दो दिन पहले से ही सीबीएसइ 12वीं के रिजल्ट की चर्चा चल रही थी. रविवार की सुबह रिजल्ट आया. पता चला कि बिहार का रिजल्ट ज्यादा अच्छा नहीं है. झारखंड से हम पीछे हैं. इस पर मन में उथल-पुथल चल ही रही थी. इसी बीच फोन बजा और दूसरी तरफ ऑफिस के साथी थे. कहने लगे कि मोतिहारी से दुखद खबर आयी है. तुरकौलिया के प्रखंड प्रमुख से पोते सचिन ने खुद को गोली मार ली है. वह 12वीं में फेल हो गया था. पिता के लाइसेंसी रिवाल्वर से खुद को गोली मारी. गंभीर हालत में पटना रेफर किया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी.
17 साल का सचिन दो साल से कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था. मन में ये बात बात आने लगी कि सचिन ने आखिर जान क्यों दी? उसके अंदर कोई न कोई विशेषता तो रही होगी, जिस दिशा में वह आगे बढ़ सकता है, क्योंकि रिजल्ट महज एक पड़ाव है. वह जिंदगी नहीं है, लेकिन हम लोग रिजल्ट को ही सब कुछ समझ बैठते हैं. इसमें फर्क किये जाने की जरूरत है. अभिभावक अब समझने भी लगे हैं, लेकिन शायद हमारे-आपके समझने और समझाने में कोई कमी रही होगी, जिससे ऐसी घटना घटी है.
ऐसी घटनाएं पहले भी घटी हैं, जिनके बाद ही इस तरह के सवाल पैदा हुये और उन पर काम होना शुरू हुआ, लेकिन अभी शायद पूरा काम नहीं हो सका. इसी वजह से हमारे-आपके आंगन के फूल खिलने से पहले ही मुरझा रहे हैं. इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. हमें खुद और आसपास के लोगों को समझने-समझाने की जरूरत है. जिंदगी एक बार मिलती है. इम्तिहान और उसका रिजल्ट, तो बार-बार आता है. हर सुबह के साथ नया दिन इम्तिहान के ही समान है. इसलिए रिजल्ट से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
कुछ साल पहले कोटा में एक बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी. उसने पांच पेज का सुसाइड नोट लिखा था. बहुत ही मार्मिक नोट था वह, जिसमें उसने लिखा था कि वह उम्मीदों को पूरा नहीं कर पा रही है. इस वजह से ऐसा कदम उठा रही है. इस घटना ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर किया था. इसके बाद कोटा के डीएम ने एक पत्र लिखा था. उसमें अभिभावकों व छात्रों से अपील की थी. पत्र में उन्होंने बच्ची के सुसाइड नोट का जिक्र किया था. लिखा था कि पांच पेज के नोट में इतनी अच्छी अंगरेजी उस बच्ची ने लिखी थी, जैसी बड़े प्रोफेशनल्स लिखते हैं. कहीं, कोई गलती नहीं थी. यह उस बच्ची के अध्ययन की विशेषता थी. वह अंगरेजी लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ सकती थी.
सचिन की आत्महत्या के बाद से कई तरह से सवाल मन में उठ रहे हैं. रिजल्ट को लेकर आखिर इतनी चिंता क्यों? अगर एक बार में सफल नहीं हुये, तो दुबारा ट्राइ कीजिये और जो आपके मन के करीब हो, उसी क्षेत्र में जाइये, ताकि आप जो काम करते हैं. वह बोझ नहीं लगे. हमारे आसपास जितने भी अभिभावक व बच्चे हैं. उन्हें यह समझने और समझाने की जरूरत है कि उम्मीद का बोझ न बच्चों पर डालें और बच्चे भी उम्मीदों के बोझ के नीचे दबे नहीं. अपनी बात अपने अभिभावकों के सामने रखें, जिससे उसका समाधान निकल सके, ताकि फिर किसी के आंगन का फूल खिलने से पहले ही नहीं मुरझाये.
17 साल का सचिन दो साल से कोटा में इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था. मन में ये बात बात आने लगी कि सचिन ने आखिर जान क्यों दी? उसके अंदर कोई न कोई विशेषता तो रही होगी, जिस दिशा में वह आगे बढ़ सकता है, क्योंकि रिजल्ट महज एक पड़ाव है. वह जिंदगी नहीं है, लेकिन हम लोग रिजल्ट को ही सब कुछ समझ बैठते हैं. इसमें फर्क किये जाने की जरूरत है. अभिभावक अब समझने भी लगे हैं, लेकिन शायद हमारे-आपके समझने और समझाने में कोई कमी रही होगी, जिससे ऐसी घटना घटी है.
ऐसी घटनाएं पहले भी घटी हैं, जिनके बाद ही इस तरह के सवाल पैदा हुये और उन पर काम होना शुरू हुआ, लेकिन अभी शायद पूरा काम नहीं हो सका. इसी वजह से हमारे-आपके आंगन के फूल खिलने से पहले ही मुरझा रहे हैं. इस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है. हमें खुद और आसपास के लोगों को समझने-समझाने की जरूरत है. जिंदगी एक बार मिलती है. इम्तिहान और उसका रिजल्ट, तो बार-बार आता है. हर सुबह के साथ नया दिन इम्तिहान के ही समान है. इसलिए रिजल्ट से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
कुछ साल पहले कोटा में एक बच्ची ने आत्महत्या कर ली थी. उसने पांच पेज का सुसाइड नोट लिखा था. बहुत ही मार्मिक नोट था वह, जिसमें उसने लिखा था कि वह उम्मीदों को पूरा नहीं कर पा रही है. इस वजह से ऐसा कदम उठा रही है. इस घटना ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर किया था. इसके बाद कोटा के डीएम ने एक पत्र लिखा था. उसमें अभिभावकों व छात्रों से अपील की थी. पत्र में उन्होंने बच्ची के सुसाइड नोट का जिक्र किया था. लिखा था कि पांच पेज के नोट में इतनी अच्छी अंगरेजी उस बच्ची ने लिखी थी, जैसी बड़े प्रोफेशनल्स लिखते हैं. कहीं, कोई गलती नहीं थी. यह उस बच्ची के अध्ययन की विशेषता थी. वह अंगरेजी लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ सकती थी.
सचिन की आत्महत्या के बाद से कई तरह से सवाल मन में उठ रहे हैं. रिजल्ट को लेकर आखिर इतनी चिंता क्यों? अगर एक बार में सफल नहीं हुये, तो दुबारा ट्राइ कीजिये और जो आपके मन के करीब हो, उसी क्षेत्र में जाइये, ताकि आप जो काम करते हैं. वह बोझ नहीं लगे. हमारे आसपास जितने भी अभिभावक व बच्चे हैं. उन्हें यह समझने और समझाने की जरूरत है कि उम्मीद का बोझ न बच्चों पर डालें और बच्चे भी उम्मीदों के बोझ के नीचे दबे नहीं. अपनी बात अपने अभिभावकों के सामने रखें, जिससे उसका समाधान निकल सके, ताकि फिर किसी के आंगन का फूल खिलने से पहले ही नहीं मुरझाये.
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