शुक्रवार, 26 मई 2017

आखिर क्यूं सक्रिय हो जाते हैं किंगमेकर?

अपने प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव ज्यादातर स्थानों पर हो चुके हैं, प्रतिनिधियों को जनता ने वोट देकर चुन लिया है, लेकिन इसका सबसे दुखद पहलू यह देखने में आ रहा है, जिन प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ है, वह तो मेयर-डिप्टी मेयर बनाने में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन ऐसे आका जरूर सक्रिय हो गये हैं, जिन्हें चुनाव के दौरान इससे कोई मतलब नहीं था. अब उन्हीं के इर्द-गिर्द पूरी राजनीति घूम रही है. जनता ने जिन्हें बड़े विश्वास के साथ चुना, उनकी बोलियां लगाये जाने की बातें भी सामने आने लगी हैं. खुफिया विभाग से लेकर प्रशासन तक अलर्ट होने की बात कह रहा है, लेकिन पिछले दो चुनाव से देख रहा हूं. कभी किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई. केवल बयानबाजी तक मामला रह जाता है. वहीं, बोलियां लगानेवालों की बात करें, तो वह खुल कर इसकी बात करते हैं, जिसका असर शहर के विकास के कामों पर भी पड़ता है.
पिछले 72 घंटे से जिस तरह का माहौल मुजफ्फरपुर शहर का बना हुआ है. अगर उसे एक वार्ड पार्षद की जुबानी कहें, तो फोन से फुरसत नहीं है. कभी कोई मेयर पद के लिए ऑफर देने आ जाता है, तो कभी कोई डिप्टी मेयर बनने के लिए समर्थन मांगने पहुंच जाता है. सब लालच दे रहे हैं. यह ऑफर हजारों नहीं, लाखों का है. ईमान का सौदा करने को बोलियां लग रही हैं. दो साल बाद आनेवाले अविश्वास प्रस्ताव की भी दुहाई दी जा रही है, क्या इसी के लिए चुनाव का इतना बड़ा तामझाम किया जाता है कि जीतनेवाले लोगों पर बोलियां लगें. अगर यह सब सही है, तो क्यों नहीं कार्रवाई की जा रही है.
मेयर-डिप्टी मेयर का चुनाव सीधे जनता से कराने की मांग उठी थी. हालांकि उसकी अपनी परेशानियां हैं, लेकिन मुङो लगता है कि अभी जो हालात बने हैं. उसमें वह बेहतर विकल्प हो सकता है. इस तरह की खरीद-फरोख्त तो कम से कम सामने नहीं आती. जनता सीधे मेयर चुन लेती, तो उसकी जवाबदेही भी बढ़ जाती, लेकिन व्यवस्था का दोष ही इसमें ज्यादा नजर आता है. यह स्थिति कैसे बदले. उस पर काम करने का समय है. हालांकि इस हालात के बीच कुछ चुने हुये लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें खुद पर भरोसा है और वह पूरे खेल से दूरी बनाये हुये हैं, लेकिन इनकी संख्या इतनी नहीं है कि वह निर्णायक कदम उठा सकें.

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