालाब अतिक्रमित होकर अपना अस्तित्व खो रहा है, लेकिन इस इलाके को सिंचित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वैशाली एक समय विदेह (राजा जनक) का क्षेत्र था और यह ऐतिहासिक तथ्य हम सबको मालूम है कि सीता जी का अवतरण तब हुआ था, जब राजा जनक हल चला रहे थे. उस समय सूखा पड़ा हुआ था, लेकिन उसके बाद इतिहास के किसी कालखंड में सूखे का जिक्र नहीं आता है. रामशरण जी बताते हैं कि उस समय के सूखे को लेकर बड़ा काम हुआ, ज्ञात इतिहास में केवल वैशाली में सात हजार से ज्यादा तालाब और इतने ही कुएं थे. जिनसे यहां रहनेवालों की पानी की जरूरत पूरी होती थी. उसकी निशानी अब भी बची हुई है. यानी पानी का संकट नहीं हो, इसके लिए फुल प्रूफ सिस्टम था. हालांकि उन तालाबों में अब हजारों तालाब का अस्तित्व नहीं रह गया है, जो कुछ तालाब बचे हैं वह भी अपना अस्तित्व खो रहे हैं. यह अपने आप में दुखद है. कई तालाबों का पानी गर्मी के दिनों में सूख जाता है. इस वजह से साल-दर-साल वैशाली भी पानी संकट की दिशा में आगे बढ़ती जा रही है. जरूरत इस बात की है कि हम अपने इतिहास से सबक लें और फिर से तालाबों को उनका रूप वापस लौटायें. पानी की संकट अपने आप खत्म हो जायेगा. बस इसके लिए ईमानदार पहल की जरूरत है. जारी..
नौ अप्रैल को सुबह सात बजे के आसपास जब हम मुजफ्फरपुर से वैशाली के लिए चले, तो अन्य दिनों की तरह यह भी वैशाली की सामान्य यात्र ही लग रही थी, लेकिन जैसे ही रामशरण जी ने वहां का इतिहास और उन स्थलों के बारे में बताना शुरू किया. मेरी धारणा बदलती चली गयी. वैशाली क्षेत्र में प्रवेश करते-करते मुङो ऐसा लगा कि अपने वैभव के कारण प्रसिद्ध वैशाली मुझसे भी कुछ कहना चाहती है. वहां की मिट्टी का कण-कण बात करना चाहता है. यह अद्भुद है कि वैशाली के कण-कण में अपना समृद्ध इतिहास छुपा हुआ है, जिसे आज की पीढ़ी के सामने लाये जाने की जरूरत है, लेकिन इस पर बहुत धीमी गति से काम हो रहा है.
नौ अप्रैल को महावीर जयंती थी, सो शुरुआत महावीर मंदिर से हुई. वहां की ऐतिहासिक मूर्ति के दर्शन पहली बार हुये. पुजारी जी ने मुङो पूजा करने की विधि बतायी और समझाया भी. इसके बाद लंगर में प्रसाद मिला. मंदिर के बगल में ही तालाब बना है. देखने में यह सामान्य लगता है, लेकिन इसका अपना ऐतिहासिक महत्व है. इसकी बनावट अभिषेक पुस्करणी के जैसी है. रामशरण जी ने बताया कि अब भले ही तालाब अतिक्रमित होकर अपना अस्तित्व खो रहा है, लेकिन इस इलाके को सिंचित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. वैशाली एक समय विदेह (राजा जनक) का क्षेत्र था और यह ऐतिहासिक तथ्य हम सबको मालूम है कि सीता जी का अवतरण तब हुआ था, जब राजा जनक हल चला रहे थे. उस समय सूखा पड़ा हुआ था, लेकिन उसके बाद इतिहास के किसी कालखंड में सूखे का जिक्र नहीं आता है. रामशरण जी बताते हैं कि उस समय के सूखे को लेकर बड़ा काम हुआ, ज्ञात इतिहास में केवल वैशाली में सात हजार से ज्यादा तालाब और इतने ही कुएं थे. जिनसे यहां रहनेवालों की पानी की जरूरत पूरी होती थी. उसकी निशानी अब भी बची हुई है. यानी पानी का संकट नहीं हो, इसके लिए फुल प्रूफ सिस्टम था. हालांकि उन तालाबों में अब हजारों तालाब का अस्तित्व नहीं रह गया है, जो कुछ तालाब बचे हैं वह भी अपना अस्तित्व खो रहे हैं. यह अपने आप में दुखद है. कई तालाबों का पानी गर्मी के दिनों में सूख जाता है. इस वजह से साल-दर-साल वैशाली भी पानी संकट की दिशा में आगे बढ़ती जा रही है. जरूरत इस बात की है कि हम अपने इतिहास से सबक लें और फिर से तालाबों को उनका रूप वापस लौटायें. पानी की संकट अपने आप खत्म हो जायेगा. बस इसके लिए ईमानदार पहल की जरूरत है. जारी..
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